सास-बहू को लड़ाई मिटाने वाला विलक्ष्ण तावीज
एक महात्मा थे| वे पैदल घूम-घूमकर सत्संग का प्रचार किया करते थे| वे एक गांव में जाते, कुछ दिन ठहरकर सत्संग करते और फिर वहाँ से दूसरे गांव चल देते| घूमते घूमते वे एक गांव में पहुँचे| गांव में सब जगह प्रचार हो गया कि महाराज जी पधारे हैं, आज अमुक जगह सत्संग होगा| सत्संग के समय बहुत से भाई बहन इकट्ठे हुए|
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जब सत्संग पूरा हुआ, तब एक माताजी महाराज जी के पास जाकर बोलीं-‘महाराजजी! आप अमुक गांव में जाया करते हो!’
महाराज जी-‘हाँ माई, जाया करता हूँ|’
माताजी-‘वहाँ आपका अमुक सेवक है| आप उनके घर भी जाया करते हो!’
महाराज जी -‘हाँ, जाया करता हूँ|’
माता जी-‘यह मेरी बहू उसी की बेटी है| यह मेरे से लडती है| मेरा कहना नहीं मानती है!’
लोगों में महाराज जी का एक भय था| कोई गड़बड़ी करता तो कहते कि हम महाराज जी से कह देंगे| वह कहता कि भाई, महाराज जी को मत कहना, तुम जैसा कहोगे, वैसा हम करेंगे| महाराज जी कोई राजा की तरह दण्ड नहीं देते थे| वे बड़े प्रेम से कहते थे कि भाई, तुम ऐसा क्यों करते हो? लोग उनकी बात का आदर करते थे| प्रेम का जो शासन होता है, वह बड़ा विलक्षण होता है| राजा का शासन तो राजसी-तमसी होता है, पर संतो का शासन सात्विक होता है|
महाराज जी ने उस माता जी की बहू को बुलाया और उससे कहा कि बेटी! तू सास से क्यों लड़ती है?’ महाराज जी ने ऐसा कहा तो उसकी आँख से झर-झर आँसू बहने लग गये| वह जब छोटी बच्ची थी, तब वह महाराज जी के सामने खेला करती थी| अब बड़ी हो गयी, विवाह हो गया तो ससुराल में आ गयी| उसके मन में महाराज जी के सामने अपनी शिकायत सुनी तो वह घबरा गयी और रोने लग गयी| महाराज जी ने आश्वासन दिया तो वह बोली-महाराज जी मैंने कोई कसूर तो नहीं किया| मैं सास को दुःख नहीं देती हूँ, फिर भी उनको मेरा काम पसंद नहीं आता| मैं क्या करूँ? सास बिना कारण मेरे से लड़ती है!’
बहू तो कहती है कि सास लड़ती है और सास कहती है कि बहू लड़ती है! लड़ाई कम-से-कम दो आदमियों में होती है| अकेले में लड़ाई नहीं होती| सैकड़ों-हजारों आदमी मिलकर लड़ाई कर सकते हैं, पर अकेला आदमी लड़ाई नहीं करता है और दूसरा कहता है कि लड़ाई करता है| अपना अवगुण अपने को नहीं दीखता|
महारज जी ने कहा-‘बेटी! तू घबरा मत| मैं एक ऐसा यंत्र बनाकर देता हूं, जिससे लड़ाई मिट जायगी|’ वहाँ उसका देवर खड़ा था| उसको महराज जी ने कागज, कलम, दवात और एक तावीज लाने के लिए कहा| वह जाकर चारों चीजे ले आया| महाराज जी ने कागज के एक टुकड़े पर कुछ लिख दिया और उसको समेटकर तावीज में बंद कर दिया|
महाराज जी -‘बेटी! यह तावीज तू बाँध के| तेरे घर की लड़ाई मिट जायगी| परन्तु इसके साथ तेरे को मेरी बात माननी पड़ेगी|’
बहू-‘हाँ महाराज जी! आप जैसा कहोगे, वैसा ही करूँगी|’
महाराजजी-‘दो बातें हैं एक तो सास कोई बात कहे तो सामने मत बोलना और दूसरा, सास जो काम कहे, चट उठकर कर देना| इन दो बातों का तू पालन कर लेगी तो यह यंत्र सिद्ध हो जाएगा|’
बहू-‘महाराजजी! कितना दिन तक करना पड़ेगा?’
