शिकारी को सबक
एक शिकारी ने बहुत से जानवरों का शिकार किया था| खासतौर पर वह खरगोशों का शिकार करता था| वह खरगोश को पकड़ता, बड़े से चाकू से उसकी गर्दन काटता और भून कर खा जाता|
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यह सत्य है कि पापी के पापों का घड़ा एक दिन अवश्य भरता है|
एक बार इस शिकारी ने जंगल से एक खरगोश पकड़ा और अपने गावँ की ओर चल दिया| उसने खरगोश को कानों से पकड़ रखा था| रास्ते में एक पेड़ के नीचे एक मुनि बैठा था, उसे खरगोश पर दया आ गई| उसने शिकारी से कहा, ‘इस नन्ही-सी जान ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो इसे इतना कष्ट दे रहे हो| इसे छोड़ दो, भगवान तुम्हें माफ़ कर देगा|’
शिकारी हँसा और बोला, ‘बाबा! अब तो मैं इसे तुम्हारे सामने ही मारूँगा|’
उसने अपना बड़ा-सा चाकू निकाल लिया| जैसे ही उसने चाकू को खरगोश की गर्दन पर चलाना चाहा कि चाकू उसके हाथ से छुटकर उसी के पैर पर गिर गया| उसका पैर बुरी तरह से ज़ख्मी हो गया| खरगोश भी हाथ से छुटकर जंगल में भाग गया|
शिकारी को अपने किए की सज़ा मिल गई| उसका एक पैर हमेशा के लिए बेकार हो गया| अब वह शिकार भी नही कर सकता था|
कथा-सार
जीव हिंसा करना पाप है| अपने शौक के लिए खरगोशों का वध करने वाला शिकारी भूल गया था कि उन्हें मारने के लिए उठाया चाकू स्वयं उसी का अहित भी कर सकता है| पाप का घड़ा तो एक दिन फूटना ही होता है, कुछ ऐसा ही उस शिकारी के साथ हुआ|