शांति का स्त्रोत
किसी नगर में एक सेठ रहता था, उसके पास लाखों की संपत्ति और भरा-पूरा परिवार था, उसे सब तरह की सुख सुविधाएं थीं| फिर भी उनका मन अशांत रहता था|
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जब उसकी परेशानी बहुत बढ़ गई तो वह एक साधु के पास गया और अपना कष्ट उन्हें बताकर प्रार्थना की – “महाराज, जैसे भी हो, मेरी अशांति दूर कीजिए|”
साधु ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा – “अमुक नगर में एक बहुत बड़ा धनिक रहता है, उसके पास जाओ, वह तुम्हें रास्ता दिखा देगा|”
सेठ ने सोचा कि साधु उसे बहका रहे हैं| उसने साधु से कहा – “स्वामीजी, मैं तो आपके पास बड़ी आशा लेकर आया हूं| आप ही मेरा उद्धार कीजिए|”
साधु ने फिर वही बात दोहरा दी|
लाचार होकर सेठ उस नगर की ओर रवाना हुआ| वहां पहुंचकर वह देखता क्या है कि उस धनपति का कारोबार चारों ओर फैला है, लाखों का व्यापार है और उस आदमी का चेहरा फूल की तरह खिला है| वह एक ओर बैठ गया| इतने में एक आदमी आ गया| उसका मुंह उतरा हुआ था| वह बोला – “मालिक हमारा जहाज समुद्र में डूब गया| लाखों का नुकसान हो गया|”
उद्योगपति ने मुस्कराकर कहा – “मुनीमजी, इसमें परेशान होने की क्या बात है? व्यापार में तो ऐसा होता ही रहता है|”
इतना कहकर वह अपने साथी से बात करने लगा| थोड़ी देर में एक दूसरा आदमी आया| बोला – “सरकार, रुई का दाम चढ़ गया है, हमें लाखों का फायदा हो गया|”
धनिक ने कहा – “मुनीमजी, इसमें खुश होने की क्या बात है? व्यापार में ऐसा होता ही रहता है|”
सेठ को अपनी समस्या का समाधान मिल गया| उसने समझ लिया कि शांति का स्त्रोत वैभव में नहीं मन की समता में है|