शेखचिल्ली ब्राह्मण
बहुत समय पहले एक ब्राह्मण रहता था| वह भीख मांगकर गुजर-बसर करता था| कभी-कभी तो उसे कई दिन भूखा रहना पड़ता| कभी मुश्किल से एक समय का खाना जुटा पाता| मगर एक दिन उसकी किस्मत चमकी| कहीं से उसे एक हंडी भर आटा मिल गया| इतना आटा पाकर ब्राह्मण खुशी से फूला न समाया| वह हंडी लेकर घर पहुंचा और उसे अपने बिस्तर के पास लटकाकर आराम से लेट गया|
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लेट-लेट उसने सोचा, ‘काश मै धनवान होता तो मुझे भीख मांगने के लिए दर-दर नहीं भटकना पड़ता|’ योहीं सोचते-सोचते वह अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाने लगा| ‘हंडी में ढेर सारा आटा भरा है!’ वह सोचता रहा, ‘इतना आटा कि कई दिन बैठे-बैठे ही खाऊं तो भी खत्म न हो| मगर मैं इसे घर पर क्यों रखूं? बेच क्यों न दूं? अगर देश में अकाल पड़ा हो तो इसे अच्छे-खासे दामों में बेचा जा सकता है| मै बाजार जाकर आवाज लगाऊंगा, “आटा ले लो, आटा|”
‘फिर मेरा आटा खरीदने के लिए बहुत सारे लोग जमा हो जायेंगे|’
‘”लाओ, हम तुम्हारा आटा दस रुपये में खरीदेंगे,” एक आदमी कहेगा|
‘दूसरा आदमी कहेगा, “मै पन्द्रह रुपये दूंगा|”
‘”अरे पन्द्रह क्या चीज है?” तीसरा आदमी कहेगा, “मै बीस रुपये दूंगा|” बस! फिर मै बीस रूपये में सारा आटा बेच दूंगा|
‘तब मेरे पास बीस रुपये हो जायेंगे| इन बीस रुपयों से एक जूता और धोती खरीदूंगा| नहीं,नहीं, ये सब कुछ नहीं खरीदूंगा| मैं बीस रुपये से एक जोड़ी बकरियां खरीदूंगा| उन्हें हरी-हरी घास और पत्ते खिलाऊंगा| फिर मेरी बकरियों के बच्चे होंगे और कुछ ही समय में मेरे पास कम से कम डस बकरियां हो जायेंगी| तब मैं उन बकरियों को बाजार में ले जाऊंगा|
‘”बकरियां ले लो,” मैं जोर-जोर से आवाज लगाऊंगा, “मोटी-ताजी बकरियां|”
‘बकरियां देखकर कोई देहाती दौड़ा आयेगा और कहेगा, “अहा! ऐसी ही बकरियां तो मैं ढूंढ़ रहा था|” वह फौरन सौ रुपये देकर मेरी बकरियां खरीद लेगा| हां-हां पूरे सौ रुपये में!
‘मै उन सौ रुपयों से एक लाल रेशमी कोट खरीदूं या फिर एक खुबसूरत पलंग? नहीं मै रूपये ऐसे बर्बाद नही करूंगा| मै दो गायें खरीदूंगा| गायो के बछिया होंगी| वे बड़ी होकर गायें बन जायेंगी| उनसे खूब दूध मिलेगा| मै दूध, दही और घी का व्यापार करूंगा| बर्फी, रसगुल्ले और गुलाबजामुन बनाऊंगा| मेरी दुकान में मिठाइयां भरी रहेंगी|
‘”मिठाई, बढ़िया मिठाई,” मैं जोर-जोर से आवाज लगाऊंगा, “ले लो, ले लो ताजी मिठाई, रसीली मिठाई, मिठाई, मिठाई|”
‘फिर चारों ओर से बच्चे दौड़े आयेंगे| उनको हाथों में चांदी के सिक्के होंगे| मेरी मिठाइयां देखकर उनकी लार टपकने लगेगी और युवा, बूढ़े सभी मेरी दुकान में आने लगेंगे| खरीददारों की भीड़ लग जायेगी|
‘मेरा व्यापार चल निकलेगा| मैं दिन-ब-दिन आमिर होता जाऊंगा| इतने रुपयों का मैं क्या करूँगा? क्या मैं एक हाथी खरीदूं या एक मंदिर बनवा दूं? यह सब कुछ नहीं| मैं हीरे, मोती और और जवाहिरात का व्यापार करूंगा|
‘फिर मैं एक सुन्दर नीला कोट और बढ़िया पगड़ी पहनकर राजा के पास जाऊंगा| दरबार में जाकर कहूंगा, “महाराज, आपके लिए अनोखे हीरे-पन्ने और मोती लाया हूं| एक से एक बढ़िया हैं|”
‘”वाह!” राजा साहब कहेंगे, “ऐसे मोती तो मैं अपनी रानी के लिए खरीदना चाहता था|”
‘फिर तो हीरे, मोती, पन्ने का व्यापार बढ़ता जायेगा और मैं दुनिया का सबसे धनी आदमी बन जाऊंगा|
‘तब मैं एक खूब बड़ी हवेली बनवाऊंगा| उसके चारों ओर बाग-बगीचे होंगे| आम के पेड़ और सुन्दर गुलाबो की क्यारियां होंगी| एक स्वच्छ तालाब होगा| जिसमें लाल-नीले और पीले कमल खिले होंगे| पानी में दूध जैसे सफेद हंस तैरा करेंगे|
‘फिर एक से एक धनी लोग मेरे घर आयेंगे| कहेंगे, “हमारी बेटी से शादी कर लो|” मैं कहूंगा, “नहीं|” तब स्वयं राजा अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आयेगा| फिर सुन्दर-सलोनी, कजरारी आंखो वाली राजकुमारी से मेरी शादी हो जायेगी|
‘कुछ दिनों बाद हमारा एक लड़का होगा| फिर दूसरा लड़का और एक लड़की होगी| मै बाग में अपने बच्चो को खिलाऊंगा| जब मै थक जाऊंगा तो अपनी पत्नी से कहूंगा, “अब तुम बच्चो के साथ खेलो|” मगर मेरी पत्नी अपने कामों फंसी होगी और बच्चे मेरे पीछे चले आयेंगे| परन्तु आराम करते समय मुझे यह पसन्द नहीं होगा| मै डांटकर उन्हें भगाऊंगा| लेकिन बच्चे तो बच्चे ही ठहरे| शैतानी पर मुझे गुस्सा आ जायेगा| मैं एक छड़ी लेकर उन्हें पीटूंगा और पीटता ही रहूंगा|”
यह कल्पना करते हुए कि वह अपने बच्चो को पीट रहा है, ब्राह्मण ने हवा में अपना हाथ चलाना शुरू कर दिया| हाथ लटकी हुई आटे की हंडी में जा लगा| धम्म! मिट्टी की हंडी जमीन पर गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गई| सारा आटा फर्श पर फैल गया|
इस आवाज से उसकी पिनक टूटी| वह हड़बड़ाकर उठ बैठा|
उसने चारों ओर घूरकर देखा| न तो उसे कोई राजकुमारी दिखी, न हवेली, न बाग-बगीचे, और न ही बच्चे| बस,चारों ओर टूटी हंडी के टुकड़े पड़े थे और सारा आटा फर्श में बिखरा पड़ा था|