पुत्र की भूख
काशी नगरी में राजा हरिश्चंद्र को कोई पहचानता नहीं था| वे अपनी पत्नी के साथ गंगा के किनारे जा पहुचें और हाथ-पांव धोकर, गंगा जल पीकर किनारे पर बैठ गए| पास में ही एक कुत्ता किसी की फेंकी हुई रोटियां चबा रहा था|
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रोहिताश्व ने उस कुत्ते को रोटी खाते देखा तो उसने अपनी माँ का आँचल पकड़कर कहा, “माँ! मुझे भूख लगी है|”
बच्चे की बात सुनकर शैव्या रोने लगी| उसने अपने लाडले को अपनी छाती से चिपटा लिया| वह दृश्य देखकर हरिश्चंद्र का दिल भी भार आया| उन्होंने संकोच त्यागकर जोर से पुकारा, “कोई है यंहा? बच्चे को भूख लगी है, कुछ हो तो दे दो|”
राजा का पीड़ा देखकर शैव्या रोने लगी|बच्चे को चिपटाकर वह बोली, “आप इस तरह अधीर इसकी भूख शांत कर दूंगी|”
“नहीं माँ! मुझे भूख लगी है|” रोहिताश्व फिर बोल पड़ा|