रोहिताश्व भी बिका
ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र ने शैव्या को अपने साथ चलने को कहा| तभी रोहिताश्व ने अपनी माँ का आंचल पकड़ लिया| यह देखकर विनम्र दिखने वाला ब्राह्मण चिल्लाया, “ऐ लड़के! साड़ी का पल्ला छोड़ दे| मैंने तेरी माँ को ख़रीदा है, तुझे नहीं|”
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शैव्या रोने लगी| उसने अपने बेटे रोहिताश्व से कहा, ” हठ मत कर पुत्र! तू अपने पिता के साथ ही रह|”
रोहिताश्व ने आँचल नहीं छोड़ा, तो ब्राह्मण शैव्या को खीचने लगा| इस पर शैव्या ने रोते हुए ब्राह्मण से कहा, “हे ब्राह्मण देवता! आपने मुझे ख़रीदा है| मै आपकी दासी हूं| मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूं| लेकिन मै आपसे प्रार्थना करती हूं कि आप मुझे इस बच्चे को भी खरीद लीजिये| मै अपनी पूरी शक्ति से आपकी सेवा करुँगी|अन्यथा मेरा मन इस बालक में ही रमा रहेगा|’
“नहीं! यह नहीं हो सकता|” ब्राह्मण ने जो से कहा, “यदि मै इसे खरीदूंगा तो रात-दिन तुम इसी के लाड़-दुलार में लगी रहेगी| घर का काम कौन करेगा?”
“मैं करुँगी|वचन देती हूं|” शैव्या ने भरोसा दिलाया तो ब्राह्मण ने रोहिताश्व का भी एक भार सोना देकर उसे खरीद लिया|