राजा बने चंडाल के दास
सूर्यास्त होने में अभी थोड़ा समय बाकि था| राजा हरिश्चंद्र अपने आपको बेचने के लिए नगर में निकल पड़े| परन्तु उन्हें किसी ने नहीं ख़रीदा| तब वे श्मशान घाट पर जा पहुचें| वंहा धर्म ने चाण्डाल का रूप बनाया और राजा के सामने आकार बोला, “अरे! तुम कौन हो और यंहा क्यों आए हो?”
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राजा ने कहा, “भाई! जब तक सूर्य अस्त नहीं होता, तुम मुझे खरीद लो| मै सब प्रकार से तुम्हारी सेवा करूँगा|”
चाण्डाल रूपी धर्म ने कहा, “मुझे दास की आवश्यकता तो है| बोलो, अपना दम लोगे?”
राजा ने चाण्डाल की भीषण आकृति को देखा और कहा, “मुझे इतना धन दे दो की मैं ब्राह्मण की दक्षिणा पूरी कर सकूं|”
चाण्डाल बोला, “देखो भाई! मैं प्रवीर नामक चाण्डाल हूं| मेरा काम मुर्दों का कफन लेना और उन्हें जलाना है| मैं तुम्हें एक भार सोना दे सकता हूं|”
“मैं तैयार हूं|” राजा हरिश्चंद्र ने हामी भरी तो चाण्डाल ने राजा का अपने साथ ले जाकर एक भार सोना दे दिया|