राक्षस के रूप में क्यों जन्मा रावण? – 2
भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष का वध करनेकी वजह से हिरण्यकशिपु विष्णु विरोधी था और अपने विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद को मरवाने के लिए भी उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। फिर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकशिपु का वध किया था। खंभे से नृसिंह भगवान का प्रकट होना ईश्वर की शाश्वत, सर्वव्यापी उपस्थिति का ही प्रमाण है।
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त्रेतायुग में ये दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए और तीसरे जन्म में द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया, तब ये दोनों शिशुपाल व दंतवक्त्र नाम के अनाचारी के रूप में पैदा हुए थे। इन दोनों का ही वध भगवान श्रीकृष्ण के हाथों हुआ।
त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची हुई थी। रावण का अत्यंत विकराल स्वरूप था और वह स्वभाव से क्रूर था। उसने सिद्धियों की प्राप्ति हेतु अनेक वर्षों तक तप किया और यहाँ तक कि उसने अपने सिर अग्नि में भेंट कर दिए। ब्रह्मा ने प्रसन्ना होकर रावण को वर दिया कि दैत्य, दानव, यक्ष, कोई भी तुम्हें परास्त नहीं कर सकेगा, परंतु इसमें ‘नर’ और ‘वानर’ को शुमार नहीं किया गया था। इसलिए नर रूप में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया, जिन्होंने वानरों की सहायता से लंका पर आक्रमण किया और रावण तथा उसके कुल का विनाश हुआ।
प्रकांड पंडित एवं ज्ञाता होने के नाते रावण संभवतः यह जानता था कि श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु का अवतार हुआ है। छल से वैदेही का हरण करने के बावजूद उसने सीता को महल की अपेक्षा अशोक वाटिका में रखा था क्योंकि एक अप्सरा रंभा का शाप उसे हमेशा याद रहता था कि ‘रावण, यदि कभी तुमने बलात्कार करने का प्रयास भी किया तो तुम्हारा सिर कट जाएगा।’ खर, दूषण और त्रिशिरा की मृत्यु के बाद रावण को पूर्ण रूप से अवगत हो गया था कि वे ‘मेरे जैसे बलशाली पुरुष थे, जिन्हें भगवान के अतिरिक्त और कोई नहीं मार सकता था।
‘रावण एक विचारक व दार्शनिक पुरुष था। वह आश्वस्त था कि यदि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भगवान हैं तो उनके हाथों मरकर उनके लोक में जाना उत्तम है और यदि वे मानव हैं तो उन्हें परास्त कर सांसारिक यश प्राप्त करना भी उचित है। अंततः रावण का परास्त होना इस बात काशाश्वत प्रमाण है कि बुराइयों के कितने ही सिर हों, कितने ही रूप हों, सत्य की सदैव विजय होती है। विजयादशमी को सत्य की असत्य पर विजय के रूप में देखा जाता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में नवरात्रि का व्रत करने के बाद ही रावण का वध किया था।