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राष्ट्र का सम्मान

एक बार की बात है| जापान में भारत के प्रसिद्ध तत्वचिंतक स्वामी रामतीर्थ रेल-यात्रा कर रहे थे| वह रेलवे स्टेशन पर उतरे, प्लेटफार्म पर चक्कर लगा आए| पर उनकी मनचाही चीज नहीं मिली|

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बहुत परेशान हुए फिर, रेल-डिब्बे में अपने स्थान पर आए| मन का असंतोष चेहरे पर झलक गया| कुछ परेशान से होकर बड़बड़ाने लगे| साथ बैठे एक जापानी यात्री भारतीय साधु यात्री की चिंता से चिंतित हो उठे| वह पूछ ही बैठे- “महोदय, क्या बात है, जिससे आप इतने चिंतित और परेशान हैं?”

भारतीय साधु ने कहा- “यह कैसा देश है, जहाँ खाने के लिए फल खरीदना चाहे तो मिलते नहीं?”

जापानी मुसाफिर ने हाथ में बंधी घड़ी देखी, गाड़ी छूटने में कुछ ही मिनट बचे थे| चलते हुए बोले- “महाशय, मैं अभी आता हूँ|”

कुछ ही मिनटोँ में जापानी मुसाफिर फलों से भरी एक टोकरी ले आए और उसे उन्होंने भारतीय साधु को थमा दिया|

भारतीय सन्यासी प्रसन्न हो उठे| उन्होंने अपनी जेब से बटुआ निकाला और बोले- “इन फलों की कितनी कीमत है?”

“कुछ नहीं, केवल इतना ही, कभी भविष्य में यह न कहिए कि हमारे देश जापान में फल नहीं मिलते|”

भारतीय सन्यासी निरुत्तर हो गए| उस जापानी यात्री की देशभक्ति ने उनका मुँह बंद कर दिया था| इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक मनुष्य के मन में राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए||