सबसे बड़ी कमी
एक राज था| उसने एक भव्य और मज़बूत महल का निर्माण कराया| सभी ने उस महल की खूब प्रशंसा की| एक बार एक संत-महात्मा राजा के उस महल में आए| राजा ने महात्मा की खूब सेवा-टहल की| उन्हें अपना पूरा महल दिखाया|
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उन्होंने महल के विषय में कोई टिप्पणी नही की| राज चाहता था कि महात्मा उसके महल के बारे में कुछ बोले| इसलिए राजा ने महल की चर्चा भी की| उसकी भव्यता तथा मज़बूती के बारे में बताया| महात्मा फिर भी चुप रहे|
अंततः राजा से रहा नही गया| उसने महात्मा से पूछा, ‘देव! लगता है आपको यह महल पसंद नही आया…शायद इसमें कोई कमी रह गई है|’
महात्मा ने कहा, ‘राजन! महल तो वाकई बेहद सुंदर है व भव्य और मज़बूत इतना कि इसे स्थायी कहा जा सकता है| लेकिन जो इसमें सबसे बड़ी कमी है वह यह कि इस महल में रहने वाले किसी भी जीव का जीवन स्थायी नही है और इसी कमी के कारण मैं चुप था|’
कथा-सार
मनुष्य इस धरती पर खाली हाथ आता है और जब जाता है तो भी उसके हाथ खाली ही होते है| बेशक, राजा का महल सुंदर था, लेकिन संत-महात्मा के किस काम का! वे तो यूँ भी मोह-माया के बंधनों से दूर ही रहते है|