शेर और खरगोश
किसी वन में भासुरक नाम का एक सिंह प्रतिदिन अनेक जीवों को मारा करता था| एक दिन जंगल के सभी जीव मिलकर उसके पास पहुँचे और उससे निवेदन किया- “वनराज! प्रतिदिन अनेक प्राणियों को मारने से क्या लाभ? आपका आहार तो एक जीव से पूर्ण हो जाता है, इसलिए क्यों न हम परस्पर कोई ऐसी प्रतिज्ञा कर लें कि आपको यहाँ बैठे-बैठे ही आपका भोजन मिल जाए|
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सिंह उनकी बात मान गया| कुछ दिनों बाद एक खरगोश की बारी आ गई| खरगोश सिंह की मांद की ओर चल पड़ा, किंतु मृत्यु के भय से उसके पैर नहीं उठ रहे थे|
मौत के डर से वह जंगल में इधर-उधर भटकता रहा| एक स्थान पर उसे एक कुआँ दिखाई दिया| उसे देखकर उसके मन में एक विचार आया कि क्यों न भासुरक को उसके वन में दूसरे सिंह के नाम से उसकी परछाई दिखाकर इस कुएँ में गिरा दिया जाए| यही उपाय सोचता वह भासुरक सिंह के पास बहुत देर बाद पहुँचा| सिंह उस समय भूख-प्यास से बेहाल था| वह सोच ही रहा था कि कुछ देर तक कोई और पशु न आया तो वह अपने शिकार को चल पड़ेगा और पशुओं के खून से सारे जंगल को सींच देगा| उसी समय वह खरगोश उसके पास पहुँच गया और उसको प्रणाम करके बैठ गया| खरगोश को देखकर सिंह ने क्रोध से गरजकर कहा- “अरे खरगोश! एक तो तू छोटा है और फिर इतनी देर लगाकर आया है| खरगोश ने सिर झुकाकर उत्तर दिया- “स्वामी! आप व्यर्थ क्रोध कर रहे हैं| पहले मेरे देरी से आने के कारण को तो सुन लीजिए|” शेर गुर्राया- “जल्दी बोल| मैं बहुत भूखा हूँ| कहीं तेरे कुछ कहने से पहले ही मैं तुझे चबा न जाऊँ|” “स्वामी! मैं तथा अन्य चार खरगोश हम पाँच आपके पास आ रहे थे कि मार्ग में दूसरा सिंह अपनी गुफ़ा से निकलकर आया और बोला- ‘अरे! किधर जा रहे हो, मैं तुम्हें खाने आया हूँ|’ मैंने उनसे कहा- ‘हम सब अपने स्वामी भासुरक सिंह के पास आहार के लिए जा रहे हैं|’ तब वह बोला- ‘भासुरक कौन होता है? मैं ही तुम्हारा राजा हूँ| तुममें से चार खरगोश यही रह जाएँ, एक खरगोश भासुरक के पास जाकर उसे बुला लाए, मैं उससे स्वयं निबट लूँगा| हममें से जो बलशाली होगा, वही इस जंगल का राजा होगा|’ मैं उससे जान छुड़ाकर आया हूँ, महाराज! इसलिए मुझे देरी हो गई| यह सुनकर भासुरक बोला- “ऐसा ही है तो जल्दी से मुझे उस दूसरे सिंह के पास ले चल| आज मैं उसका रक्त पीकर ही अपनी भूख मिटाऊँगा खरगोश ने कहा- “ठीक है, यदि स्वामी का यही निर्णय है तो आप मेरे साथ चलिए|” यह कहकर खरगोश भासुरक को उसी कुएँ के पास ले गया, आइए, मैं आपको उसकी सूरत दिखा दूँ| खरगोश भासुरक सिंह को कुएँ की मेड़ पर ले गया| भासुरक ने झुककर झाँका तो उसे अपनी परछाई दिखाई दी| उसने समझा यही दूसरा सिंह है| तब वह जोर से गरजा| उसकी गरज के उत्तर में कुएँ से दुगनी गूँज सुनाई दी| उस गूँज को दूसरे सिंह की गरज समझकर भासुरक उसी क्षण कुएँ में कूद पड़ा और वहीं जल में डूबकर उसने प्राण त्याग दिए| खरगोश ने अपनी बुद्धिमत्ता से सिंह को हरा दिया| वहाँ से लौटकर वह अन्य जीवों की सभा में गया| उसकी चतुराई जानकर और सिंह की मौत का समाचार सुनकर सभी जानवर प्रसन्नता से नाच उठे|
शिक्षा- बुद्धिमानी से अपने से अधिक बलवान को भी पराजित किया जा सकता है|