रानी की दृढ़ता व साहस से सेना की जीत हुई
मेवाड़ के राजा समरसिंह की मृत्यु का समाचार जब मोहम्मद गौरी को मिला तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। समरसिंह का कोई पुत्र नहीं था। अत: उस पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन करना अत्यंत सरल था। गोरी ने अपने सेनापति को बुलाकर कहा- सेनापति कुतुबुद्दीन! इस समय मेवाड़ पर रानी राज्य कर रही हैं। तुम फौरन मेवाड़ पर चढ़ाई कर उसे अपने कब्जे में ले लो। कुतुबुद्दीन भी गोरी के इस विचार से पूर्णत: सहमत था। उसने मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी।
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गोरी की सेना के सामने मेवाड़ की सेना बहुत छोटी थी। अत: वहां के सेनापति ने तत्काल मंत्री परिषद को बुलाया और महामंत्री से कहा- इस समय तो आप ही कुछ उपाय कीजिए। महामंत्री बोले- सीधा मुकाबला करना होगा। सेनापति ने कहा- सीधे मुकाबले का अभिप्राय है आत्महत्या। उनकी सेना में लाखों सैनिक हैं, जबकि हमारी सेना बहुत छोटी है। शत्रु ने हमें चारों ओर से घेर लिया है। तभी ललकार सुनाई दी। जो कुछ विधाता जानता है, वह हम भी जानते हैं और हम यह जानते हैं कि विजय हमारी होगी। आओ मेरे साथ। हम आखिरी दम तक लड़ेंगे।
हमारी जमीन पर कोई कब्जा करने आए, उसे हम कैसे सहन कर सकते हैं? सभी ने देखा कि रानी सैन्य वेश में साहस की प्रतिमूर्ति बनी खड़ी हैं। सभी रानी के साथ हो लिए और भूखे शेर की भांति शत्रुओं पर टूट पड़े। शीघ्र ही गोरी की सेना के पैर उखड़ गए और वह भाग गई। सैनिकों का कहना था- हम नहीं, रानी की दृढ़ता और साहस जीता है। सार यह है कि यदि बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना बहादुरी और हिम्मत से किया जाए तो उस संकट से आसानी से पार पाया जा सकता है।