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नुरुदीन अली और बदरुदीन हसन की कहानी

नुरुदीन अली और बदरुदीन हसन की कहानी

मिस्त्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था| वह इतना शक्तिशाली था की आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे| उसका मंत्री बड़ा कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि कई-कई कलाओं और विद्याओं में पारंगत था| मंत्री के दो सुंदर पुत्र थे, जो उसी की भाँति गुणवान थे| बड़े का नाम शमसुद्दीन मुहम्मद था और छोटे का नाम नूरुद्दीन अली|

“नुरुदीन अली और बदरुदीन हसन की कहानी” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

जब मंत्री का देहांत हुआ तो बादशाह ने उसके दोनों पुत्रों को बुलाकर कहा, “तुम्हारे पिता के मरने से मुझे भी बड़ा दुख है| अब मैं तुम दोनों को उनकी जगह नियुक्त करता हूँ| तुम मिलकर मंत्रीपद संभालो|”

दोनों ने सिर झुकाकर उसका आदेश माना| एक मास तक अपने पिता का शोक करने के बाद दोनों राजदरबार में गए| दोनों मिलकर काम करते थे| जब बादशाह आखेट के लिए जाता तो बारी-बारी से एक को अपने साथ ले जाता और दूसरा राजधानी में रहकर शासन कार्य को देखता|

एक शाम को, जब दूसरी सुबह बड़ा भाई बादशाह के साथ शिकार पर जाने वाला था, दोनों भाई आमोद-प्रमोद कर रहे थे| हँसी-हँसी में बड़े भाई ने कहा, “हम दोनों एकमत होकर इतना बड़ा राज चलाते है| हम क्यों न ऐसा करे कि एक ही दिन संभ्रात परिवारों की सुशील कन्याओं से विवाह करे| तुम्हारी क्या राय है?”

छोटे ने कहा, “मैं आपकी आज्ञा से बाहर नही हूँ| जैसा आप कहेंगे, वैसा ही होगा|”

दोनों को मधपान से नशा भी हो रहा था| बड़े भाई ने कहा, “सिर्फ़ एक रात में शादी होना काफ़ी नही है| हमारी पत्नियों को भी एक ही रात में गर्भ रहना चाहिए|”

छोटे ने हँसकर कहा, “वह भी हो जाएगा|”

फिर बड़े ने कहा, “हमारी संतानें भी एक ही दिन जन्में और तुम्हारे यहाँ पुत्र हो मेरे यहाँ पुत्री हो|”

छोटे ने कहा, “बहुत अच्छी बात है|”

बड़े भाई ने कहा, “जब तुम्हारा बेटा और मेरी बेटी हो जाए तो उनका विवाह भी कर दिया जाए, क्योंकि शुरू से साथ रहेंगे तो उन्हें एक-दूसरे से प्रेम हो ही जाएगा|”

छोटे भाई ने कहा, “इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि मेरे बेटे के साथ आपकी बेटी की शादी हो|”

बड़े ने कहा, “लेकिन एक शर्त है- मैं शादी मे तुमसे दहेज भरपूर लूँगा| इसमें नौ हज़ार अशर्फियाँ नकद, तीन गाँव और दुल्हन की सेवा के लिए तीन दासियाँ|”

छोटे ने मज़ाक को बढ़ाते हुए कहा, “यह आप कैसी बात कर रहे है? हम दोनों की पदवी बराबर है, फिर लड़के वाला दहेज कहाँ देता है? वह तो दहेज लेता है| आपको चाहिए कि आप शादी में भरपूर दहेज मुझे दे, न कि मुझसे दहेज ले|”

यधपि मज़ाक ही हो रहा था, किन्तु बड़ा भाई अत्यंत क्रोधी स्वभाव का था| वह बिगड़कर बोला, “तुम समझते हो कि तुम्हारा बेटा मान-सम्मान में मेरी बेटी से अधिक होगा| मैं तो आशा करता था कि तुम मेरी बेटी की मान-प्रतिष्ठा करोगे, लेकिन मालूम होता है- तुम उसका बड़ा अपमान करोगे|”

दोनों भाई नशे में थे| यह बेकार बहस थी, क्योंकि शादी किसी की नही हुई थी और संभावित पुत्र और पुत्री के विवाह के दहेज का झगड़ा हो रहा था| लेकिन बहस बढ़ती ही गई और हास-परिहास गंभीर रुप ले बैठा|

अंत में बड़े ने कहा, “सवेरा होने दो, मैं तुझे बादशाह के सामने ले जाकर दंड दिलवाऊँगा| तब तुझे मालूम होगा कि बड़े भाई से गुस्ताखी करने का क्या फल होता है|” यह कहकर से वह अपने शयनकक्ष में चला गया| छोटा भी अपने कमरे में आकर अपने पलंग पर लेट गया, किन्तु उसे रात भर नींद नही आई| वह गुस्से में जलता-भुनता रहा और सोचता रहा कि यह भाई मज़ाक की बात पर भी इस तरह बात करता है, कोई गंभीर बात पैदा होने पर क्या करेगा?

