शाही गजराज

शाही गजराज

बसंतपुर में बढ़इयों का एक मुहल्ला था| बढ़ई रोज नावों से नदी पार करके जंगल में जाते और अपने काम के लिए लकड़ी काटकर लाते थे| उसी गाँव में दो मित्र मोहन और रामू रहा करते थे| गाँव से जंगल और जंगल से गाँव आना-जाना उनका नियम था| काम की कमी न थी|

‘रोज लकड़ी लाते है, फिर भी कम पड़ जाती है|’ एक दिन मोहन बोला|

‘मुझे काम से फुर्सत ही नही मिलती|’ रामू बोला|

एक दिन वे दोपहर में खाना खा रहे थे कि एक हाथी उधर आ निकला|

‘देखो, वह इधर ही आ रहा है|’ मोहन बोला|

‘वह लंगड़ाकर चल रहा है, शायद बेचारे को दर्द हो रहा है|’ रामू बोला|

हाथी निकट आ गया और अपना ज़ख्मी पैर उनके आगे कर दिया|

मोहन ने उसका ज़ख्मी पैर देखा तो बोला, ‘न जाने किस नुकीली चीज़ पर पैर पड़ा है, जो अंदर घुस गई है|’

‘कील है शायद, माँस में बहुत अंदर तक चली गई है|’ रामू ने कहा|

उन दोनों ने हाथी के पैर से लोहे की मोटी कील निकाली और घाव को साफ़ करके पट्टी बाँध दी| उनके इलाज से हाथी ठीक हो गया|

तुम लोगों ने मुझे पर बड़ी कृपा की है| मैं अब रोज़ आया करूँगा और काम में तुम्हारी सहायता किया करुँगा|’

वह हाथी कई वर्ष तक उनकी सेवा करता रहा| फिर एक दिन हाथी अपना बच्चा भी साथ लेकर आया|

‘अरे! आज तो हमारा दोस्त एक बच्चा भी साथ लेकर आया है|’ मोहन ने खुश होते हुए कहा|

‘बच्चा तो बहुत सुंदर है, एकदम सफ़ेद|’ रामू ने बच्चे की तरफ़ देखते हुए कहा|

फिर वह हाथी बोला, ‘मुझमे अब पहले जैसी शक्ति नही रही| इसलिए कल से मेरे बदले मेरा बेटा ही आया करेगा और तुम्हारी सेवा किया करेगा|’

उसके बाद से श्वेत गजशावक प्रतिदिन आता और पेड़ों के लठ्ठों को लादता, उतरवाता तथा औज़ार ला-लाकर देता और लट्ठे इधर-उधर पहुँचाता| काम के अतिरिक्त वह मोहन और रामू के बच्चों के साथ खेलता भी| दोनों दोस्त उससे बड़े खुश रहते|

एक दिन की बात है कि हाथी की लीद नदी में जा गिरी| उसी नदी में राजा के हाथी भी नहाया करते थे|

‘आज तो हमारे हाथी पानी में उतर ही नही रहे|’ एक सैनिक ने कहा|

‘हमें तुरंत राजा को खबर करनी चाहिए|’ दूसरा सैनिक बोला|

हाथियों का प्रशिक्षक सब समझ गया और बोला, ‘किसी महान हाथी की लीद पानी में बहकर आई है| वह ऊपर के हिस्से में रहता होगा|’

उसने यह बात राजा को बताई तो राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि उस हाथी को खोजो, ऐसा हाथी तो शाही अस्तबल में होना चाहिए|

फिर न जाने क्या सोचकर कुछ आदमियों को लेकर राजा स्वयं हाथी को खोजने निकला| कुछ दूर जाने पर ही हाथी का बच्चा दिखाई दे गया|

‘यही वह हाथी है जिसे खोजने हम निकले हैं| देखो, कितनी शान से खड़ा है|’ राजा ने कहा|

उधर दोनों दोस्त हैरत में पड़ गए|

‘ये तो महाराज है| शायद हमसे महल में कुछ काम करवाने आए होंगे|’ मोहन ने कहा|

‘नही, अगर राजा को काम ही करवाना होता तो हमें दरबार में न बुलवा लेता, खुद चलकर यहाँ क्यों आता|’ रामू ने दलील पेश की|

राजा अपने आदमियों के साथ निकट आ गया|

‘हम इस हाथी को शाही अस्तबल में रखना चाहते हैं| राजा ने मोहन और रामू से कहा|

श्वेत गजशावक ने सोचा कि मित्रों की मदद करने का यह अच्छा मौका है| उसने राजा से कहा, ‘इन लोगों की बड़ी कृपा है मुझ पर| मैं इनका बड़ा आभारी हूँ| मुझे आपके साथ चलने में कोई आपत्ति नही है| मगर…आपको इनकी सहायता करनी होगी|’

राजा ने तुरंत अनुचरों को आज्ञा दी, ‘इन लोगों को चार लाख स्वर्ण मुद्राएँ दे दी जाएँ|’

हाथी को संतोष नही हुआ, ‘उसने कहा, ‘महाराज, मुझे लोभी न समझे| इन लोगों को और भी बहुत कुछ चाहिए, इनके बच्चों के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए|’

‘हम तुम्हारी कृतज्ञता देख प्रसन्न है| खुश कर देंगे तुम्हें|’ राजा ने हाथी को सारी शर्तें स्वीकार कर ली|

यह सुन कर हाथी राजा के साथ जाने को राजी हो गया| विदाई का दृश्य बहुत ही कारुणिक था| मोहन ओर रामू की आँखों में आँसू भर आए थे, उनके बच्चे भी रोने लगे थे क्योंकि वे हाथी के साथ घंटो खेला करते थे|

