साहस

एक बार की बात है| हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्य के लेखक ‘श्रीराम शर्मा’ एक बार गढ़वाल-टिहरी के एक स्थान पर ठहरे हुए थे कि उनके एक शिकारी मित्र ने एक बूढ़े किसान के साथ उनके पास आकर सूचना दी कि इस बूढ़े की दो गायों को एक बाघ ने मार डाला है|

शर्मा जी को भरोसा नहीं हुआ कि एक बाघ ने एक ही समय में दो गायों को मार डाला| उन्होंने अपने शिकारी मित्र को एक मृत गाय के पास घने जंगल में बैठाया और स्वयं दूसरी गाय से कुछ दूर झाड़ियों में छिपकर बैठ गए|

श्रीराम शर्मा ने दूर से देखा कि लगभग तीन सौ मीटर दूर झाड़ी के सहारे बाघ खड़ा हुआ देख रहा था और चिड़िया शक्तिभर अपने विरोध का प्रदर्शन कर रही थी| बाघ थोड़ी देर बाद अपने शिकार की ओर शाही शान से चला| शर्मा जी ने अपना रास्ता छोड़कर कुछ चक्कर काटते हुए पहाड़ की चोटी पर पहुँचने की ठानी जिससे कि बाघ पर बगल से फायर किया जा सके|

तनिक-सी भी आहट न हो इसलिए शर्मा जी जूते उतारकर ऊपर को लपके| वह धीरे-धीरे एक-एक कदम गिनकर बंदूक दबाए आगे बढ़े| मोड़ पार करते ही देखा तो सामने बाघ आ गया| बाघ उनके इतने पास था कि बंदूक की नाल से उसे छुआ जा सकता था|

कुछ क्षणों तक बाघ और श्रीराम शर्मा आमने-सामने खड़े रहे दोनों ही डटे रहे; बाघ गुर्रा रहा था, उसकी आँखों से ज्वाला-सी निकल रही थी| न शर्मा जी ने फायर किया और न बाघ ने हमला| वह एक मिनट एक युग के समान था| अंत में बाघ एकदम मुड़कर भागा| ज्यों ही बाघ मुड़ा तो शर्मा जी ने समझा कि बाघ भाग गया लेकिन बाघ एकदम ही उनके सिर प्र आ गया| उन्होंने बंदूक दाग दी| जंगल गूंज गया| गोली बाघ के पेट में लगी थी| बाघ गिरकर खड़ की ओर फुटबॉल की तरह लुढ़कने लगा| शर्मा जी भी लुढ़के| एक पेड़ के पास दोनों ही ठिठक गए| बाघ ने उचककर पंजा मारने की कोशिश की, उसके पंजे में शर्मा जी की नेकर आ गई, नेकर फट गई और शर्मा जी ऊपर रह गए| बाघ की कमर टूट गई थी| वह फिर हमला न कर सका| पेड़ के नीचे उसने अंतिम सांस ली| इस प्रकार संकट में भी साहस व घैर्य से काम लेकर श्रीराम शर्मा ने शिकारी बाघ को मारा और अपनी जान बचाई|