पवनों की उत्पत्ति
देवमाता दिति के दोनों दैत्यपुत्रों को भगवान विष्णु ने मार दिया| वे अपने सौतेले पुत्र इन्द्र से नाराज थीं, क्योंकि| उन्ही के सुरक्षा के लिए उनके पुत्र मारे गए थे| गुस्से में उन्होंने एक ऐसे पुत्र को जन्म देने का निश्चय किया, जो देवराज इन्द्र को मार सके|
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उन्होंने अपने महर्षि पति कश्यप को प्रसन्न किया और अपनी इच्छा जतायी| अपने ही पुत्र की हत्या के लिए पुत्र जन्माना ऋषि के लिए कठिन था, किन्तु उन्होंने दिति को पुंसवन व्रत करने को कहा|
पूरी निष्ठा और समर्पण से माता दिति ने व्रत आरम्भ किया| इन्द्र को जानकारी मिली| किन्तु वे कुछ कर नहीं पा रहे थे| जन्म का समय निकट आ रहा था| सन्ध्या समय एक दिन थक दिति सो गयीं| इन्द्र को अवसर मिला| वे माता के गर्भ में प्रवेश कर गये और भ्रूण को उनचास टुकड़ों में विभाजित कर दिया| व्रत के प्रभाव से एक भी टुकड़ा भ्रूण नष्ट न हुआ| सभी का जन्म हुआ| वे मारुत कहलाए| इनकी संख्या उनचास है| ये उनचास पवन कहे जाते है| उनकी पूजा स्वास्थ्य, पूर्णता और समृद्धि के लिए की जाती है|