महाराज जी-कम-से-कम बारह महीने पालन कर लिया तो सब काम ठीक हो जाएगा| पर बीच में कभी गयी तो उस दिन से बारह महीने गिने जाएंगे| उससे पहले जो दिन बीते, वे गिनती में नहीं आयेंगे|’
बहू-‘ठीक है, आप जैसा कहते है, वैसा ही करूँगी|’
बहू ने तावीज लेकर बाँध लिया महाराजजी ने चार-पांच दिन और सत्संग किया, फिर दूसरे दिन यहाँ रुकेंगे| हमारे यहाँ पहले ऐसे संतो की परम्परा चलती थी और लोगों पर उनका धार्मिक शासन चलता था| उनके शासन से लोग प्रभावित होते थे| लोग उन संतो का बड़े पूज्यभाव से देखते थे और उनकी आज्ञा का पालन करते थे| इससे गांव में बड़ी शान्ति रहती थी|
बहू महारज जी के बताये नियमों का पालन करने लगी| सास कोई काम कहती तो वह चट हाथ जोड़कर हाजिर हो जाती थी और सामने नहीं बोलती थी| सास ने मन में विचार किया कि महाराज जी का यंत्र बड़ा विलक्षण है! देखो, एक दिन में बहू सुधर गयी| घरवाले भी सब राजी हो गये| सास-बहू आपस में प्रेम से रहने लगीं| बहू आज्ञा माने तो वह सास को बेटी से भी अधिक प्यारी लगती है; क्योंकि बेटी तो थोड़े दिन घर पर रहती है, फिर अपने घर चली जाती हैं, पर बहू तो सदा ही पास में रहती है| खटपट तो तब होती है, जब वह सास के सामने बोल दे और उसका कहना नही करें|
कुछ दिनों के बाद महाराज जी फिर आये तो उन्होंने पूछा-‘माताजी! ठीक है न?’ वह बोली-‘महाराजजी! आपकी कृपा से बहुत ठीक है! बहू सुधर गयी है|’ बहू से पूछा तो वह बोली-महाराजजी! एक दिन मेरे से गलती हो गयी, मैं सास के सामने बोल गयी!’ महाराज जी ने कहा-‘बेटी! उसी दिन से बारह महीने गिने जायेंगे, पहले वाले दिन गिनती में नहीं आयेंगे| एकादशी के दिन अन्न का दाना भी खा ले तो व्रत भंग हो जाता है!’ बहू बोली-ठीक है महाराज जी! अब मै ध्यान रखूंगी|’ इस तरह डेढ़-दो वर्षों में उसके बारह महीने पूरे हो गये| सास-बहू में परस्पर बड़ा प्रेम हो गया|
दो-ढाई वर्ष बीतने पर महाराज जी फिर उस गांव में आये और उनसे बोले कि ‘एक दिन हम तुम्हारे घर भिक्षा करेंगे|’ वे बहुत राजी हुए| महाराजजी बड़े त्यागी संत थे| वे दो-चार घरों से भिक्षा लेकर आते थे| कपड़े फट जाते थे तो कोई ज्यादा आग्रह करता तो कपड़ा ले लेते थे| रुपयों पैसों का कोई काम नहीं था| जब वे उनके घर भिक्षा के लिए गये तो बहुत से लोग इकट्ठा हो गये कि महाराज जी आये हैं, सत्संग सुनायेंगे| महाराज जी ने भिक्षा की और सत्संग सुनाया| फिर कहा कि ‘दूसरे घरों के जो लोग आये हैं, उनको भेज दो| केवल आपके घरवाले ही रहें, आपसे एक बात कहानी है|’ घरवालों ने हाथ जोड़कर सबसे कह दिया कि ‘भाई, अब सत्संग हो गया अब आप सब लोग जाओ|’ सब लोग चले गये| घरवाले महाराज जी के पास आकर बैठ गये|
महाराज जी बोले कि ‘मैंने जो तावीज बनाकर दी थी, उसको लाओ|’ उन्होंने तावीज लाकर महाराजजी के सामने रख दी| महाराज जी ने कहा कि ‘इसको खोलकर पढ़ो, इसमें क्या लिखा है?’ उन्होंने तावीज के भीतर रखा कागज खोलकर पढ़ा| उसमें लिखा था-
‘सास-बहू राजी तो साधु को क्या और सास-बहू नाराज तो साधु को क्या!’
महाराज जी बोले-‘सास-बहू शान्ति रहें तो हमें क्या मतलब और रोजाना आपस में लड़े तो हमें क्या मतलब? हमारा मतलब तो यह है कि तुम्हारे घर में शान्ति, आनंद रहे| यह शक्ति इस यंत्र में नहीं है| यह शक्ति इस बात में है कि सामने न बोले और जैसा कहे, वैसा कर दे| देखो, दूसरा कोई जन्तर-मन्तर की बात पर विश्वास हो जाय, इसलिए यंत्र बनाकर दिया है| बड़ों के सामने बोलना नहीं और सभी लोग पालन करें तो आपके लोक और परलोक दोनों सुधर जायेंगे| कभी सास कोई ऐसा काम करने को ख दे, जिससे आगे नुकसान दीखता हो तो हाथ जोड़कर खड़ी ह जाय| वह पूछे कि खड़ी क्यों है, तो कहे कि आपका काम तो मैं कर दूंगी, पर इससे बिगाड़ हो जायेगा| वह कहे कि नहीं-नहीं, यह काम करना है तो वैसा कर दे| अगर काम बिगड़ जाय तो शेखी न बघारे कि देखो मैंने तो पहले ही ख दिया था, पर आपने माना नही! प्रत्युत बड़ी नम्रता, सरलता, निरभिमानता रखे|’ महाराजजी की इस बातों का सब पर बड़ा असर पड़ा|
सब भाई-बहनों से प्रार्थना है कि आपलोग भी आज इस विलक्षण यंत्र को धारण कर लें कि बड़ों के सामने नहीं बोलेंगे, उनका तिरस्कार, अपमान, अवहेलना नहीं करेंगे और वे जैसा कहेंगे, वैसा कर देंगे| फिर आपके घरों में भी शान्ति, आनन्द हो जाएगा|