दूसरे दिन सुबह शमसुद्दीन मुहम्मद तो बादशाह के साथ शिकार पर चला गया और इधर छोटे भाई ने बहुत से रत्नाभूषण आदि एक मज़बूत खच्चर पर लादे, बहुत सा खाने-पीने का सामान रखा और शहर छोड़कर चल दिया| सेवकों से कह दिया, “दो-एक दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ|”

तदोपरांत वह अरब देश की राह पर चल पड़ा| बहुत दिन ही कष्टप्रद यात्रा के बाद उसका खच्चर बीमार हुआ और मर गया| वह बेचारा अपना सामान कंधे पर रखकर पैदल ही चलने लगा| हसना नामक शहर से वह बसरा की ओर बढ़ रहा था की उसे एक घुड़सवार उसी तरफ़ आता हुआ मिला| घुड़सवार को उसपर दया आ गई और उसने नूरुद्दीन अली को अपने पीछे घोड़े पर बिठा लिया और बसरा तक पहुँचा दिया| बसरा पहुँचकर नूरुद्दीन अली ने उसे बहुत धन्यवाद दिया|

बसरा नगर में नूरुद्दीन अली ने देखा एक बड़ी भीड़ सड़क के दोनों और खड़ी हुई है| वह भी वहाँ खड़ा हो गया| कुछ ही देर में एक अमरीना सवारी आई, जिसके साथ बहुत से नौकर-चाकर थे| जिस भव्य व्यक्तित्व वाले आदमी की सवारी निकल रही थी, उसे लोग झुक-झुक कर सलाम कर रहे थे|

उस राज्य के मंत्री ने उसे देखा और उसके विदेशी परिधान और उसके चेहरे पर उच्च वंशीयता की छाप देखकर उससे पूछा, “तुम कौन हो, कहाँ से आ रहे हो?”

नूरुद्दीन अली ने कहा, “सरकार में मिस्र देश के काहिरा नगर का निवासी हूँ| अपने सम्बन्धियों से मेरा झगड़ा हो गया है, इसलिए देश-देश घूम रहा हूँ|”

मंत्री ने कहा, इस यायावरी में तुम बहुत दुख उठाओगे| मेरे साथ चलो| आराम से रहोगे|”

अतः नूरदीन मंत्री के साथ रहने लगा| मंत्री उसकी विद्या-बुद्धि देखकर बहुत प्रसन्न हुआ| एक दिन मंत्री ने एकांत में उससे कहा, “बेटे! अब में बहुत बूढ़ा हो गया हूँ| अब मुझे अधिक दिनों तक जीने की आशा नही है| मेरी संतान केवल एक बेटी है, जो बड़ी रुपवती है| वह अब विवाह के योग्य है| कई सामंत और धनीमानी व्यक्ति उससे विवाह करना चाहते है, किंतु मैंने यह स्वीकार नही किया| मुझे वह बेटी बहुत ही प्रिय है| मैं समझता हूँ कि वह तुम्हारे योग्य है| अगर तुम्हें कोई आपत्ति न हो तो मैं तुम्हारे साथ उसका विवाह बादशाह की अनुमति लेकर कर दूँ और साथ ही मंत्री पद के लिए तुम्हें अपना उत्तराधिकारी बनाऊँ और सारी संपत्ति भी तुम्हारे नाम कर दूँ|”

नूरुद्दीन अली ने कहा, “मैं आपको अपना बुजुर्ग मानता हूँ| जो कुछ आपका आदेश होगा, मैं वैसा ही करूँगा|”

मंत्री ने उसकी स्वीकृति पाई तो बहुत खुश हुआ| उसने विवाह की तैयारियाँ शुरु कर दी और नगर निवासियों में से खास लोगों को यह बताने के लिए बुलाया|

जब सब लोग एकत्र हुए तो नुरूदीन अली ने अलग ले जाकर मंत्री से कहा, “मैंने अपने कुटुंब के बारे में अभी तक किसी को कुछ नही बताया| अब यह बताता हूँ| मेरे पिता की मृत्यु के उपरांत बादशाह ने हम दोनों भाइयों को उनका कार्यभार संभालने को दिया| हम कुछ समय तक शासन कार्य विधिपूर्वक करते रहे| एक दिन मेरी अपने बड़े भाई के साथ एक बात पर बहस हो गई| उसने मुझसे ऐसे कटु शब्द कहे कि मैंने देश छोड़ दिया|”

मंत्री ने जब यह वृतांत सुना तो और प्रसन्न हुआ| उसने सोचा कि यह तो बहुत अच्छी बात है कि यह भी मंत्री का बेटा निकला| उसने एकत्र हुए नागरिकों से कहा, “मैं एक बात में आप की सलाह लेना चाहता हूँ| मेरा एक भाई मिस्र के बादशाह का मंत्री है| उसका केवल एक ही पुत्र है| उसने मिस्र में अपने बेटे का विवाह न करना चाहा और उसे यहाँ मेरे पास भेज दिया, ताकि मैं उसका विवाह करके उसे यहाँ अपने पास रखूँ| आप क्या कहते है?”

सभी ने एक स्वर में कहा, “बहुत अच्छी बात है| भगवान वर-वधू को चिरायु करे|”

मंत्री ने सब लोगों को भोजन कराया और रस्मी तौर पर सब लोग मंत्री के घर से विदा हो गए| मंत्री ने सेवकों को आज्ञा दी, “नुरूदीन को स्नान कराओ|”

स्नान के बाद नुरूदीन अपने मामूली कपड़े ही पहनना चाहता था, किन्तु मंत्री के सेवकों ने उसे वे रत्नजड़ित मूल्यवान वस्त्र पहनाए, जो मंत्री इस अवसर के लिए भेजे थे| उसके शरीर और वस्त्रों पर नाना प्रकार की सुगन्ध भी लगाई और उसका अन्य साज-श्रृंगार किया| फिर नुरूदीन अली अपने ससुर यानी मंत्री के पास गया|

मंत्री उसे देखकर प्रसन्न हुआ| प्यार से उसे अपने पास बिठाया, बोला, “फिर क्या बात हो गई थी की तुम दोनों भाइयों की ऐसी ठनी कि तुम्हें देश छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा| अब तुम मेरे दामाद हो गए हो| हम एक हो गए है| अब तुम्हें मुझसे कोई भेद छुपाना नही चाहिए| तुम साफ़ बताओ कि घर क्यों छोड़ा?”

