सेर को सवा सिर (बादशाह अकबर और बीरबल)
रामदास और मोतीराम दोनों बहुत अच्छे मित्र थे| एक बार मोतीराम को किसी काम से दूसरे शहर में जाना पड़ा| काम अधिक समय तक चलने वाला था, अत; वह सपरिवार गया और जाते समय अपने मकान की चाबी तथा कीमती समान अपने मित्र रामदास को सौंप दिया|
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दो वर्ष बाद जब मोतीराम वापस लौटा तो देखा कि उसके घर के दरवाजे खुले हुए हैं और घर खाली है| यह देखकर वह रामदास के घर गया तो उसने उसे पहचानने से ही इंकार कर दिया|
रामदास के आगे काफी गिड़गिड़ाया मोतीराम और अपने सामान की मांग करता रहा| किंतु रामदास ने उसे डपटकर घर से निकाल दिया| वह मन-ही-मन तड़प उठा| उसे अपने दोस्त से ऐसी उम्मीद नहीं थी किंतु जब दोस्त ने उसे छल ही लिया तो उसने भी दोस्त को सबक सिखाने की ठानी और सीधा दरबार में जाकर बादशाह अकबर से शिकायत की| बादशाह को मोतीराम की बात में दम नजर नहीं आया क्योंकि न तो उसके पास कोई गवाह था और न ही कोई सबूत, फिर भी बादशाह ने इस विश्वास के साथ कि शायद मोतीराम को न्याय मिल जाए, यह मसला बीरबल को सौंप दिया|
बीरबल ने सारा वृत्तांत सुना और मोतीराम को पांच दिन बाद दरबार में बुलाया| दो दिन तक तो बीरबल ने कुछ नहीं किया, तीसरे दिन उसने रामदास को दरबार में बुलवाया| पहले तो रामदास डर गया, उसे लगा शायद मोतीराम ने उसकी शिकायत की है, इसलिए बुलावा आया है| फिर भी वह दरबार में गया और बीरबल से मिला| बीरबल ने उससे मोतीराम के बारे में कोई बात नहीं की, इससे रामदास का हौसला बढ़ा| इसके बाद बीरबल ने कहा – “भाई रामदास, दरबार में अब छोटे-छोटे मसले पर भी फैसले करने पड़ते हैं, जिससे अन्य दरबारी कामों में खलल पड़ता है| अत: बादशाह ने एक न्यायालय तुम्हें बना दूं, क्योंकि मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम ईमानदार भी बहुत हो, हमें आज तक तुम्हारी कोई शिकायत नहीं मिली, बोलो तुम्हें प्रस्ताव मंजूर है?”
रामदास गर्व से फूल गया, और प्रस्ताव को मंजूर कर लिया| बीरबल ने उसे यह कहकर विदा किया कि कुछ दिन बाद उसे बुला लेंगे|
घर लौटकर रामदास ने सोचा कि उसे मोतीराम का सारा सामान लौटा देना चाहिए, क्योंकि यदि उसने दरबार में शिकायत कर दी तो उसका न्यायधीश का पद जाता रहेगा| उसने इज्जत के साथ मोतीराम को बुलाया और उसका सारा सामान लौटा दिया|
दो दिन बाद मोतीराम ने बीरबल को सामान मिल जाने की सूचना दे दी| बीरबल अपनी युक्ति कामयाब होते देख खुश हो गया| उधर रामदास बीरबल के बुलावे का इंतजार करने लगा| जब कई दिन तक दरबार से बुलावा नहीं आया तो वह स्वयं जाकर बीरबल से मिला और न्यायाधीश के पद के बारे में पूछा| बीरबल ने कहा – “न्यायाधीश और तुम…? यह पद तो सच्चे और ईमानदार लोगों के लिए होता है और तुम इस काबिल नहीं हो, तुमने तो अपने मित्र के साथ ही धोखा किया था, ऐसे में तुम क्या न्याय करोगे, तुम जा सकते हो|”
बीरबल की बात सुनकर रामदास का चेहरा उतर गया| उसे उसके किए का फल मिल गया था| बादशाह अकबर को भी पता चल गया था कि बीरबल ने मामले को सुलझा लिया है| वह बीरबल की चतुराई पर बेहद खुश हुए|