पुण्यसलिला भगवती गंगा
भगवती भागीरथी गंगा का इस पृथ्वी पर प्रादुर्भाव पापियों की सद्गति एवं पृथ्वी को पवित्र करने के लिए हुआ है|
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सूर्यवंश के राजा सगर बड़े बलवान्, धर्मात्मा, कृतज्ञ, गुणवान् तथा परम बुद्धिमान् थे| वे बड़े विनयी एवं सद्गुणों के भंडार थे| उन्होंने अपने बल से अपने पिता के शत्रु सभी राजाओं को परास्त कर संपूर्ण पृथ्वी पर अपना राज्य स्थापित किया| दुर्भाग्यवश राजा सगर के साठ हज़ार एक पुत्र थे| वे सभी बुरे आचरण वाले एवं दुष्ट प्रकृति के थे तथा अपने-अपने शारीरिक सुख-सुविधा और ऐशो-आराम में संलग्न रहते थे| वे धार्मिक अनुष्ठान करने वाले लोगों के कार्यों में सदा विघ्न डाला करते थे| उन्होंने साधु पुरुषों की जीविका छीन ली और सदाचार का नाश कर डाला| पृथ्वी के लोग ही नही, देवता भी उनके दुराचारों से त्रस्त हो गए थे| एक बार धर्मात्मा राजा सगर ने महर्षियों के सहयोग से अश्वमेध-यज्ञ का अनुष्ठान आरंभ किया| सगर पुत्रों से त्रस्त देवताओं को उनके पुत्रों के विनाश का उपाय हाथ लग गया| इंद्र ने अश्वमेध-यज्ञ में नियुक्त घोड़े को चुराकर पाताल में तपस्या में संलग्न महान् वीतराग महात्मा कपिल जी की कुटिया के पास बाँध दिया| घोड़े की खोज में सगर के पुत्रों ने समस्त पृथ्वी छान डाली, परंतु उन्हें कही भी यज्ञ का घोड़ा न मिला| अंत में उन पुत्रों ने पाताल में जाने के लिए पृथ्वी खोदनी आरंभ की और वे पाताल में पहुँच गए| पाताल में खोजते-खोजते वे लोग भगवान् कपिल देव की गुफ़ा पर पहुँचे| वहाँ उन्हें करोड़ों सूर्यों के समान प्रभावशाली महात्मा कपिल जी का दर्शन हुआ| वे ध्यान में निमग्न थे| वहाँ एक परम सात्विक प्रकाश की छटा थी| वे सभी वहाँ घोड़ा देखकर क्रोध में भर गए|
सगर पुत्र परस्पर चिल्लाने लगे- ‘इसे पकड़ लो, इसे पकड़ लो, इसे मार डालो| इसी ने घोड़ा चुराया है| यह साधु नही है, बगुला भगत है|’ महात्मा कपिल जी पूर्ववत् ध्यानस्थ थे| उन लोगों के चिल्लाने का उनके ऊपर कोई प्रभाव नही था| उनकी वृति पूर्णरुप से ब्रह्मा के ध्यान में लीन थी| उन्हें ब्रहमा जगत् का लेशमात्र भी ज्ञान नही था| जब उन्होंने नेत्र नही खोले, तब सगर पुत्र उनकी बाहें पकड़कर उन्हें लातों से मारने लगे| बहुत देर बाद कपिल मुनि को ब्रह्मज्ञान हुआ| वे विस्मित-से सगर पुत्रों को देखने लगे|
साधु पुरुषों का केवल अपमान अथवा उन्हें कटु वचन बोलना ही पूरे वंश के विनाश का कारण हो सकता है, वह अनेक दुःखों का सृजन करने वाला होता है| भगवान् संतो का अपमान सहन नही कर सकते| संत, सती सदैव पृथ्वी का मंगल करते आए है|
सगर पुत्रों के पापों की- दुष्कर्मों की इति हो गई थी| जहाँ धन होता है, जवानी होती है और साथ में अविवेकता होती है, वहाँ पतन अवश्यम्भावी है| सगर पुत्रों में अविवेकता भरी थी, उन्होंने बिना कारण ही, बिना विचार किए ही महात्मा कपिल देव को सताया था| देखते-ही-देखते भगवान् कपिल के नेत्रों से आग प्रकट हो गई, जिससे सभी सगर पुत्र तत्काल भस्म हो गए| साधु-संतों का कोप दुःसह होता है|
देवदूतों द्वारा महाराज सगर को अपने पुत्रों के घृणित व्यवहार का समाचार विदित हुआ| अपने पुत्रों के विनाश से राजा सगर को दुःख नही हुआ; क्योंकि उनके दुश्चरित्र को वे भली भाँति जानते थे| सगर ने अपने पुत्र अंशुमान् को महात्मा कपिल देव के पास उनका कोप शांत करने के लिए भेजा| अंशुमान् बुद्धिमान्, विद्वान् एवं भक्त पुरुष थे| वे पाताल में ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मुनिवर कपिल की गुफ़ा पर पहुँचे| अंशुमान् ने कपिल देव जी को साष्टांग प्रणाम किया| वे विनयपूर्वक हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करने लगे- ‘प्रभु! मेरे पिता के भाईयों ने आपके साथ दुष्टता की है, उन्हें क्षमा करे| वे अज्ञानी थे, आपकी महिमा का उन्हें ज्ञान नही था| आपका स्वभाव तो चन्दन की तरह है| मेरे इन पितरों का आप उद्धार करे| आप सदैव ही क्षमावान् है|’
अंशुमान् की प्रार्थना से कपिल मुनि प्रसन्न हो गए| उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा पौत्र भगवान् की आराधना से उन्हें प्रसन्न कर और पुण्यसलिला गंगा को यहाँ लाकर सभी सगर पुत्रों को निष्पाप बना देगा| उन सबको परम पद की प्राप्ति होगी|’ अंशुमान् कपिल देव से आशीर्वाद प्राप्त कर और उनसे घोड़ा लेकर अपने पितामह के पास लौट आए| सगर ने यज्ञ को पूर्ण किया और भगवान् विष्णु की आराधना करके वैकुण्ठ की प्राप्ति की|
अंशुमान् के दिलीप नामक पुत्र हुआ| भगीरथ इन राजा दिलीप के पुत्र थे| अपने पितरों के उद्धार हेतु भगीरथ ने दीर्घकाल तक हिमालय पर कठोर तपस्या करके भगवान् विष्णु, ब्रहमा तथा भगवान् शंकर की आराधना की| उनके तप से वे तीनों देव प्रसन्न हो गए| उन्हें प्रसन्न कर भगीरथ देवनदी गंगा को इस पृथ्वी पर ले आए| जगत् को एक मात्र पावन करने वाली गंगा समस्त जगत् को पवित्र करती हुई राजा भगीरथ के पीछे-पीछे आकर सगर पुत्रों के भस्म को प्लावित करती हुई बहने लगी| उनके भस्म का गंगा से स्पर्श प्राप्त हुआ और वे सभी विष्णु धाम में चले गए|