नुरूदीन अली ने उसे सविस्तार बताया कि किस तरह हँसी-हँसी में पैदा हुई एक बात कटु विवाद का रूप ले बैठी| मंत्री यह वृत्तांत सुनकर बहुत हँसा और बोला, “सिर्फ़ इतनी सी बात पर तुम अपने भाई से अलग हो गए और अपना देश भी छोड़ बैठे? बेकार बात थी कि तुम्हारा और तुम्हारे भाई का एक साथ विवाह होता, एक साथ सन्तानें होती, तुम्हारे यहाँ पुत्र और उसके यहाँ पुत्री होती और उनके विवाह में दहेज का प्रश्न उठता- लेकिन हाँ, तुम्हारे भाई की ज्यादती थी कि हँसी-हँसी में होने वाली बात को खींचकर इतना कटु बना दिया| तुम्हारा देश त्याग समझदारी की बात तो नही थी, किन्तु मेरे सौभाग्य से यह सब हो गया| खैर, अब यहाँ समय न लगाओ| अपनी दुल्हन के पास जाओ| वह प्रतीक्षा कर रही है|” नुरूदीन अली उसकी आज्ञा मानकर अपनी पत्नी के पास चला गया|

इधर मिस्र में उस दिन की कहा-सुनी के एक महीने बाद बड़ा भाई शमसुदीन मुहम्मद शिकार पर से वापस आया| उसे सेवकों ने बताया कि उसका भाई दो दिन के लिए जाने को कहकर अभी तक वापस नही लौटा| शमसुदीन मुहम्मद को इस पर बड़ा खेद हुआ, क्योंकि उसने समझ लिया कि नुरूदीन अली मेरे कटु वचनों से क्रुद्ध होकर किसी दिशा में निकल गया है| उसने चारों और उसकी तलाश में आदमी भिजवाए, जो दमिश्क और हलब तक हो आए- किन्तु उसे न खोज सके, क्योंकि वह तो बसरा में था| अंत में शमसुदीन निराश होकर बैठ गया| उसने समझ लिया की नुरूदीन जीवित नही है| फिर शमसुदीन मुहम्मद ने विवाह किया|

संयोग से उसका विवाह उसी दिन और उसी समय पर हुआ, जब नुरूदीन का विवाह बसरा में हो रहा था| इससे भी अजीब बात यह थी कि नौ महीनों के बाद एक ही दिन नुरूदीन अली के घर में पुत्र और शमसुदीन मुहम्मद के यहाँ कन्या का जन्म हुआ|

नुरूदीन के पुत्र का नाम बदरूदीन हसन रखा गया| बसरा का मंत्री नाती के जन्म पर बहुत ही प्रसन्न हुआ| उसने बहुत बड़ा समारोह किया और अच्छी तरह सेवकों को इनाम और फ़कीरों को भिक्षा दी| फिर कुछ दिन बाद वह नुरूदीन को शाही दरबार में ले गया और बादशाह से निवेदन किया, “मेरी जगह पर मेरे दामाद को मंत्री बना दीजिए|”

वह पहले भी उसे कई बार दरबार में ले गया था और बादशाह नुरूदीन की बुद्धि और चातुर्य से प्रभावित था| अतः उसने बगैर किसी हिचक के नुरूदीन अली को अपना मंत्री बना लिया| पुराना मंत्री यानी नुरूदीन का ससुर यह देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ कि नुरूदीन अली में इतनी प्रबन्ध कुशलता है और वह ऐसी न्यायप्रियता और मृदुल स्वभाव से काम करता है की राजा-प्रजा सभी का प्रिय हो गया है|

चार वर्षों के बाद अवकाश प्राप्त मंत्री बीमार होकर मर गया| नुरूदीन अली ने उसका बड़ा मातम किया और सारे मृतक संस्कार अच्छी तरह से किए|

बदरूदीन हसन जब सात वर्ष का हुआ तो उसके पिता ने उसका विद्यारंभ कराया और बड़े विद्वानों को उसका शिक्षक नियुक्त किया| बदरूदीन ऐसा कुशाग्रबुद्धि था कि कुछ ही समय में उसने पूरा कुरान कंठस्थ कर लिया| बारह बरस का हुआ तो उसने सारी प्रचलित विधाएँ अच्छी तरह पढ़ ली| वह अत्यंत सुंदर और सुशील भी था| जो भी उसे देखता, उसकी प्रंशसा करते नही अघाता था|

एक दिन नुरूदीन अली अपने पुत्र को राजदरबार में ले गया| बदरूदीन ने बादशाह को ऐसे विधिपूर्वक प्रणाम किया और उसके प्रश्नों का इतनी बुद्धिमानी से उत्तर दिया कि बादशाह बहुत खुश हुआ| उसने बदरूदीन को इनाम इकराम भी दिया| नुरूदीन अपने पुत्र के प्रशिक्षण पर बहुत ध्यान दिया करता था और बराबर उसे ऐसी बातें सिखाता था, जिससे बेटे को लाभ हो और वह संसार में उच्च पद के योग्य सिद्ध हो| इसी तरह कई वर्ष निकल गए|

