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राष्ट्र का अभ्युदय

दूसरे महायुद्ध की विभीषिका के फलस्वरुप जापान क्षत-विक्षत हो गया था| उसका समस्त व्यापार, उधोग, कृषि एवं अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई थी|

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इस सबके बावजूद पिछले वर्षों में जापान का असाधारण अभ्युदय हो गया था|

वह संसार के सर्वाधिक उन्नतिशील औधोगिक राष्ट्रों में पहुँच गया है| जहाजों, मोटरों, कैमरों एवं बिजली के आधुनिकतम उपकरणों के निर्माण में जापान ने दूसरे देश को मात दे दी है| आविष्कारों एवं औधोगिक दृष्टि से जापान विश्व के पहले राष्ट्रों की पंक्ति में पहुँच गया है| एक गोष्ठी की चर्चा की गई कि जापान की देशभक्त जनता ने अपनी मातृभूमि के प्रति अपूर्व निष्ठा, कार्य के प्रति लगन और कठिन परिश्रम से अपने देश को यह स्थिति दिलवाई है| एक वक्त बोले- “संसार-भर में कोई भी नया आविष्कार या किसी भी प्रमुख विश्वभाषा का श्रेष्ठ ग्रंथ प्रकाशित होता है तो तीन महीनों के अन्दर उस आविष्कार का पूर्ण विवरण और इस नए ग्रंथ के जापानी अनुवाद का विश्वविधालय और लोकप्रिय संस्करण तैयार कर, प्रसारित कर, उसका लाभ जापानी जनता को पहुँच जाता है|”

इस पर गोष्ठी में बैठे एक सज्जन बोले- एक बार उन्होंने जापान की उन्नति का रहस्य एक जापानी विद्वान से पूछा था, इसके जवाब में वह पहले तो हँसा, सवाल का उत्तर टालने की कोशिश की, फिर वह बोला- “हमारे देश का प्रत्येक नगरिक अपने को देश का सेवक समझता है| कोई देखे या न देखे, वह पूरा जी लगाकर पूरी मेहनत से काम करता है| वह मेहनत और ईमानदारी से अपना फ़र्ज निभाता है| इतना ही नहीं, हम अपने देश में किसी भी नई चीज के नमूने का केवल एक बार ही आयात करते हैं| एक बार कोई भी नायाब, नई अदभूत चीज हमें मिले, हम उसका पुर्जा-पुर्जा अलग कर, उसके तौर-तरीके को समझ-बूझकर उससे भी अच्छी टिकाऊ-मजबूत चीज बनाकर हम विदेशों को निर्यात करने की कोशिश करते हैं| हम आलस्य, और विजय ही हमें अभीष्ट है, उसके लिए किया कोई भी परिश्रम और त्याग हमारे लिए शिरोधार्य है|” इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने देश की उन्नति व सफलता के विषय में सोचना चाहिए|