Homeशिक्षाप्रद कथाएँश्वेत गजशावक

श्वेत गजशावक

एक दिन हिमालय की तराई में गज दंपति आपस में बातें कर रहे थे…

‘तुमने गजशावक को देखा?’ हाथी ने पूछा|

‘देखा तो नही, पर सुना है कि वह बहुत सुंदर है|’ हथिनी ने कहा|

पास ही देवदार के वृक्षों के पास उस गजशावक की माँ गर्व से सिर उठाए अपने बच्चे के साथ खेल रही थी|

‘यह तो चाँदी की तरह सफ़ेद है| लगता है जैसे काले बादलों के बीच पूर्णमासी का चाँद उग आया हो|’

धीरे-धीरे वक्त गुज़रने लगा| श्वेत गजशावक अपने साथियों के साथ खेल-कूदकर बड़ा होने लगा| एक दिन उसके साथी जंगल में शरारत कर रहे थे|

‘टहनी को हिलाएँगे तो बंदर को नानी याद आ जाएगी|’ एक गजशावक बोला|

‘देखो, मैं कैसे गिलहरी को सूँड से खींचता हूँ|’ दूसरे ने कहा|

फिर पहले वाले गजशावक ने बंदर को पैरों तले कुचल दिया|

श्वेत गजशावक को यह देखकर बहुत बुरा लगा, उसने सोचा कि उसके साथी स्वार्थी और लालची तो है ही, क्रूर भी है| तब वह अपने साथियों को छोड़कर चल दिया| रास्ते में चलता हुआ वह सोच रहा था, ‘मैं इनके साथ नही रह सकता| मैं अलग ही रह लूँगा|’

अब वह अलग ही रहने लगा| वह सबकी मदद करता था तथा नेक सलाह भी देता था| एक दिन वह रोते हुए बंदर के पास जा पहुँचा|

‘तुम रो क्यों रहे हो? बात क्या है?’ श्वेत गजशावक ने बंदर से पूछा|

‘मैं कमज़ोर हूँ इसलिए मेरे साथी मुझे तंग करते है|’ बंदर ने रोने का कारण बताया|

श्वेत गजशावक ने बंदर के सारे साथियों को इकट्ठा किया और उन्हें समझाने लगा, ‘यह दुर्बल है, तुम्हें तो इसकी रक्षा करनी चाहिए, किंतु उल्टा तुम इसे तंग करते रहते हो| आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाऊँगा, जिसे सुनकर तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी|’ गजशावक कहानी सुनाने लगा…

एक दिन की बात है- काशी निवासी रामचारी जंगल में भटक गया| वह काफ़ी घबरा गया था| अँधेरा बढ़ने लगा था, लेकिन वह साहस करके आगे बढ़ता रहा| अचानक उसके सामने श्वेत गजशावक आ गया|

‘अब यह हाथी मुझे जिंदा नही छोड़ेगा|’ उसने मन-ही-मन सोचा| फिर वह घबराकर एक तरफ़ भाग लिया|

उसने देखा कि उसके पीछे-पीछे हाथी भी भागा आ रहा था| जब वह भागते-भागते थक गया तो रुक गया| उसे देखकर श्वेत गजशावक भी रुक गया|

रामाचारी सोचने लगा, ‘यदि मैं इसके सामने खड़ा हो जाऊँ तो यह क्या करेगा? ज्यादा-से-ज्यादा मार ही तो डालेगा|’ और वह हिम्मत करके श्वेत गजशावक के सामने खड़ा हो गया|

तभी उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा क्योंकि हाथी बोल रहा था|

मैंने तुम्हारी पुकार सुन ली थी| मेरे लायक कोई काम हो तो बताओ|’ श्वेत गजशावक मीठे स्वर में बोला|

‘मुझे काशी जाना है, पर मैं रास्ता भूल गया हूँ|’ रामाचारी ने कातर स्वर में कहा|

‘तुम मेरे घर चलो| मैं तुम्हें काशी जाने का रास्ता बता दूँगा| तुम काफ़ी थक गए हो| कुछ दिन यही आराम करो, उसके बाद अपने घर चले जाना| श्वेत गजशावक ने रामाचारी से कहा|

थोड़ी देर बाद रामाचारी श्वेत गजशावक के साथ उसकी गुफ़ा में जा पहुँचा|

कुछ दिनों तक दोनों साथ रहे|

एक दिन श्वेत गजशावक ने कहा, ‘चलो, मैं तुम्हें जंगल के बाहर तक छोड़ आता हूँ| वहाँ से शहर जाने का रास्ता भी बता दूँगा|’

रामाचारी श्वेत गजशावक पीठ पर सवार हो गया|

बातचीत करते हुए कुछ ही देर में वह दोनों जंगल से बाहर आ गए| रामाचारी उसकी पीठ से उतर गया|

‘यही सड़क काशी की तरफ़ जाती है| अब तुम्हें घर जाने में कोई दिक्कत नही आएगी| लेकिन एक बात याद रखना, मेरे बारे में किसी को कुछ भी मत बताना|’ श्वेत गजशावक ने रामाचारी से कहा|

