पिता की सीख
सेठ जानसन के पास धन-दौलत और ऐशो-आराम की कोई कमी न थी | उसका गांव में बहुत बड़ा व्यापार था | लोग उसकी इज्जत करते थे |
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लेकिन जानसन को अपने पुत्र के बारे में एक चिंता खाए जाती थी कि उसका पुत्र थामस उसके बाद कैसे उसका व्यापार संभालेगा ? थामस अठारह वर्ष का होने को था परंतु किसी भी काम के प्रति गंभीरता से ध्यान नहीं देता था | वह पिता के काम में भी अधिक हाथ न बंटाता था |
चूंकि थामस को बचपन से ही सारे सुख-आराम मिले थे, सो वह पैसे का मोल न समझता था | वह हर चीज या काम के प्रति लापरवाह था | यो उसमें बुद्धि की कमी न थी, परंतु वह अपने आपको जरूरत से ज्यादा होशियार समझता था | वह सोचता कि वह लोगों को बेवकूफ बना सकता है, परंतु कोई उसे बेवकूफ नहीं बना सकता |
सेठ जानसन थामस को अक्सर समझाया करता था कि काम में ध्यान लगाया करो, किसी भी काम में लापरवाही ठीक नहीं होती परंतु थामस एक कान सुनता, दूसरे कान से निकाल देता |
एक बार सेठ ने अपने पुत्र की बुद्धिमत्ता परखने के लिए उससे कहा – “जाओ शहर चले जाओ | यह बकरी बूढ़ी हो चली है | इसे बेच आना | इसकी कीमत के बदले में व्यापार के लिए सौदा खरीद लाना |”
पुत्र थामस बोला – “पिताजी यह बकरी कितने की है ? इसकी कितनी कीमत मिलनी चाहिए ?”
सेठ बोला – “बकरी की कीमत चार सौ लीरा है | हां, चाहो तो घोड़ा ले जाओ | परंतु ध्यान से जाना | दुनिया अनेक धूर्त और ठगों से भरी पड़ी है | किसी अन्जान व्यक्ति का आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए |”
थामस बात को हंसी में टालते हुए बोला – “अरे पिता जी, कोई मुझे बेवकूफ नहीं बना सकता | मैं बकरी को चार सौ में नहीं पांच सौ लीरा में बेचूंगा | आप देखते रह जाएंगे जब मैं समझदारी से सौदा खरीद कर लौटूंगा |”
थामस घोड़े पर बैठकर शहर की ओर चल दिया | बकरी के गले में उसने घंटी बांध दी और उसकी डोरी को घोड़े के पीछे बांध दिया | थामस स्वयं घोड़े पर बैठ गया और घोड़ा धीरे-धीरे चल दिया | पीछे-पीछे बकरी भी चल दी |
बकरी की घंटी से उसे आभास हो रहा था कि बकरी पीछे आ रही है | वह घोड़े पर आराम से बैठा चला जा रहा था, साथ ही समय बिताने के लिए कुछ गुनगुनाता जा रहा था |
रास्ते में कुछ ठगों ने देखा कि एक युवक मस्ती में घोड़े पर चला जा रहा है, पीछे-पीछे बकरी भी चल रही है |
उनमें से एक ठग धीरे से बोला – “मैं इसकी बकरी आराम से चुरा सकता हूं |”
यह सुनकर दूसरे आदमी को भी जोश आ गया वह बोला – “बकरी चुराना कौन-सी बड़ी बात है, मैं तो वह घोड़ा भी चुरा सकता हूं जिस पर बैठकर वह गीत गुनगुनाता जा रहा है |”
पहला ठग बोला – “नहीं, घोड़ा चुराना तो मुश्किल है, मैं तो बकरी ही चुरा सकता हूं |” सारे ठग थामस के पीछे-पीछे चल दिए | इतने में तीसरा ठग बोला – “तुम लोग तो यूं ही डरते हो | मैं तो इसके पहने हुए कीमती कपड़े व पैसे भी चुरा सकता हूं |”
सब ठगों में बहस होने लगी कि कौन पहले क्या चुराएगा | इन ठगों से बेखबर थामस आगे की तरफ बढ़ता जा रहा था | इतने में ठगों में यह तय हुआ कि जिस ठग ने पहले चोरी का प्रस्ताव रखा था, वही पहले चुराएगा | अत: पहला ठग बकरी चुराने के लिए आगे चल दिया |
उस ठग ने चुपचाप बकरी की डोरी खोल ली और साथ-साथ चलने लगा | फिर चुपचाप घंटी निकालकर घोड़े की पूंछ में बांध दी और बकरी लेकर नौ दो ग्यारह हो गया |
चूंकि घंटी की आवाज लगातार आ रही थी, अत: थामस को पता न लगा | उसे चले कुछ घंटे हो गए थे, अत: सोचने लगा कि पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ता लूं | ज्यों ही वह घोड़े से उतरा, बकरी को पीछे न बंधा देखकर घबरा गया |
थामस हड़बड़ाहट में हर आने-जाने वाले से बकरी के बारे में पूछने लगा | इतने में एक व्यक्ति ने बताया कि थोड़ी ही दूरी पर वैसी ही बकरी लेकर एक आदमी को उसने जाते हुए देखा है |
थामस ने उस व्यक्ति को रास्ता बताने के लिए धन्यवाद दिया और बोला – “आप बहुत सज्जन पुरुष हैं | आपने बकरी के बारे में बताकर मेरी बड़ी सहायता की है | आप मुझ पर एक उपकार और कर दीजिए | मैं बकरी चोर को पकड़कर लाता हूं | तब तक आप मेरा घोड़ा संभाल लीजिए | मैं अभी गया और अभी आया |”
