पत्नी और पुत्र को बेचने का निश्चय
राजा को उदास और दुखी देख शैव्या ने कहा, “स्वामी! आप अपने को इस प्रकार लांछित न करें| झूठे लोग श्मशान की भांति वर्जित होते हैं| झूठे मनुष्य के समस्त अग्निहोत्र, अध्ययन, दान और पुरुषार्थ निष्फल हो जाते हैं|
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पुराणों में राजा कृति की एक कथा आती है| उसने सात अश्वमेघ यज्ञ किया थे, राजसूय यज्ञ किया था, प्रचुर दान भी दिया था, परन्तु एक बार झूठ बोलने के कारण वह स्वर्ग से निचे गिर पड़ा|
मै नहीं चाहती की आप अपने वचन का पालन न कर पाने के कारण सत्य मार्ग से गिर जाएं| इसलिए आप मेरी बात मन लीजिये, उठिए और मुझे बेचकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कीजिए|”
तभी रोहिताश्व ने अपनी माँ से कहा, “मुझे भूख लगी है| माँ! पिताजी रो क्यों रहे हैं? क्या उन्हें भी भूख लगी है?”
उसी समय तड़पकर राजा हरिश्चंद्र ने कहा, “अच्छी बात है| मै यह क्रूर कर्म भी करुँगा| मै अपने पुत्र को इस प्रकार तड़पता नहीं देख सकता| मै तुम्हे बेचूंगा, रोहित को बेचूंगा और अपने आप को भी , परन्तु सत्य से विचलित नहीं होऊंगा| सत्य ही मेरा जीवन है, सत्य ही मेरा प्राण है|”