‘मैं तुम्हारा उपकार जिंदगीभर नही भूलूँगा|’ कहकर रामाचारी ने गजशावक से विदा ली|

कुछ दिनों बाद रामाचारी काशी के हाथी दाँत के बाज़ार से गुज़रता हुआ एक दुकान पर ठिठककर रुक गया|

‘वाह! कितनी सुंदर चीजें बनाई हुई है|’ उसने एक दुकानदार से कहा|

‘चीजें तो इससे भी बढ़िया बनाई जा सकती है, पर अच्छा हाथी दाँत मिलता ही नही है|’ दुकानदार ने कहा|

‘अगर जीवित हाथी का दाँत मिल जाए तो…?’ रामाचारी ने पूछा|

‘उसका तो कहना ही क्या! पर जीवित हाथी का दाँत मिलना मुश्किल है, और मिले भी तो वह इतना महँगा होता है कि…|’

रामाचारी वहाँ से चल दिया| रास्ते में वह सोचता हुआ जा रहा था- यदि उसे हाथी दाँत मिल जाए तो वह मालामाल हो जाएगा| अचानक उसे अपने मित्र श्वेत गजशावक की याद आ गई| वह जंगल में उसी श्वेत गजशावक के पास जा पहुँचा|

श्वेत गजशावक ने उसे देखा तो वह खुशी से खिल उठा और बोला, ‘क्या बात है मित्र, बहुत उदास लग रहे हो?’

रामाचारी ने संयत होकर कहा, ‘मित्र! मैं कर्ज में डूबा हुआ हूँ| तुम्हारे दाँत का टुकड़ा मिल जाए तो मैं कर्ज से मुक्त हो जाऊँ|’

श्वेत गजशावक ने कुछ देर सोचा, फिर वह बैठ गया और सूँड को सीधा कर लिया, ‘अगर तुम्हारे किसी काम आ सका तो मैं धन्य हो जाऊँगा| मैं तुम्हें दोनों दाँत देने को तैयार हूँ, पर काटने तुम्हें ही होंगे|’

‘मुझे तुमसे यही उम्मीद थी| आखिर मित्र ही मित्र के बुरे समय में काम आता है|’

रामाचारी ने आरी से हाथी के दोनों दाँत काटकर अपने झोले में रख लिए| फिर उसने चलने के लिए विदा माँगी|

‘मित्र! ये साधारण दाँत नही है| ये दाँत ही मेरे ज्ञान और विवेक के साधन है|’ इतना कहकर श्व्तेत गजशावक वापस अपने घर लौट गया|

काशी में रामाचारी को हाथी दाँत बेचने से काफ़ी धन मिला| उसने अपने लिए नए कपड़े खरीदे तथा गहने गढ़वाए और ऐशो- आराम की ज़िंदगी गुज़ारने लगा|

कुछ ही समय में जब उसका सारा धन खत्म हो गया तो वह फिर सोच में डूब गया| अब उसके मन में लालच पैर पसारने लगा| उसने सोचा कि मैं हाथी के दाँत और जड़ से काटता तो शायद अधिक धन मिलता| हाथी के पास तो वे बेकार ही है| सारी रात वह चैन की नींद नही सो सका| बिस्तर पर लेटा-लेटा सोचता रहा, ‘यदि मैं दाँत को जड़ से काटूँगा तो हाथी को पीड़ा होगी| पर मेरा क्या जाता है| पीड़ा उसे ही तो होगी, मेरा काम तो बन ही जाएगा|’

अगले दिन सुबह-सुबह वह फिर हाथी के पास जा पहुँचा|

वह उससे बोला, ‘तुम्हारे दाँत से कर्ज तो उतर गया मित्र, पर आगे काम चलाने के लिए कुछ नही बचा|’

श्वेत गजशावक सूंड सीधी की और नीचे बैठ गया| रामाचारी ने उसके दोनों दाँत जड़ से काट लिए| श्वेत गजशावक के मुहँ से पीड़ा होने की शिकायत का एक शब्द भी नही निकला| फिर वह हाथी को छटपटाता छोड़कर वहाँ से चल दिया| मन-ही-मन वह खुश हो रहा था कि उसका काम तो बन गया| अब हाथी को चाहे कुछ भी हो, उसकी बला से|’

वह सपने संजोए चला जा रहा था कि अचानक धरती फट गई और उसमें से आग की लपटें निकलने लगी|

‘बचाओ! बचाओ! रामाचारी के मुहँ से करुण पुकार निकली| तब रामाचारी को आभास हुआ कि उसे लालच का दंड मिला है| पर अब पछताने से क्या होता| वह आग की लपटों में भस्म हो गया|

उधर हाथी ने अपना शेष जीवन उसी तरह शांति और संतोष के साथ हिमालय की गोद में बिताया|

शिक्षा: लोभ-लालच में पड़कर मनुष्य आँखें होते हुए भी अंधा हो जाता है| यहाँ तक कि मित्र के दुख व पीड़ा से भी उसे कुछ लेना-देना नही रहता| रामाचारी ने श्वेत गजशावक की सदाशयता का अनुचित लाभ उठाया| लेकिन प्रकृति ने उसे उसकी कृतघ्नता का दंड दे ही दिया|