शांतनु
बहुत पुरानी बात है| शांतनु नाम के एक राजा हस्तिनापुर में राज्य करते थे| उन्हें शिकार खेलना अति प्रिय था| एक दिन राजा शांतनु ने नदी के तट पर एक बहुत सुन्दर स्त्री को देखा| वह कोई साधरण नारी नहीं बल्कि देवी गंगा थी| परन्तु राजा शांतनु इस बात से अनभिज्ञ थे|
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राजा ने पूछ, “हे सुन्दरी! आप कौन है? मेरी अभिलाषा है कि आप मेरी अर्धांगिनी और रानी का स्थान ग्रहण करें| मै अपनी सम्पूर्ण संपत्ति और राज्य आपको दे दूंगा| क्या आप मुझसे विवाह करेंगी?” देवी गंगा ने अपनी आँखे नीचे झुका लीं और उत्तर दिया, “राजन, यदि आप मुझसे विवाह करना चाहते हैं तो आपको वही स्वीकार करना होगा जो मो चाहूँगी|”
राजा ने उत्तर में कहा, “आप जो भी कहेंगी, वह मुझे स्वीकार होगा|”
गंगा ने कहा, “इससे पूर्व आप मुझसे सहमत हों, कृपया मेरी बात सुन लें| तभी मै आपकी पत्नी का स्थान ग्रहण कर सकती हूँ| आप और आपके कर्मचारी कभी यह प्रश्न नहीं करेंगे कि मै कौन हूँ और कहाँ से आई हूँ| मै अपनी इछ्नुसार किसी भी काम को कर सकूं, इसकी अनुमत मुझे देनी होगी, चाहे वह कार्य आपकी दृष्टि में उचित हो या अनुचित| आप मुझ पर कभी नहीं क्रोधित नहीं होंगे और न ही मुझे विचलित तथा अप्रसन्न करेंगे| यदि आपने ऐसा किया तो मै उसी क्षण आपको त्याग दूँगी|”
राजा शांतनु तुरन्त सभी बातों से सहमत हो गए|उनका विवाह हो गया और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे| राजा यह देखकर हर्षित थे कि उनकी पत्नी एक आदर्श रानी थीं अपने कर्तव्यो का पालन करती थी|
कुछ वर्षों के पश्चात उनकी पहली सन्तान का जन्म हुआ| एक दिन शांतनु ने देखा कि उनकी पत्नी बालक को नदी की ओर ले जा रही हैं| नदी तट पर खड़े होकर उन्होंने बालक को जल में प्रवाहित कर दिया| शांतनु भयभीत हो उठे, परन्तु उन्हें अपना वचन याद आ गया कि वे पत्नी से कभी कोई प्रश्न नहीं करेंगे| समय व्यतीत होता गया| शांतनु की संताने हुईं परन्तु गंगा एक-एक करके सबको नदी में बहा दिया|
जब आठवें का जन्म हुआ, गंगा उसे भी नदी की ओर ले गईं परन्तु इस बार शांतनु के धैर्य की सीमा टूट गई और वे चिल्लाये, “रुको, रुक जाओ|” यह कहते हुए उन्होंने रानी के सामने हाथ फैलाकर बालक को नदी में न फेंकने की भीख माँगी|
शांतनु अधीर होकर बोले, “तुम हर बार हमारे बच्चे को नदी में क्यों फेंक देती हो?”
रानी उत्तर दिया, “राजन, आपने वचन दिया था कि आप मुझसे कभी किसी प्रकार का प्रश्न नहीं पूछेंगे? आपने वचन भंग किया है, इसलिए मुझे आपको छोड़कर जाना होगा| मै गंगा हूँ|”
“देवी गंगा! राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा| “आप यहाँ कैसे आईं?”
गंगा ने कहा, राजन! मै इस संसार में एक श्राप के कारण आई हूँ| वशिष्ठ ने अष्ठ वसुओं के उत्पात से क्रोधित होकर उन्हें मृत्युलोक में मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया| आठों वसुओं ने ऋषि से क्षमा मांगी और प्रार्थना की कि वे उनके अपराध का इतना बड़ा दंड न दें| वशिष्ठ ने कहा-तुममें से सात वस्तुओं का तो जन्म लेते ही उद्धार हो जाएगा परन्तु महाउत्पाती आठवां वसु पृथ्वी पर रहेगा| आपकी जिन संतानों को मैंने नदी में बहा दिया, वे वसु के नाम के देवगण थे| वशिष्ठ के श्राप को पूर्ण करने के लिए उनका पृथ्वी पर जन्म लेना आवश्यक था| उन्हें श्रप्मुक्त करने के लिए ही मैंने इस संसार में आकर आपसे विवाह किया और उन्हें जन्म दिया| वसु स्वर्ग जाना चाहते थे अतः जैसे ही उन्होंने जन्म लिया, मैंने उन्हें में प्रवाहित कर दिया| परन्तु यह अंतिम बालक है, मैं इसे नदी में नहीं बहाऊंगी| इसे मै अपने साथ ले जाऊँगी| जब यह बड़ा हो जाएगा तब आकर आपको सौंप दूंगी|”
गंगा बालक को लेकर चली गईं| शांतनु दुखी अवस्था में महल लौट आई|