संकल्प की शक्ति
एक संन्यासी जीवन के रहस्यों को खोजने के लिए कई दिनों तक तपस्या और कठोर साधना में लगे रहे, पर आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई।
“संकल्प की शक्ति” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
थक हारकर उन्होंने तपस्या छोड़कर घर लौटने का निश्चय किया। दुख और पराजय की भावना ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया था। वह लड़खड़ाते कदमों से वापस आ रहे थे। रास्ते में उन्हें प्यास लगी। पानी पीने के लिए वह एक नदी के किनारे गए। सामने उन्हें एक अजीब नजारा दिखाई दिया। एक नन्ही गिलहरी नदी के जल में अपनी पूंछ भिगोकर पानी बाहर छिड़क रही थी। गिलहरी बिना थके अविचल भाव से इस कार्य को करती जा रही थी। संन्यासी को उत्सुकता हुई। उन्होंने गिलहरी से पूछा, ‘प्यारी गिलहरी, तुम यह क्या कर रही हो?’
गिलहरी ने विनम्रता से उत्तर दिया, ‘इस नदी ने मेरे बच्चों को बहाकर मार डाला। मैं उसी का बदला ले रही हूं। मैं नदी को सुखाकर ही छोडूंगी।’ संन्यासी ने कहा, ‘तुम्हारी छोटी सी पूंछ में भला कितनी बूंदें आती होंगी। तुम्हारे इतने छोटे बदन, थोड़े से बल और सीमित साधनों से यह नदी कैसे सूख सकेगी? इतना बड़ा काम असंभव है। तुम इसे कभी खाली नहीं कर सकती।’ गिलहरी बोली, ‘यह नदी कब खाली होगी, यह मैं नहीं जानती। लेकिन मैं अपने काम में निरंतर लगी रहूंगी। मैं श्रम करने और कठिनाइयों से टकराने के लिए तैयार हूं फिर मुझे सफलता क्यों नहीं मिलेगी?’ संन्यासी सोचने लगा कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने थोड़े से साधनों सें इतना बड़ा कार्य करने का स्वप्न देखती है, तब भला मैं उच्च मस्तिष्क और मजबूत बदन वाला विकसित मनुष्य अपनी मंजिल को क्यों नहीं पा सकता। ठीक ही कहा जाता है कि कठिनाइयों से लड़ने के संकल्प से ही मनुष्य में शक्ति का संचार होता है जिसके बूते वह सफलता हासिल करता है। मुसीबतों से लोहा लेकर ही मनुष्य का चरित्र चमकता है और उसमें देवत्व का विकास होता है। यह सोचकर वह फिर साधना के लिए लौट पड़े।