साधु की बातों का मर्म समझ लज्जित हुए दुष्ट
एक अलमस्त साधु कुछ जिज्ञासुओं के मध्य बैठा बातें कर रहा था। जिज्ञासु उससे अपने प्रश्नों का समाधान प्राप्त कर रहे थे और साधु धर्यपूर्वक उनके प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। प्रश्न करने वालों में कुछ उद्दंड लोग भी बैठे थे। इनमें से एक ने पूछा- बाबा! यह बताओ कि कुछ लोग डंडा लेकर आपको मारने आएं तो आप क्या करोगे? प्रश्न सुनकर साधु बहुत हंसे, फिर बोले- इसका उपाय तो बहुत ही सरल है।
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जब मेरे साथ ऐसा होगा तो मैं अपने किले में जा बैठूंगा। उस उद्दंड ने पूछा- अच्छा तो आपका किला भी है? बाबा बोले- हां, है तो। उस उद्दंड व्यक्ति और उसके मित्रों ने समझा कि यह बाबा तो पाखंडी है। एक ओर तो फक्कड़ मस्ती की बातें करता है और दूसरी ओर स्वयं किले का ऐश्वर्य भोग रहा है। इससे तो धन ऐंठना चाहिए।
उन सभी ने एक दिन साधु को एकांत में घेर लिया और कहा- बोलो, तुम्हारा किला कहां है, हम देखना चाहते हैं। तब साधु बाबा बोले- बंधुओ! मेरा किला ऐसी चीज नहीं कि तुम्हें बताने में भय लगे। देखो, यह है मेरा किला। और बाबा ने अपने दिल पर हाथ रख दिया। एक दुष्ट ने कहा- ठिठोली करते हो? तब बाबा बोले- नहीं, मेरा मन ही मेरा किला है।
जब मैं इसमें प्रवेश कर जाता हूं तो शेष दुनिया से कट जाता हूं और यहां स्वयं को अत्यंत सुरक्षित पाता हूं, क्योंकि यहां मेरे साथ मेरा परमात्मा होता है। जो व्यक्ति इस किले की महिमा नहीं समझता वह सदा असुरक्षित ही रहता है। दुष्ट उनकी बात का मर्म जानकर लज्जित हो चले गए।
गूढ़ार्थ यह कि व्यक्ति परमेश्वर का ही अंश है इसीलिए जब उसकी आत्मा सांसारिक प्रपंचों से निर्लिप्त होगी तो स्वत: ही परमात्मा के दर्शन हो जाएंगे।