फिर नूरुद्दीन बीमार पड़ गया| किसी इलाज से वह ठीक ही नही होता था और उसकी बीमारी बढ़ती चली जाती थी| अपना अंत समय आया देखकर उसने बदरूदीन को अपने निकट बुलाकर उपदेश दिया, “बेटे! यह जीवन नश्वर है और संसार चलता रहता है| तुम मेरे मरने पर दुख न करना और भगवान की इच्छा समझकर संतोष करना| हमारे खानदान के लोग ऐसा ही करते है| जिन आध्यापकों ने तुम्हें पढ़ाया है, उनका भी यही कहना था| अब मैं जो कहता हूँ, उसे ध्यान से सुनो| मुझे आशा है कि मैं जैसा कहूँगा, वैसा ही तुम करोगे| मैं वास्तव में मिस्र देश का निवासी हूँ मेरे पिता वहाँ के बादशाह के मंत्री थे| उनके मरने पर मैं और मेरा बड़ा भाई शमसुद्दीन मुहम्मद दोनों मंत्री बना दिए गए| मेरा बड़ा भाई अब तक वहाँ का मंत्री है, लेकिन मैं किसी कारण से यहाँ चला आया| फुरसत से इसे पढ़ना| इसमें तुम्हें सारा हाल मिलेगा| मेरे विवाह और अपने जन्म की तिथियाँ भी तुम इसमें लिखी पाओगे|” यह कहकर नूरुद्दीन अली बेहोश हो गया|

बदरूदीन को पिता की मृत्यु निकट देख कर बड़ा रंज हुआ| वह रोने पीटने लगा| लेकिन नूरदीन को कुछ देर बाद होश आया| उसने बेटे से कहा, “अब में कुछ ही देर का मेहमान हूँ| मैं इस अंतिम समय पर तुम्हें कुछ उपदेश दे रहा हूँ, जिन्हें तुम हमेशा याद रखना| पहली बात तो यह है कि किसी से बहुत घनिष्ट मित्रता न करना और न अपने भेद किसी से कहना, दूसरी यह कि किसी व्यक्ति पर अत्याचार न करना, यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि यह दुनिया लेन-देन की जगह है| जैसी भलाई-बुराई तुम करोगे, वैसा ही तुम्हें बदला मिलेगा| तीसरी बात यह है कि कभी ऐसी बात मुहँ से न निकालना, जिससे तुम्हें बाद में लज्जित होना पड़े और यह भी याद रखो कि बहुत बोलने वाला आदमी हमेशा लज्जित होता है और जो कम बोलता है और सोच-समझकर बोलता है, उसे लज्जा नही उठानी पड़ती है, क्योंकि गंभीरता से आदमी का मान बढ़ता है और उसके प्राणों को भी खतरा नही होता- लेकिन बकवासी आदमी ऊटपटाँग बातें करके मुसीबत उठाता है| चौथी बात यह है कि मधपान कभी न करना, क्योंकि मदिरा बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है| पाँचवी बात यह है कि हाथ रोककर खर्च करना और मितव्यता को हमेशा अपने सिद्धांत बनाए रखना| इसका मतलब यह नही कि इतना कम खर्च करो कि लोग तुम्हें कंजूस कहने लगे और इतना खर्च भी न करना कि निर्धन हो जाओ| जो धनवान होता है, उसे हज़ार दोस्त घेरे रहते है- मगर जब पैसा नही रहता, कोई भी नही पूछता|”

नूरुद्दीन अली इसी प्रकार अपने पुत्र को जीवन के लिए उपयोगी बातें अपनी अंतिम साँस तक बताता रहा| जब वह मर गया तो बदरूदीन ने बड़े समारोहपूर्वक गमी की सारी रस्में अदा की|

बदरूदीन ने जिसे बसरा में जन्म लेने के कारण लोग बसराई कहने लगे थे, उस देश की रीति के अनुसार एक महीने तक घर में बैठकर पिता की मृत्यु का मातम किया| इस पर बादशाह को आपत्ति ही क्या होती, किन्तु बदरूदीन को बाप के मरने का इतना शोक हुआ कि उसके बाद भी दरबार में नही आया| जब दूसरा महीना भी बीत गया तो बादशाह को बड़ा क्रोध आया| उसने बदरूदीन हसन की बजाय दूसरे व्यक्ति को मंत्री नियुक्त कर दिया और एक दिन नए मंत्री को आज्ञा दी, “बदरूदीन हसन की ज़मीन-जायदाद जब्त कर लो और उसे गिरफ्तार करके मेरे सामने लाओ|”

नया मंत्री सिपाहियों की एक टुकड़ी लेकर बदरूदीन के घर की ओर चला| बदरूदीन के एक गुलाम ने यह देख लिया और वह दौड़कर अपने स्वामी के निकट आ गया और उसके पाँवो पर गिरकर उसके वस्त्रों को चूमकर बोला, “आप तुरन्त घर छोड़ दे|

बदरूदीन ने पूछा, “आखिर बात क्या है?”

