परीक्षा
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कुछ वर्षों पुरानी कहानी है, जब देश में रियासतें थी, पर इस कथा की सीख आज भी अमर है| एक राजा के दीवाने थे; काम करते-करते बूढ़े हो गए| वह राजा के पास पहुँचे|
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राजा से प्रार्थना की- मेरा बुढ़ापा आ गया, अब मुझे छुट्टी दीजिए| पहले तो राजा ने असमर्थता प्रकट की, पर जब बूढ़े दीवान जी ने असमर्थता दिखाई, तब राजा ने उन्हें अपनी जगह योग्य ईमानदार दीवान नियुक्त करने की सलाह दी| अखबारों में राज्य के दीवान के लिए विज्ञापन छप गए| किसी तरह की कोई योग्यता अनुभव की शर्त नहीं थी| निश्चित तिथि पर सैकड़ों व्यक्ति राजधानी पहुँचे| उन सबकी खूब आव-भगत की गई| अधिकांश मौज-मजा करने लगे| सभी मनोरंजन में डूब गए| कुछ पूजा-पाठ में लग गए| कुछ चुने हुए युवा उम्मीदवारों ने समय देखकर हाकी के मुकाबले का प्रबंध किया, ढिंढ़ोरा पिट गया| शहर भर के लोग राज्य की दीवानगिरी की नौकरी के उम्मीदवारों का खेल देखने जुट गए| मौके पर अधिकारी भी आए| यह खेल खूब जमा|
खेल के कड़े मुकाबले के बाद सभी खिलाड़ी और दीवान पद के उम्मीदवार शहर लौटे| रास्ते में एक ढ़लान के पार एक चढ़ाई थी, जहाँ पर बोझ से लदी बैलगाड़ी लिए एक बूढ़ा गाड़ीवान खड़ा था| उसने इन सभी खिलाड़ियों और उम्मीदवारों को उम्मीद-भरी नजरों से देखा कि कोई सहारा देगा और उसकी गाड़ी को उस ऊँचाई पर पार करवा देगा| आख़िर में एक तेजस्वी युवक आया| उसका उस दिन का खेल सबसे शानदार था; उसे पैर में हल्की चोट भी आई थी| गाड़ी खड़ी देखकर वह ठिठक गया| उसने गाड़ीवान को आगे जुएँ पर बैठने को कहा और पीछे गाड़ी को धक्का लगाया और बैलों को ललकारा| उसके जोर से धक्का देते ही गाड़ी वह बाधा पार कर ऊपर पहुँच गई|
पुराने दीवान जी ने उस तेजस्वी युवक को राज्य के दीवान पद पर नियुक्त करने की घोषणा करते हुए कहा- “यह युवक एक योग्य व्यक्ति है| यहाँ इसने अपने समय का पूरा सदुपयोग किया| फालतू मनोरंजन में इसने समय नहीं बिताया| यह सबसे अच्छा खिलाड़ी भी है, और साथ ही, संकट पड़ने पर यह अकेला उम्मीदवार था जिसने गाड़ीवान की मदद की, ऐसा ही दीवार राज्य और प्रजा का कल्याण कर सकता है|” इस कहानी से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि दूसरों की मदद करने से अपना भी भला होता है|