Homeशिक्षाप्रद कथाएँसंकट की घड़ी और साहस

संकट की घड़ी और साहस

एक समय की बात है बाल गंगाधर तिलक छात्रावास की छ्त पर बैठे हुए अपने साथियों के साथ गपशप कर रहे थे| एक के बाद एक सभी साथियों के सामने यह समस्या आयी कि अगर अचानक नीचे किसी पर मुसीबत आ जाए तो उसको बचाने के लिए जल्दी से जल्दी नीचे कौन कैसे जाएगा?

“संकट की घड़ी और साहस” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

पहला लड़का बोला- “मैं सीढ़ियों से भागता हुआ जाऊँगा|”

दूसरे ने कहा- “मैं रस्सी लगाकर नीचे उतारूँगा|”

अपनी-अपनी तरफ से सब नीचे पहुँचने का रास्ता बता रहे थे कि एक ने पूछा- “तिलक, तुम संकट के समय में क्या करोगे?”

बाल गंगाधर ने अपनी धोती बाँधी और बड़ी सावधानी और कुशलता से कहा- “मैं ऐसा करूँगा|” कहकर उन्होंने नीचे छलांग लगा दी|

सभी साथी चिल्ला पड़े- “अरे यह क्या?” फिर ये देखने के लिए सब नीचे भागे कि कहीं बाल गंगाधर को चोट तो नहीं लगी? जब सब जीने में पहुँचे तब उन्हें यह देखकर तसल्ली हुई कि बाल स्वयम चलकर ऊपर आ रहा था|

यही बालक आगे चलकर अपने साहसी गुणों के कारण भारतीय स्वतंत्रता का जनक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक रुप में प्रसिद्ध हुआ| अपने देशवासियों को उन्होंने ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का मूलमंत्र दिया था|

इससे हमें शिक्षा मिलती है इस संकट की घड़ी में किसी भी व्यक्ति को संयम नहीं होना चाहिये, बल्कि साहस से संकट का मुकाबला करना चाहिये|

कर्ण का