परीक्षा में सफल हुए हरिश्चंद्र
हरिश्चंद्र ने पीछे मुड़कर देखा तो वंहा अपने स्वामी चाण्डाल को खड़ा पाया, जो मुस्कुराते हुए कह रहा था, “हरिश्चंद्र! तुम अपनी परीक्षा में सफल रहे|”
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“कैसी परीक्षा?” हरिश्चंद्र ने चकित स्वर में पूछा|
चाण्डाल कोई उत्तर देता इससे पहले ही वंहा एक और विस्मयकारी घटना घटी| अचानक सारा श्मशान-क्षेत्र दिव्य ज्योति से अलोकिक हो उठा| देवता स्वर्ग से उतर आए| विश्वामित्र भी प्रकट ही गए और कहा, “महाराज हरिश्चंद्र, देवगण तुम्हारी सत्यनिष्ठा की परीक्षा ले रहे थे, जिसमें तुम सफल रहे| अब तनिक अपने पुत्र और महारानी शैव्या की ओर तो देखिए|” हरिश्चंद्र ने चकित भाव से अपने पुत्र और पत्नी पर निगाह डाली, उनका पुत्र और पत्नी राजसी वेशभूषा , में मुस्कुराते हुए सामने खड़े थे| चाण्डाल के स्थान पर धर्मराज मुस्कुराते हुए खड़े थे| विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र को न सिर्फ अपनी दासता से मुक्त कर दिया था, अपितु उनका खोया हुआ राज्य-वैभव भी उन्हें लौटा दिया था| तदुपरांत हरिश्चंद्र अपनी पत्नी और पुत्र सहित अयोध्या लौट आए और वर्षो तक सत्यनिष्ठ होकर प्रजा की सेवा करते रहे|