सार्थक पूजा
महाराष्ट्र में एक बड़े संत हुए है- संत एकनाथ| वह एक तीर्थोटन करते हुए प्रयाग राज पहुँचे|
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वहाँ उन्होंने अपनी बहंगी कावेरी में रखी त्रिवेणी के पवित्र जल से भरी| सोचा, उसे रामेश्वरम में चढ़ाएँगे| उनके साथ पूरी संतमण्डली थी| यात्रा करते-करते संतो की टोली रामेश्वरम के पास जा पहुँची|
लक्ष्य समीप ही था कि संत एकनाथ ने देखा- रामेश्वरम तीर्थ के मुख्य द्वार के समीप रास्ते पर एक गधा पानी की प्यास से व्याकुल तड़प रहा था| लक्षणों में लगता था कि यदि कुछ पलो में उसे पानी न मिला तो वह तड़प-तड़पकर जान दे देगा| संत एकनाथ उसकी दशा देखकर द्रवित हो गए| अपनी बहंगी से उन्होंने कावेरी खोली और उससे पवित्र त्रिवेणी जल लेकर उस प्यासे गधे को पिला दिया| वह गधा स्वस्थ सशक्त होकर घास चरने लगा|
संतो की उस मण्डली को संत एकनाथ का यह व्यवहार पसंद नहीं आया| एक बड़बोला साधु बोल उठा- “एकनाथ जी, आप तो बड़े संत समझे जाते हैं, परंतु आप तो महामूर्ख निकले| इतने कष्ट-तपस्या कर प्रयाग राज का पवित्र गंगाजल आप रामेश्वरम के मंदिर पर भेंट चढ़ाने के पुण्य से वंछित रह गए|” संत एकनाथ ने हाथ जोड़कर कहा- “हमारा दयालु भगवान् तो सभी चराचर जीवों में व्याप्त है, सारा संसार ही उसका असली स्वरुप है| मैंने तो एक पीड़ित, दुःखी प्राणी को पानी पिला दिया| उसकी प्राण-रक्षा की| समझो मेरी पूजा तो सार्थक हो गई|” इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि किसी के काम आना ही अपने आप में सबसे बड़ी पूजा है|