सत्संग एवं भगवान् के चरणोदक की महिमा
प्राचीन काल में गुलिक नामक एक व्याध था| वह बड़ा क्रूर था| वह पराये धन को हड़पने में सदा तत्पर रहता था| धन के लिए प्राणियों की, मनुष्यों की हत्या करने में भी उसके मन में हिचक न थी| वह सदा इसी अवसर की प्रतीक्षा में रहता था कि पराई स्त्रियों का अपहरण कर लूँ, कपटपूर्वक धन हरण कर लूँ, पशु-प्राणियों की हत्या कर दूँ|
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धन के लिए ब्रहामणों को मारने में भी वह नही चूकता था| देव सम्पति को हड़पने में भी उसे सुख का अनुभव होता था| किसी भी प्रकार के पाप-कर्म करने में उसे ग्लानि नही होती थी| इसी पापपूर्ण धन से वह अपने परिवार का पालन-पोषण करता था|
एक दिन गुलिक व्याध धन की खोज में अपने आवास-स्थान से बहुत दूर निकल गया| मार्ग में एक उपवन में उसने एक भव्य विष्णु-मंदिर देखा| वह मंदिर कई स्वर्ण-कलशों से सुसज्ज्ति था| भारी-भारी स्वर्ण-कलशों को देखकर गुलिक का पापपूर्ण मन नाच उठा| वह उन्हें लूटने की योजना मन में बनाने लगा| इसी उद्देश्य से उसने मंदिर में प्रवेश किया| वहाँ उसे एक ब्राह्मण देवता के दर्शन हुए| तपस्या के तेज़ से ब्राहमण का मुखमंडल प्रकाशयुक्त था, उस पर ज्ञान एवं प्रकाश की आभा छिटक रही थी| भगवान् विष्णु की सेवा ही उनके जीवन की निधि थी| वे सदा सेवा में तत्पर थे| उनका ह्रदय दया से भरा था| सेवा-कार्य से निवृत होने पर वे भगवान् के ध्यान में तल्लीन रहते थे| उनका नाम उतंक था|
गुलिक ने चोरी के दृढ़ निश्चय से ही मंदिर में प्रवेश किया था| उसने सोचा कि ये उतंक ऋषि ही मेरे मार्ग के बाधक है, अतः उन्हें मारने के लिए उसने तत्काल अपनी तलवार निकाल ली और उन पर आक्रमण कर दिया| उसने उनकी जटा पकड़कर धरती पर पटक दिया| उनकी छाती पर पैर रखकर वह उन्हें मारना चाहता था कि मुनि की विनम्र निष्कपट वाणी उसके कानों में पड़ी-
‘मनुष्य जब तक धन कमाता है, तभी तक भाई-बंधु उससे संबंध रखते हैं, परंतु इहलोक और परलोक में केवल धर्म और अधर्म ही सदा उसके साथ रहते हैं| वहाँ दूसरा कोई साथी नही है|’
मुनि की विनम्र गूढ़ वाणी सुनकर गुलिक ठिठक गया, उसके हाथ रुक गए| सत्संग की बड़ी महिमा है| भगवान् की महती कृपा से ही संतो के दर्शन एवं उनका सत्संग प्राप्त होता है| दुष्टजनों को सुधारने का सत्संग ही महारसायन है| दुष्ट सत्संग पाकर सुधर जाते हैं| पारस लोहे को स्वर्ण बना देता है और सत्संग दुष्ट को निर्मल कर देता है|
मुनि उतंक ने निर्भयतापूर्वक गुलिक से कहा- ‘भैया! मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया है? मैं तो सर्वथा निरपराध हूँ और भगवान् विष्णु की शरण हूँ| भगवान् तो सबके हितकारी है और सदा ही अत्यंत प्रिय है| फिर क्यों न तुम सर्वभयहारी प्रभु की शरण में जाते हो? वे दीनवत्सल सदा के लिए तुम्हें अभय कर देंगे|’
‘भैया गुलिक! शक्तिशाली पुरुष तो अपराधियों को, पापियों को भी नही मारते, फिर तुम मुझे व्यर्थ क्यों मार रहे हो? सज्जन पुरुष तो सताए जाने पर भी सतानेवाले को मारते नही, क्षमा कर देते हैं| जिनकी बुद्धि सदा दूसरों के हित में लगी रहती है, वे पुरुष कभी किसी से भी द्वेष नही करते- ऐसे पुरुष भगवान् को बड़े प्रिय होती है|’
‘व्याध! तुम दूसरों का धन लूटकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हो, परंतु मृत्यु के समय तुम्हें माता-पिता, तुम्हारी पुत्र-पुत्रियाँ, तुम्हारी ममता की समस्त वस्तुएँ यही- इस पृथ्वी पर ही रह जाएँगी| तुम्हारे साथ केवल तुम्हारे पाप-कर्म जाएँगे| यह संपूर्ण चराचर जगत् दैव के अधीन है, अतः दैव ही जन्म और मृत्यु को जानता है, दूसरा नही| ममता से व्याकुल चित वाले मनुष्य महान् दुख सहते है| वे बड़े-बड़े पाप करके धन इकट्ठा करते है| उस धन को उसके बंधु-बांधव भोगते है, परंतु वह मनुष्य अपने पाप कर्मों के फल स्वरुप अकेला नरक-यंत्रणा भोगता है| उस पाप-कर्म में उसका कोई हिस्सा नही बाँट सकता| अतः तुम पाप-कर्म करना छोड़ दो|’
ऐसे वचन सुनते ही गुलिक ने महर्षि उतंक को छोड़ दिया| सत्संग, भगवद् विग्रह एवं संत-दर्शन का उसकी बुद्धि पर प्रभाव पड़ा| उसका ह्रदय अपने कुकृत्यों का स्मरण करके जलने लगा| तब गुलिक महर्षि के चरणों में गिर पड़ा और अपने अपराधों के लिए क्षमा माँगने लगा| उसने कहा- ‘विप्रवर! मैंने बड़े-बड़े भयंकर पाप किए है| अब मेरा उद्धार कैसे होगा? मेरी अब क्या गति होगी? मेरी आयु व्यर्थ चली गई|’
आत्मग्लानि से पीड़ित गुलिक व्याध अपने आंतरिक संताप की अग्नि से झुलसने लगा और उसने उतंक मुनि के चरणों में ही अपने प्राण त्याग दिये| मुनि का ह्रदय करुणा से द्रवित हो गया| उन्होंने भगवान् विष्णु के चरणोंदक से व्याध का संपूर्ण शरीर सींच दिया| चरणोंदक के प्रभाव से एवं संत के स्पर्श से व्याध के समस्त पाप नष्ट हो गए| वह भगवान् विष्णु के चरणों के अधिकारी हो गया| वह व्याध अपने दिव्य शरीर से मुनि उतंक पर पुष्प की वर्षा करते हुए और उनका गुण-कीर्तन करते हुए विष्णु-धाम में चला गया|
जो मनुष्य किसी के संग से, स्नेह से, भय से, लोभ से अथवा अज्ञान से भी भगवान् विष्णु की उपासना करता है, वह अक्षय सुख का भागी होता है| भगवान् विष्णु का चरणोदक अकाल मृत्यु का निवारण, समस्त रोगों का नाशक और संपूर्ण दुखों की शांति करने वाला माना गया है|