साक्षात मृत्यु भी नसरुद्दीन को डरा नहीं सकी
ईरान के सुल्तान एक बार किसी कारणवश ईरान के एक कबीले कबूदजामा के सरदार नसरुद्दीन से नाराज हो गए। उन्होंने अपने एक अन्य सरदार को हुक्म दिया कि जाओ और उसका सिर काटकर ले आओ। अपने एक संबंधी से नसरुद्दीन को यह समाचार मालूम हुआ।
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उसके रिश्तेदारों ने उसे तुरंत भाग जाने के लिए कहा तो वह बोला- अगर मेरी मौत मेरे पास आ रही है तो यहां से जाने के बाद वह वहां भी मेरा पीछा करेगी। इसलिए मेरे यहां से भाग जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। सरदार नसरुद्दीन के यहां पहुंचा और उसने सुल्तान का हुक्म सुनाया तो नसरुद्दीन ने हंसते हुए कहा- मेरा सिर हाजिर है लेकिन उसे यहां से काटकर दरबार तक ले जाने में परेशानी होगी।
बेहतर होगा कि मैं आपके साथ दरबार तक चलूं, वहां सुल्तान के सामने आप मेरा सिर काट देना। सरदार राजी हो गया। जब दोनों दरबार पहुंचे तो सुल्तान नसरुद्दीन को जीवित देखकर बेहद नाराज हुआ। हुक्म की तामील न करने के कारण उसने अपने सरदार को भी मौत की सजा सुना दी।
तब नसरुद्दीन ने एक रुबाई में कहा- मैं अपनी बुद्धि के नेत्रों में तेरे द्वार के रजकणों को भरे हुए अकेला नहीं बल्कि सैकड़ों प्रार्थनाओं के साथ आया हूं। तुमने मेरा सिर मांगा था तो मैं यह सिर दूसरे किसी को क्यों देता? इसीलिए मैं अपना सिर अपनी गर्दन पर डालकर तुम्हारे लिए ला रहा हूं। नसरुद्दीन का यह निर्भय उत्तर सुनकर सुल्तान खुश हो गया और दोनों को छोड़ दिया।
कथा संदेश देती है कि विकट परिस्थिति में भी निर्भयता से कार्य करना चाहिए। निर्भयता हमें ऐसी परिस्थिति से पार पाने का बल प्रदान करती है।