थामस यह कहकर उसी दिशा में भागा जहां उस व्यक्ति ने बताया था | परंतु उसे बकरी व चोर कहीं न मिला | हारकर कुछ देर बाद वह वापस उसी स्थान पर आ गया जहां उस सज्जन को घोड़ा पकड़ा कर गया था |
उस पेड़ के नीचे उस व्यक्ति व घोड़े को न देखकर थामस को रोना आने लगा | उसे अब समझ में आया कि घोड़ा चोर भी बकरी चोर का ही साथी था |
अब थामस का दिमाग काम नहीं कर रहा था | वह बहुत दुखी था | वह सोच रहा था कि किस आसानी से वह व्यक्ति उससे घोड़ा छीन कर ले गया | वह दुखी मन से गांव की ओर वापस जाने लगा |
थामस थोड़ी ही दूर जा पाया था कि उसने देखा, एक व्यक्ति कुएं के पास फूट-फूट कर रो रहा है | थामस को लगा कि मैं भी बहुत दुखी हूं, यह व्यक्ति भी दुखी लगता है, इसके साथ मुझे अपना दुख बांट लेना चाहिए ताकि मन का बोझ हल्का हो सके |
थामस उसके पास जाकर दुखी स्वर में बोला – “भाई, तुम क्यों रो रहे हो ? मेरा दुख तो तुमसे भी बड़ा है | आज मैंने बड़ा धोखा खाया है |”
वह व्यक्ति बोला – “नहीं भाई, तुम्हारा दुख मुझसे बड़ा नहीं हो सकता, मेरे लिए तो आज जीने – मरने का प्रश्न आ गया है | वैसे बताओ, तुम्हें क्या दुख है ?”
थामस बोला – “भैया मेरी लापरवाही के कारण ही आज मेरी बकरी चोरी हो गई | मेरा घोड़ा मेरी आंखों के सामने लुट गया | मैं बहुत दुखी हूं | मैं अपने आपको बड़ा अक्लमंद समझता था |”
थामस की बात सुनकर वह व्यक्ति जोर-जोर से रोने लगा | थामस ने पूछा – “बताओ तो सही, बात क्या है, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं |”
वह व्यक्ति रोते हुए बोला – “मैं एक सोने के व्यापारी के यहां काम करता हूं | उसकी बेटी की शादी है | मेरे मालिक ने अपनी बेटी के लिए हीरों का कीमती हार बनवाया था | मैं यहां रुका था, तो मेरे हाथ से वह हीरों के हार का डिब्बा कुएं में गिर गया |”
अब मैं किस मुंह से मालिक के पास जाऊं, वह तो यही समझेगा कि हार मैंने चुराया है और पीट-पीटकर मुझे मार डालेगा |
थामस बोला – “तुम कुएं में उतर कर हार क्यों नहीं ढूंढ़ लाते ?”
“क्या करूं, इधर भी मौत है उधर भी मौत, उधर मालिक मार डालेगा तो इधर मैं कुएं में डूब कर मर जाऊंगा | मुझे तो तैरना भी नहीं आता और यहां कोई मेरी मदद करने वाला भी नहीं है |” यह कहकर वह व्यक्ति और जोर से सुबक-सुबक कर रोने लगा |
थामस को उस व्यक्ति पर तरस आने लगा | वह बोला – “ठीक है, मैं कोशिश करता हूं | शायद तुम्हारे हीरे मिल जाएं और तुम्हारी जान बच जाए | लेकिन तब तक तुम मेरे सामान का ध्यान रखना | हां, अगर मैं हार निकाल लाया तो बदले में तुम मुझे क्या दोगे ?”
“मैं तुम्हें बीस अशर्फी दूंगा |” वह व्यक्ति बोला – “लेकिन दस अशर्फी मैं काम से पहले लूंगा और दस काम के बाद |” थामस बोला | उसने मन में सोचा कि चलो मेरा इतना नुकसान हो चुका है इस तरह थोड़ी भरपाई जरूर हो जाएगी |
उस व्यक्ति ने अशर्फी थामस को दे दीं | थामस ने सोचा कि यदि मैं अशर्फी लेकर कुएं में उतरा और अशर्फी कुएं में गिर गईं तो मेरा फिर नुकसान हो जाएगा | अत: थामस ने अपने कपड़े, घड़ी, धन, अशर्फी, सोने की चेन उतारकर उस अजनबी को पकड़ा दीं और स्वयं आहिस्ता से कुएं में उतर गया | थामस बड़ी देर तक कुएं में हीरे का हार ढूंढ़ता रहा परंतु हार होता तो मिलता |
वह थक कर कुएं से बाहर आया तो उस व्यक्ति को बाहर न पाकर भौचक्का रह गया | वह व्यक्ति थामस के कपड़े व सारा सामान लेकर भाग गया था | थामस के दुख का ठिकाना न था वह वहीं बैठकर फूट-फूटकर रोने लगा |
थामस शर्म से जमीन में गड़ा जा रहा था कि कैसे नंगे बदन गांव वापस लौटेगा ? कैसे अपने पिता को अपना मुंह दिखाएगा | उसे अपनी बेवकूफी पर पश्चाताप हो रहा था | तभी उसके गांव का एक परिचित उधर से गुजरा |
उसने थामस की हालत देखी तो उसके पास आ गया | थामस को अपने कपड़े पहनाकर गांव वापस ले आया | आज थामस को अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था | पिता की सीख पर ध्यान न देने का सबक उसे मिल चुका था |