राजा हरिश्चंद्र द्वारा राज्य दान
कुछ पल बाद राजा ने ब्राम्हण की ओर देखा और कहा, “विप्रवर! आपकी जो भी अभिलाषा हो निस्संकोच मुझसे मांग लें| मैं अपने वचन से पीछे नहीं हटूंगा|”
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ब्राम्हण ने गंभीरता से कहा,”राजन! यदि मैं अपने पुत्र के लिए आपसे आपका राज्य मांग लूं तो क्या आप वह भी मुझे देंगे?”
“भगवन! आप मांगकर तो देखिये|”राजा ने मुस्कुराते हुए कहा|
“फिर ठीक है, आप अपनी सम्पूर्ण राज्य सम्पदा सहित मेरे पुत्र को अपना राज्य दान में दे दीजिये|” ब्राह्मण ने राजा की ओर देखकर कहा|
राजा ने तत्काल वचन , “दिया!”
ब्राहमण ने भी तत्काल कहा, “लिया|” उन्होंने आगे कहा, “राजन! शास्त्रों में दान की बड़ी महत्ता है| इस दान के साथ मुझे ढाई भार सोना इसकी दक्षिणा के रूप में और दीजिये|”
राजा ने कहा, “वह भी दूंगा|”
तभी राजा के सैनिक उन्हें ढूढ़ते हुए वहां आ पहुचें|