सेवा का आदर्श
एक बार युधिष्ठिर ने राजसूर्य यज्ञ करवाया| बहुत-से लोगों को आमंत्रित किया| भगवान श्रीकृष्ण भी आए| उन्होंने युधिष्ठिर से कहा – “सब लोग काम कर रहे हैं| मुझे भी कोई काम दे दीजिए|”
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युधिष्ठिर ने उनकी ओर देखकर कहा – “आपके लिए हमारे पास कोई काम नहीं है|”
श्रीकृष्ण बोले – “लेकिन मैं बेकार नहीं रहना चाहता| मुझे कुछ-न-कुछ काम तो दे ही दीजिए|”
युधिष्ठिर ने कहा – “मेरे पास तो कोई काम है नहीं| यदि आपको कुछ करना ही हो तो अपना काम आप स्वयं तलाश कर लीजिए|”
श्रीकृष्ण बोले – “ठीक है मैंने अपना काम खोज लिया|”
युधिष्ठिर ने उत्सुकता से पूछा – “क्या काम खोज लिया?”
कृष्ण ने कहा – “मैं सबकी जूठी पत्तलें उठाऊंगा और सफाई करूंगा|” यह सुनकर युधिष्ठिर अवाक् रह गए| कृष्ण ने वही किया| सेवा से बढ़कर और क्या हो सकता है|