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संकट में बचाव ज़रुरी

एक तालाब में बहुत-सी मछलियाँ व तीन बड़े मगरमच्छ थे, जो आपस में गहरे मित्र थे|

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एक दिन उस तालाब के पास से कुछ मछुआरे गुजरे| उनकी नज़र जब तालाब पर पड़ी तो उनमें से एक बोला, ‘इस तालाब में तो बहुत मछलियाँ है…कल ही आकर यहाँ जाल डालते है|’

मछुआरों की यह बात उन तीन मगरमच्छों ने भी सुनी| वे तीनों तालाब के अंदर गए और सभी मछलियों को आने वाले संकट की जानकारी दी| अंत में सभी ने मिलकर यह फैसला किया कि तालाब को छोड़ देना ही उचित है|

किन्तु एक मगरमच्छ उनकी इस सलाह से सहमत न था| उनके अनुसार इस तरह डर कर अपना घरबार छोड़ना ठीक नही है|

दूसरे मगरमच्छ ने उसे समझाया, यदि संकट की जानकारी मिल जाए तो उससे बचाव करना भी ज़रूरी है वरना हम सब मारे जाऐंगे|’

लेकिन इन तर्कों का उस मगरमच्छ पर कोई असर नही पड़ा| तालाब की कुछ मछलियाँ जो उस मगरमच्छ की साथी थी उन्हें छोड़कर शेष दोनों मगरमच्छ तथा मछलियाँ रातों-रात तालाब छोड़कर चले गए|

अगले दिन सुबह मछुआरों ने तालाब में जाल डाल दिया वह मगरमच्छ तथा बची-खुची मछलियाँ उस जाल में फँस गई|

इस तरह संकट की जानकारी होते हुए भी अपना बचाव न करने के कारण वे सब मारे गए|


कथा-सार 

संकट का आहट पाकर भी जो उससे बचने के उपाय नही करते वे मूर्ख होते है| ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता खुद करते हैं|