संयम का जीवन
स्वामी दयानंद के जीवन की एक सत्य-कथा है| स्वामी जी के उपदेशों की चर्चा सुनकर एक प्रतिष्ठित मुसलमान भी उनके पास गया, परंतु उसका मुख हमेशा उदास रहता था| एक दिन स्वामी जी ने कारण पूछा| उसने उत्तर दिया कि मेरे कई बच्चे हुए हैं, परंतु जीता कोई नहीं, इसलिए मन सदा उदास रहता है|
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स्वामी जी ने कहा- “उपाय तो हम बतला देते हैं, परंतु है कुछ कठिन| यदि तुम करो तो हम विश्वास दिलाते हैं कि तुम्हारे घर पुत्र होगा और जीता रहेगा|” उसने स्वामी जी के चरण पकड़ लिए और कहा कि महाराज, जो कुछ आप कहेंगे उसे पूरा करूँगा| इस पर स्वामी जी ने कहा- “सबसे बड़ी शर्त एक वर्ष तक पूर्ण ब्रह्मचर्य रखने की है| अगर तुम यह स्वीकार कर लो तो अपनी स्त्री से पूछकर आओ कि इसे वह भी स्वीकार करती है या नहीं?” दूसरे दिन वह आया और उसने स्वामी जी से कहा- “हम दोनों को आपकी यह बात स्वीकार है|” स्वामी जी ने उन दोनों को गर्म वस्तुएँ, मांस-मदिरा छोड़ देने के लिए कहा, साथ ही पूर्ण ब्रहमचर्य रखने के लिए कहा|
दोनों मुसलमानी पति-पत्नी ने साल-भर तक मांस-मदिरा छोड़ दिया, पूरा ब्रह्मचर्य व्रत रखा, उसके बाद गृहस्थ, धर्म का पालन किया तो उन्हें पुत्र हुआ और वह उस परिवार में दीर्घायु हुआ| उस दिन से उस परिवार ने मांस-मदिरा छोड़कर स्वयं, ब्रहमचर्य से रहने की महता भली प्रकार अनुभव कर ली|
प्रत्येक मनुष्य को आत्म संयम बरतना चाहिए|