प्राणियों की सेवा कैसे
एक बार की बात है एक विद्यालय में एक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया| प्रतियोगिता का विषय था- “हम प्राणियों की सेवा कैसे कर सकते हैं?” विद्यालय में प्रतियोगिता शुरु हो गई|
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प्रतियोगिता के वक्ता इतिहास और सामाजिक कल्याण संबंधी पुस्तकों एवं धर्मग्रंथों के उदाहरण देने लगे| वे महापुरषों के प्रवचनों का निचोड़ प्रस्तुत कर बताने लगे कि प्राणियों की सेवा कैसे की जा सकती है| प्रतियोगिता में दुनिया-भर के उदाहरण और दृष्टांत प्रस्तुत किए गए|
प्रतियोगिता में अपना नाम देने वाला, बहुत ही अच्छा बोलने वाला एक विद्यार्थी उसमें भाग लेने बहुत देर से पहुँचा| प्रतियोगिता के संयोजकों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने जब उस छात्र से देर से आने की वजह पूछी, तब उसने बताया, “इस वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने मैं समय पर आ रहा था कि रास्ते में मैंने देखा कि एक लड़के को बहुत चोट लगी है और उसकी अवस्था बहुत ही गंभीर है| उस विद्यार्थी को चिकित्सालय में अच्छे एवं योग्य चिकित्सक के पास पहुँचाकर ही यहाँ पहुँच पाया हूँ| देर से आने का मेरा यही कारण है|”
उसी छात्र को प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार दिया गया| उसने भाषण देने की बजाय अपनी करनी द्वारा स्पष्ट कर दिया था कि प्राणियों की सच्ची सेवा कैसे की जाती है| सच्ची सेवा ही उत्तम सेवा होती है|