गुलाम ने कहा, “अधिक कुछ कहने-सुनने का समय नही है| बादशाह ने आपकी सम्पति जब्त करने और आपको गिरफ्तार करने का आदेश दिया है और नया मंत्री राजमहल से सिपाही लेकर निकल चुका है|”

बदरूदीन यह सुनकर घबरा गया और बोला, “मैं कुछ रत्न और रुपया-पैसा तो ले लूँ|”

गुलाम ने कहा, “कुछ न लीजिए, सिर्फ़ अपनी जान लेकर निकल जाइए, क्योंकि मंत्री का किसी क्षण भी इस मकान में प्रवेश हो सकता है|”

यह सुनकर बदरूदीन ने अपने को छुपाने के लिए चेहरे पर नकाब डाल ली और घर के पिछवाड़े से निकल गया| वह कब्रिस्तान की और जाने लगा, किन्तु कब्रिस्तान दूर था और बदरूदीन पैदल जा रहा था, इसलिए उसके कब्रिस्तान पहुँचते-पहुँचते सूरज डूब गया| वह अपने पिता की उस लम्बी-चौड़ी कब्र पर पहुँचा, जहाँ वह दफ़न था| वह कब्र नुरूदीन ने अपने जीवन काल ही में अपने लिए बनवा ली थी|

वह कब्र पर जाकर बैठा ही था कि उसकी एक यहूदी व्यापारी से भेंट हुई| यहूदी ने बदरू दीन को पहचाना और पूछा, “आप यहाँ रात में कैसे आए?”

बदरूदीन ने कहा, “मैंने स्वप्न में अपने पिता को देखा था, जो नराज़ होकर मुझसे कह रहे थे कि तू मुझे बिल्कुल भूल गया और मुझे दफन करने के बाद मेरी कब्र पर भी नही आया! इसीलिए मैं परेशान होकर तुरंत ही घर से चल पड़ा और यहाँ पहुँच गया और मैंने कोई सेवक आदि भी अपने साथ नही लिया|”

यहूदी को उसकी बात पर विश्वास न हुआ और वह समझ गया कि बदरूदीन पर कोई मुसीबत आई है| उसने कहा, “आपको शायद नही मालूम कि आपके पिता ने व्यापार में भी पैसा लगाया था| कई ज़हाजों पर उनका हज़ारों दीनार का माल लदा हुआ है और वे ज़हाज व्यापार यात्राओं पर है| आपके पिता मुझ पर बड़े कृपालु थे और मैं अपने को उनका सेवक समझता था| अब उस माल के आप मालिक है| चाहे तो अपने जहाज के माल को मेरे हाथ बेच दे, मैं उसे छः हज़ार मुद्राओं में खरीदने के लिए तैयार हूँ|”

बदरूदीन के पास हो कानी कौड़ी भी न थी| उसने इन मुद्राओं को भगवान की देन समझा और सौदा मंजूर कर लिया| यहूदी ने कहा, “अच्छी तरह सोच लीजिए, छः हज़ार मुद्राएँ देकर मैं आपके ज़हाज के माल का स्वामी हो जाऊँगा, चाहे माल कितने का भी हो| क्या आप यह सौदा पूरी रजामंदी से कर रहे है?”

बदरूदीन ने कहा, “हाँ, मैं पूरी रजामंदी से माल बेच रहा हूँ|”

यहूदी ने कहा, “मालिक! मैं आपके ऊपर पूरा विश्वास करता हूँ, किंतु दूसरों को दिखाने के लिए जरुरी है कि आप यह क्रयपत्र लिखित रुप में मुझे दे|”

यह कहकर उसने कमर से बँधा हुआ कलमदान निकाला|

बदरूदीन ने लिखकर दे दिया, ‘मैं बसरा पहुँचने वाले अपने ज़हाज का माल इसहाक यहूदी के हाथ छः हज़ार मुद्राओं में बेचता हूँ|’ यह लिखकर नीचे दस्तखत कर दिए|

यहूदी ने वह कागज लिया और बदरूदीन को छः हज़ार मुद्राओं की थैली देकर चला गया|

बदरूदीन अब अपने पिता की कब्र से लिपट कर अपने दुर्भाग्य पर रोने लगा और बहुत देर तक रोता रहा| यहाँ तक कि रोते-रोते सो गया|

इसी अरसे में एक जिन उधर घूमता-फिरता आ निकला| बदरूदीन का सुंदर रुप देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ| इतना सुंदर कोई मनुष्य नही देखा था| उसे देर तक देखने के बाद वह आकाश में एक परी के पास पहुँचा| परी से उसने कहा, “ज़मीन पर मेरे साथ चलो| मैं वहाँ पर एक कब्रिस्तान में एक कब्र पर सोता हुआ ऐसा आदमी दिखाऊँगा, जिसकी सुंदरता पर तुम भी मोहित हो जाओगी|”

परी को भी उसकी बात सुनकर आश्चर्य हुआ| दोनों ज़मीन पर आए और जिन ने सोते हुए बदरूदीन की ओर उँगली उठाकर कहा, ऐसा सुंदर मनुष्य कही देखा है?”

परी ने बदरुदीन को गौर से देखा और बोली, “वास्तव में यह अत्यंत रुपवान है किंतु मैं काहिरा में जो मिस्त्र की राजधानी है, एक विचित्र बात देख कर आई हूँ| यदि तुम उसे जानना चाहो तो बताऊँ?”

