प्रतिभा की पहचान
एक बार यूनान के थ्रेस प्रांत में एक निर्धन बालक लकड़ियां बेच रहा था। उसने जंगल से लकड़ियां काटी थीं और उन्हें गट्ठरों में बांधकर बाजार में लाया था।
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उधर से गुजर रहे एक सज्जन ने उसके गट्ठरों को देखा तो हैरान रह गए। उस सज्जन को गट्ठर बांधने के तरीके ने आकर्षित किया था। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि एक अनपढ़ और गरीब बालक ने इतने कलात्मक ढंग से गट्ठर कैसे तैयार किए हैं। उन्होंने सोचा कि जरूर इसके मां-बाप ने इसे गट्ठर दिया होगा। उनसे रहा नहीं गया, उन्होंने बालक से पूछ ही लिया, ‘क्या यह गट्ठर तुमने खुद बांधा है?’
बालक ने जवाब दिया, ‘हां, मैं रोज जंगल से लकडि़यां काटता हूं खुद गट्ठर बांधता हूं और उन्हें बाजार में लाकर बेचता हूं।’ उस व्यक्ति ने बालक को गट्ठर खोलकर फिर से बांधने को कहा। बालक ने देखते ही देखते गट्ठर खोला और उसी कलात्मक तरीके से बांध दिया। बालक की तत्परता और लगन देखकर वह सज्जन बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने उससे पूछा, ‘क्या तुम मेरे साथ चलोगे? मैं तुम्हें पढ़ाऊंगा। मेरे साथ तुम्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी। मैंने तुम्हारे भीतर अद्भुत प्रतिभा देखी है। उसका इस्तेमाल केवल लकड़ी काटने में नहीं होना चाहिए।’ बालक ने कुछ देर इस प्रस्ताव पर सोचा। वह समझ नहीं पा रहा था कि इस व्यक्ति पर यकीन किया जाए या नहीं। हालांकि, उसे पढ़ने का बहुत शौक था। आखिरकार वह घर वालों की सहमति लेकर उस सज्जन के साथ चला गया। उस सज्जन ने उसके रहने और उसकी शिक्षा का पूरा प्रबंध किया। वह स्वयं भी उसे पढ़ाते थे। कुछ ही समय में उस बालक ने अपनी मेहनत और कुशाग्र बुद्धि से सबको चकित कर दिया। यह बालक और कोई नहीं यूनान का महान दार्शनिक पाइथागोरस था और उसे इस मुकाम तक पहुंचाने वाले सज्जन यूनान के प्रख्यात तत्वज्ञानी डेमोक्रीट्स थे।