राजा के साथ हाथी बसंतपुर चला गया|

उधर शहर में खुशी छाई हुई थी| हाथी को सज़ाकर अस्तबल में पहुँचाया गया|

मंत्री और सामंत उसके गुण गाने लगे|

‘ऐसा भव्य हाथी मैंने पहले कभी नही देखा|’ एक सामंत ने कहा|

‘मेरी बात याद रखना…कभी युद्ध हुआ तो इसके करतब देखने लायक होंगे|’ मंत्री ने कहा|

राजा ने हाथी के नाम आधा राज्य कर दिया और बोला, ‘तुम मेरे भाई के समान हो, जीवनभर मेरे साथ की रहोगे|’

हाथी को राजा से इतना स्नेह हो गया कि वह उसके साथ ही लगा रहता|

कुछ समय बाद महारानी गर्भवती हुई|

‘लगता है यह हाथी हमारे लिए बहुत सौभाग्यशाली है|’ राजा ने कहा|

‘मुझे लगता है हमारा बालक भी नाम कमाएगा|’ महारानी बोली|

इस तरह हँसते-खेलते दिन बीतने लगे| परंतु कहावत है कि सुख के साथ-साथ दुख भी आता है| एक दिन राजा बीमार पड़ा और उसका अंतिम समय आ गया|

‘यदि मुझे कुछ हो गया हाथी का क्या होगा?’ राजा ने मरियल स्वर में कहा|

‘लगता है हमारे बालक के नसीब में पिता का सुख नही है|’ महारानी के मुँह से अस्फुट स्वर निकला|

कुछ ही दिनों बाद राजा की मृत्यु हो गई|

‘यह दुख का समाचार हम हाथी को नही बताएँगे|’ मंत्री ने कहा|

‘लेकिन उससे यह समाचार हम कब तक छिपाएँगे| एक-न-एक दिन तो वह जान ही जाएगा|’ महावत ने कहा|

इस बीच कौशल के राजा ने बसंतपुर पर आक्रमण कर दिया|

बिना राजा के राज्य में अव्यवस्था छाई हुई थी| बसंतपुर में विचार-विमर्श होने लगा|

‘हम कौशल नरेश से अनुरोध करें कि एक सप्ताह तक युद्ध रोक दे|’ मंत्री ने सलाह दी|

‘इससे क्या होगा? सेनापति ने कहा|

‘ज्योतिषियों के अनुसार रानी एक सप्ताह में बालक को जन्म देगी| पुत्र हुआ तो हम युद्ध करेंगे, अन्यथा हार मानने के सिवा कोई चारा नही है|’

फिर उन्होंने एक दूत को भेजा| कौशल के राजा ने दूत की बात स्वीकार कर ली|

एक सप्ताह बाद रानी ने सुंदर पुत्र को जन्म दिया|

‘नए राजा शतायु हो|’ मंत्री ने कहा|

‘हम युद्ध अवश्य करेंगे| राजा के लिए जान लड़ा देंगे|’ कई सामंत उत्साहपूर्वक बोले|

इसके बाद दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ| कौशल सेना की विजय हुई|

‘हमारे बहुत से सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए है|’ सेनापति ने कहा|

‘और होता भी क्या? हमारे राजा तो अभी नवजात शिशु है|’ मंत्री ने कहा|

‘मेरा एक सुझाव है| मामला शाही हाथी को सौंप दिया जाए|’ एक समांत ने सलाह दी|

वे सब रानी के पास गए| रानी ने हाथी को बुलवाया| हाथी उनके बालक को देखने आया तो रानी ने कहा, ‘तुम्हें महाराज से स्नेह था तो इसकी रक्षा करो|’

‘महाराज नही रहे, मुझे बताया क्यों नही गया? उनके बिना मैं कैसे जीवित रहूँगा?’ हाथी ने दुखी होकर कहा| फिर घुटने टेककर रानी से आशीर्वाद लिया|

मंत्री ने हाथी को सारी बात समझा दी|

हाथी युद्ध में जाने के लिए तैयार हो गया| यह सुनकर सैनिकों में उमंग की लहर दौड़ गई|

‘सेना को कूच कराओ|’ हाथी ने आदेश दिया|

फिर हाथी अपनी चिंघाड से दसों दिशाओं को गुंजाता हुआ युद्धस्थल की ओर बढ़ चला| हाथी के पीछे-पीछे सेना जय-जयकार करती हुई आगे बढ़ी|

घमासान युद्ध के बाद कौशल की सेना तितर-बितर हो गई| विजयी होकर हाथी रानी के पास आया| अपना शीश उसने नन्हें राजकुमार के आगे झुकाया और बोला, ‘महाराज की मृत्यु का मुझे गहरा दुख है| मेरा जीवन अब तुम्हारे लिए समर्पित है| तुम्हारा मंगल हो|’

नन्हा राजकुमार धीरे-धीरे बड़ा हुआ और राज्य की बागडोर संभाल ली| शांति और न्यायप्रियता के साथ वह उस बुद्धिमान हाथी के साथ सुख से जीवन व्यतीत करने लगा|

शिक्षा: हाथी को स्वामिभक्ति विरासत में मिली थी| पहले उसने दोनों मित्रों की सेवा की, फिर उनकी निर्धनता दूर कर राजा का प्रिय बन गया| उसी निष्ठा की प्रतिबद्धता उसने राजपुत्र के प्रति भी दर्शाई| उसने यह भी बताया कि साहस हो तो कठिनाइयों पर कैसे विजय पाई जा सकती है|

अंत तक स
हम सब चो