रानी शैव्या का सौदा
अत्यधिक विचलित होकर राजा हरिश्चंद्र उठ खड़े हुए और लोगो को पुकार-पुकार कर कहने लगे, “नगरवासियों! मेरी बात सुनो| यह मत पूछियेगा कि मै कौन हूं|
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मेरा बस इतना परिचय ही काफी है कि आज मै विवश होकर अपनी पत्नी और पुत्र को बेचना चाहता हूं| यदि आप में से किसी सज्जन को दासी की आवश्यकता हो तो वह इसे खरीद सकता है|”
हरिश्चंद्र की अटपटी गुहार सुनकर वंहा एकत्र हुए लोग हैरानी से उनका मुख देखने लगे| तभी एक वृद्ध ब्राह्मण आगे बढ़कर बोला, “मुझे एक दासी की आवश्यकता है| मेरी पत्नी बीमार रहती है| उससे घर का काम नहीं हो पाता| बोलो, क्या लोगे इसका?” उसने शैव्या की ओर संकेत किया|
हरिश्चंद्र ने कहा, “भगवन! मैं नहीं जानता कि इस पतिव्रता नारी का क्या मूल्य होना चाहिए| जो उचित लगे, वह आप मुझे दे दीजिये|”
ब्राह्मण बने विश्वामित्र ने शैव्या का मूल्य लगाते हुए कहा, “मै इस दासी के लिए एक भार स्वर्ण मुद्राएं दे सकता हूं| यह लो|” विश्वामित्र ने पोटली आगे कर दी|
राजा ने उसे ग्रहण कर लिया|