जिन ने कहा, “जरुर बताओ|”

परी बोली, “मिस्त्र के बादशाह का एक मंत्री है, जिसका नाम शमसुदिन मुहम्मद है| उसकी एक बीस बरस की पुत्री है, जो अति सुंदर है| बादशाह ने उसके रुप की प्रशंसा सुनकर मंत्री से कहा, ‘तुम अपनी कन्या का विवाह मेरे साथ कर दो|’

“मंत्री ने हाथ जोड़कर कहा, ‘महाराज! मुझे इस अनुग्रह से क्षमा करे|’

“कारण पूछने पर उसने कहा, ‘मेरा छोटा भाई नूरुदीन अली था, वह बहुत दिन हुए घर छोड़कर चला गया| सुना है कि वह बसरा का मंत्री हो गया था और अब जीवित नही है| लेकिन उसके यहाँ एक बेटा हुआ था, जो अब भी होगा|’

“फिर मंत्री ने बादशाह को वह तकरार बताई जो उसके और उसके भाई के बीच हुई थी ओर कहा की चूंकि मैंने भाई को वचन दे दिया था कि अपनी पुत्री का विवाह उसके पुत्र के साथ करुँगा, इसलिए मैं मज़बूर हूँ और आपकी आज्ञा का पालन नही कर सकूँगा| आपके लिए तो काहिरा में अमीरों की अनगिनत सुंदर कन्याएँ है, जिससे चाहे विवाह करे|

“बादशह मंत्री की बात सुनकर अत्यंत क्रुद्ध हुआ| उसने कहा, ‘तुम मुझे इतना छोटा समझते हो कि मेरे साथ रिश्तेदारी भी न करो| मैं तुम्हें इस गुस्ताखी की ऐसी सजा दूँगा कि तुम्हें हमेशा याद रहेगी| अब तुम्हारी कन्या एक बदसूरत गुलाब से ब्याही जाएगी|’

“यह कहकर बादशाह ने घुड़साल में काम करने वाले एक महाकुरुप कुबड़े हब्शी गुलाम को दूल्हे की तरह सजाने का आदेश दिया| इस गुलाम का पेट भी बहुत बड़ा था और पाँव भी टेढ़े थे| उसने मंत्री से कहा, ‘जाओ अपनी पुत्री का उस गुलाम के साथ विवाह करने की तैयारी करो|’

“मंत्री बेचारा अत्यंत दुखी मन से अपने भवन में आया| बादशाह की आज्ञा टाली नही जा सकती थी, इसलिए उसने विवाह की तैयारियों का आदेश दिया| रात को काहिरा में गुलामों ने बरात सजाई और कुबड़े गुलाम को हम्माम में भेजा और खुद हम्माम के द्वार पर एकत्र हो गए|”

परी थोड़ी देर तक रुकी और एक नज़र बदरूदीन की ओर देखकर जिन से बोली, “इस समय कुरुप, कुबड़े गुलाम को नहला-धुलाकर शादी के कपड़े पहनए जा रहे है और दूल्हे की तरह श्रृंगार भी किया जा रहा है|”

यह सुनकर जिन बोला, “अगर हम लोग कुछ ऐसा करे कि उस कन्या का विवाह इस सुंदर युवक से हो जाए तो कैसा रहे?”

परी ने कहा, “मैं तो दिल से चाहती हूँ कि कुछ ऐसा किया जाए की बादशाह का अन्याय घटित न हो सके| गुलाम को धोखा देकर उसकी जगह इस युवक को बैठा दिया जाए| इससे बादशाह को भी उसके अनुचित क्रोध का फल मिल जाएगा और मंत्री और उसकी पुत्री का भी गुलाम के साथ रिश्तेदारी करने के अपमान से बचाव हो जाएगा|”

जिन ने परी से कहा, “अगर तुम मेरी सहायता करो तो यह काम हो सकता है| मैं उसके जागने के पहले ही इसे उठाकर काहिरा पहुँचा दूँगा|”

चुनाँचे जिन और परी एक क्षण में ही बदरूदीन हसन को उठाकर काहिरा में हम्माम के पास ले गए| बदरूदीन की आँख खुली तो वह स्वयं को एक नई जगह पाकर बहुत घबराया और चीत्कार करने ही वाला था कि जिन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उससे चुप रहने को कहा, फिर उसे समझाया, “मैं तुम्हें एक मशाल देता हूँ, उसे लेकर शादी के जुलूस में सम्मिलित हो जाओ| मंत्री के मकान में निडर होकर चले जाओ और अंदर जाकर कुबड़े के दाहिनी ओर बैठ जाना| इसके पहले गाने-बजाने वालों को जो बारात के साथ होंगे, खूब इनाम देना| अंदर जाकर दुल्हन की बांदियो को भी मुठ्ठी में भरकर सिक्के देना| यह ख्याल मत करना कि तुम्हारी थैली खाली हो जाएगी| तुम किसी से न डरना और मेरे बताए अनुसार काम करते जाना|”

तदुपरांत बदरूदीन मशाल लेकर भीड़ में शामिल हो गया| कुछ देर में दूल्हा बना गुलाम भी हम्माम से बाहर निकला और शाही घोड़े पर बैठकर दुल्हन के घर की ओर चला| बदरूदीन ने गाने-बजाने वालों को मुट्ठी भर-भरकर रुपए दिए| वे इससे बड़े प्रसन्न हुए| बारात मंत्री के द्वार पर पहुँची तो द्वारपालों ने बारातियों को बाहर रोक दिया| गाने-बजाने वालों को तो अंदर जाना ही था, चुनाँचे उन्होंने इस खुले हाथ वाले बाराती यानि बदरूदीन को भी अंदर जाने की अनुमति द्वारपाल से लड़-झगड़कर दिलवा दी और कहा कि यह गुलाम नही, उच्च वर्ग का परदेसी है| उन्होंने उसके हाथ से मशाल भी ले ली और उसे दूल्हे के दाहिनी ओर बिठा दिया| दूल्हे के बाई ओर दुल्हन बैठी थी|

