समपर्ण का फल
मुस्लिम संतों में एक बहुत बड़ी संत हुई हैं राबिया| उनमें ईश्वर-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी, वे हर घड़ी प्रभु के चरणों में लौ लगाए रहती थीं| सबको उसी का बंदा मानकर उन्हें प्यार करती थीं और जी-जान से उनकी सेवा करती थीं|
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एक रात को जब वे सो रही थीं, उनके घर में एक चोर घुस आया|
सामने एक चादर रखी थी| चोर ने उसी को उठा लिया, लेकिन जैसे ही वह चलने को हुआ कि उसका सिर चकराने लगा, बदन कांपने लगा और आंखों के सामने अंधेरा छा गया| रास्ता दिखना बंद हो गया|
उसने आंखें मलीं, पर कोई नतीजा नहीं निकला| वह वहीं बैठ गया और चादर को एक ओर रखकर जैसे ही अपना सिर थपथपाने को हुआ कि उसके चक्कर एकदम दूर हो गए, आंखें ठीक हो गईं और सामने दरवाजा दिखाई देने लगा|
चोर उठा, पर ज्योंही उसने चादर हाथ में ली कि उसकी हालत फिर पहले की तरह हो गई| मारे घबराहट के उसने चादर पटक दी|
चादर पटकते ही एक क्षण में वह स्वस्थ हो गया| उसने कई बार चादर उठाई और हर बार उसके साथ ऐसा ही हुआ|
अब वह असमंजस में खड़ा था और उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी कहीं से आवाज आई – ‘तू अपने को क्यों परेशानी में डाल रहा है मुद्दत हुई, राबिया ने अपने को मेरे सुपुर्द कर दिया है जब एक दोस्त सोता है, तब दूसरा जागता है| यह कैसे मुमकिन हो सकता है कि उसकी चीज को कोई चुराकर ले जाए?’
चोर ने सोती राबिया के आगे सिर झुकाया और चादर वहीं छोड़कर घर से बाहर निकल गया| वह खाली हाथ आया था, पर अब उसके हाथ में बहुत संपदा थी|