स्वार्थ की मित्रता
एक शेर जिस गुफ़ा में रहता था उसी गुफ़ा में एक चूहे ने बिल बना रखा था| वह चूहा हमेशा शेर को परेशान करता रहता- वह कभी शेर के बाल कुतर देता, कभी पीठ पर नाचने-कूदने लग जाता- कभी-कभी तो वह शेर को काट भी लेता था| शेर उससे बहुत ही दुखी था|
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शेर ने कई बार उस चूहे को पकड़ने की कोशिश की, पर उसे असफलता ही मिली| एक दिन शेर को जंगल में एक बिलाव मिला| शेर को वह बिलाव चूहे से मुक्ति दिलाने का साधन नज़र आया| उसने अपने स्वार्थ की खातिर उससे मित्रता कर ली और उसे अपनी गुफ़ा में ले आया| शेर जो भी शिकार करता उसमें से कुछ अंश बिलाव को दे देता|
बिलाव के आ जाने से चूहा भी अपने बिल से बाहर नही निकल पा रहा था| शेर अब निश्चिंत होकर सोता था|
उधर भूख से व्याकुल चूहा आखिर कब तक बिल में रहता| एक दोपहर जब शेर शिकार करने गया हुआ था तो वह बिलाव से नज़र बचाकर बिल से निकला और अपने लिए भोजन की तलाश करने लगा| तभी बिलाव की नज़र उस पर पड़ गई| उसने एक ही झपट्टे में चूहे को पकड़ लिया और उसे मार डाला|
शाम को जब शेर वापस गुफ़ा में लौटा तो बिलाव ने सोचा कि अपने मित्र को यह खुशखबरी देनी चाहिए कि उसके दुश्मन चूहे का अंत हो गया है|
लेकिन जब बिलाव ने शेर को यह बताया कि चूहा मर गया है तो शेर का बिलाव के प्रति व्यवहार ही बदल गया| शेर का स्वार्थ तो पूरा हो चुका था| अतः उसने बिलाव को शिकार में से हिस्सा देना भी बंद कर दिया|
अंततः बिलाव कुछ दिन बाद स्वयं ही शेर की गुफ़ा छोड़ कर चला गया|
कथा-सार
मित्रता करने से पहले सामने वाले को परख लेना चाहिए कि वह इसके योग्य है भी या नही| बिलाव ने शेर से मित्रता की लेकिन उसके स्वार्थ को न पहचान सका| स्वार्थ पूरा होते ही शेर ने उसे अंगूठा दिखा दिया, अतः स्वार्थपूर्ण मित्रता से सदैव बचना चाहिए|