दुल्हन यधपि सुंदर थी, किंतु कुरुप गुलाम से ब्याही जाने पर अत्यधिक शोक-संतप्त और मुरझाई हुई थी| कुछ क्षणों में दुल्हन की बांदियाँ हाथ में मशालें लेकर आई| उनके साथ काहिरा की अन्य स्त्रियाँ भी थी| वे सब कहने लगी, “इस कुबड़े की तरफ़ देखा भी नही जाता| हम लोग तो अपनी सुंदर दुल्हन को तो इस सजीले जवान को देंगे, जो उसके साथ बैठा है|”

उन्होंने इस बात का भी ख्याल न किया कि बादशाह की आज्ञा से गुलाम का विवाह हो रहा है और ऐसी बातें करने पर उन्हें दंड मिल सकता है| उन्होंने ऐसा शोर-गुल किया कि गाने-बजाने की आवाज़ें तक दब गई|

कुछ ही देर में फिर गाना-बजाना शुरु हो गया| रात भर यह राग-रंग चलता रहा| डोमनियों ने सात प्रकार के राग गाए और प्रत्येक राग पर दुल्हन को एक नया जोड़ा पहनाया गया| जोड़े बदलने के बाद दुल्हन ने गुलाम को घृणापूर्वक देखा और उसके पास से उठकर अपनी सहेलियों के साथ बदरूदीन के समीप जा बैठी| बदरूदीन ने जिन के आदेशानुसार बांदियों आदि को मुट्ठी भर-भरकर इनाम देना शुरु किया और मुट्ठी भर-भरकर सिक्के उछालने भी शुरु किए| स्त्रियाँ एक-दूसरे से लड़-झगड़कर सिक्के उठने लगी और बदरूदीन की ओर प्रसंशा के भाव से देखने लगी और उसे आशीर्वाद देने लगी| वे एक-दूसरे से इशारे से बात कर रही थी कि यह सुंदर युवक की दुल्हन के लायक है| यह कुबड़ा गुलाम उसके लायक नही है|

महल के अन्य सेवकों में भी यही बात होने लगी| कुबड़े के कान में कुछ तो भनक पड़ी, किंतु वह साफ़ न सुन सका, क्योंकि गाने-बजाने की आवाज़ भी ऊँची थी और सामने तरह-तरह के तमाशे भी हो रहे थे| दुल्हन जब सारे जोड़े बदल चुकी तो गाना-बजाना बंद हो गया| अब सेवकों ने बदरूदीन को उठने का इशारा किया| वह उठकर खड़ा हो गया| अब सारे लोग उस कक्ष से बाहर चले गए और दुल्हन भी अपनी सहेलियों के साथ अपनी भवन को चली गई| वहाँ उसे सेविकाओं ने सोने के समय के कपड़े पहना दिए| इस कक्ष में गुलाम और बदरूदीन ही रह गए|

गुलाम ने क्रुद्ध दृष्टि से बदरुदीन को देखकर कहा, “अब तेरा यहाँ क्या काम है? क्यों खड़ा है यहाँ? जाता क्यों नही?”

वह बेचारा घबराकर बाहर जाने का उधत हुआ, किंतु परी और जिन, जो अदृश्य रुप से वहाँ मौजूद थे, उससे कहा, “तुम बाहर न जाओ, हम लोग इस कुबड़े को ही भगा देंगे और तुम दुल्हन के कमरे में चले जाना|”

परी और जिन के आश्वासन पर बदरूदीन वही रुक रहा| उसकी जगह कुबड़े को ही भागना पड़ा| हुआ यह कि जिन ने बिल्ली का रुप धारण कर लिया और वह बिल्ली कुबड़े को तेज नज़रों से देखने लगी| कुबड़े ने डपटकर और हाथ फटकारकर उसे भगाना चाहा, मगर वह बिल्ली भयानक रुप से गुर्राने लगी और अंगारे जैसी लाल आँखों से उसे देखने लगी| साथ ही उसने अपना आकार बढ़ाना शुरु किया और गधे जितनी हो गई| अब कुबड़ा घबड़ाया और भागने को तैयार हुआ| बिल्ली ने और आकार बढ़ाया और भैंसे जैसी हो गई और गरजकर बोली, “ठहर कमीने, तू जा कहाँ रहा है, तेरा अंत निकट है|”

कुबड़ा गुलाम डर के मारे ज़मीन पर गिर पड़ा| उसने कपड़ो से मुहँ छुपा लिया और कहा, “भैसा जी महाराज! मुझसे क्या कसूर हुआ है और मुझे क्या आज्ञा है?”

भैसा बना हुआ जिन बोला, “तेरा यह साहस कि मेरी प्रेयसी से विवाह रचाए कुबड़े|”

कुबड़ा बुरी तरह घबराकर बोला, “मालिक मुझे क्षमा करे| मुझे नही मालूम था की मंत्री की कन्या आपकी प्रेमिका है|”

भैसा बोला, “अच्छा, तेरी जान नही लूँगा- लेकिन जैसा कहूँ, वैसा कर| तू इसी तरह आँखें बंद करके रात भर यहाँ रह और जब सवेरा हो जाए तो भाग जाना| इधर मुड़कर भी नही देखना, वरना मैं सींगों से तेरा पेट फाड़ डालूँगा|” कहकर वह भैसा मनुष्य के रुप में आ गया| उसने कुबड़े को सिर के बल पर दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और कहा, “अगर तुमने रात में कभी हिलने-डुलने की कोशिश की तो तुझे इसी दीवार से रगड़कर खत्म कर दूँगा|” फिर परी और जिन वहाँ से चले गए|

इधर बदरूदीन हँसी-खुशी दुल्हन के भवन पर पहुँचा| वहाँ एक वृद्ध सेविका उसे देखकर बड़ी प्रसन्न हुई और बोली, “बड़ा अच्छा हुआ कि कुबड़े की जगह तुम आए| अब तुम उस कमरे में जाओ, जहाँ दुल्हन तुम्हारी प्रतीक्षा में है| उसके साथ रात भर आनंद करो|” फिर वह बदरूदीन को कमरे में भेजकर बाहर से कमरा बंद करके चली गई|

मंत्री की पुत्री ने उससे पूछा, “तुम तो मेरे पति के साथ हो, फिर यहाँ कैसे आए?”

बदरूदीन ने कहा, “मैं तुम्हारे पति का साथी नही, तुम्हारा पति ही हूँ| बादशाह की आदत हँसी-मज़ाक करने की है, इसलिए उसने कुबड़े की बारात सजवाई थी, किंतु वास्तव में उसने तुम्हारे साथ मेरी शादी करवाई है| उस कुबड़े से हँसी-ठट्ठा करते है| सो बादशाह ने भी किया| वह वापस घुड़साल में काम करने के लिए भेज दिया गया है| तुम इत्मीनान रखो| वह अब कभी तुम्हें सूरत नही दिखाएगा|”

मंत्री की पुत्री जो पहले बड़ी उदास थी, अपने सुंदर पति को देखकर बड़ी प्रसन्न हुई| वह कहने लगी, “मैं तो दुख और चिंता के मारे मरी जा रही थी ऐसे कुरुप कुबड़े के साथ जीवन कैसे कटेगा| भगवान का लाख-लाख धन्यवाद है कि उसने मुझे कुबड़े से बचाकर तुम जैसा खूबसूरत पति दिया है|”

यह कहकर वह बदरुदीन से लिपट गई| बदरूदीन भी उसके रुप और प्रेम को देखकर भाव-विभोर हो गया| उसने अपनी पगड़ी और थैली एक चौकी पर रख दी और भारी पोशाक भी उतार दी| सोते समय पहनने वाली टोपी, एक मिर्जई और तंग मोहरी का पजामा ही उसके बदन पर रहा| इतना कुछ खर्च करने पर भी उसकी थैली जिन के जादू के कारण भरी-की-भरी ही थी| रात में जिन और परी फिर आए| अब उन्हें शरारत सूझी| उन्होंने तय किया कि बदरूदीन को जैसे सोते में बसरा से काहिरा लाए थे, वैसे ही कही और पहुँचा दिया जाए| चुनाँचे उन्होंने उसे उठाकर दमशिक नगर की जामा-मस्जिद के बाहर लिटा दिया, फिर दोनों वहाँ से चले गए|

सवेरे अजान की आवाज़ सुनकर दमशिक वासी जब नमाज़ पढ़ने आए तो सीढ़ियों पर बदरुदीन को सोया देखकर ताज्जुब में पड़े कि यह कौन है और यहाँ क्यों सो रहा है?

कोई कहता था कि रात में यह अपनी पत्नी से लड़-झगड़कर आ गया है और इतना गुस्से में था कि रात के पहनने वाले कपड़े भी नही बदले| किसी ने कहा- यह बात नही| यह रात को बहुत देर तक शराब पीता रहा है और घर का रास्ता भूलकर लड़खड़ाता हुआ यहाँ आया और गिरकर सो गया|

इसी प्रकार लोग भांति-भांति की अटकले लगाने लगे, क्योंकि किसी को पता नही था कि वह कौन है और क्यों वहाँ पड़ा है?

बदरूदीन कुछ तो सवेरे की ठंडी हवा से और कुछ अपने चारों ओर घिरे लोगों की आवाज़ों से जाग गया और अपने को अपरिचित जगह एक मस्जिद के सामने देखकर बड़े आश्चर्य में पड़ा| उसने लोगों से पूछा, “यह कौन-सी जगह है और मैं यहाँ कैसे आया?”

लोगों ने कहा, “भाई! यह तो हम लोग भी सोच रहे है कि तू कौन है और यहाँ कैसे आया? तुझे तो यह भी नही मालूम है यह कौन-सी जगह है| यह दमशिक का नगर है और यह यहाँ की जामा-मस्जिद है|”

बदरूदीन ने कहा, “बड़े आश्चर्य की बात है कि कल रात मैं काहिरा में सोया था आज सुबह दमशिक में पहुँच गया|”

उसकी बात सुनकर लोगों ने समझा कि वह पागल है और उसकी जवानी और खूबसूरती को देखकर उसके उन्मादग्रस्त होने पर खेद प्रकट करने लगे|

एक बूढ़े ने कहा, “बेटे! तुम क्या बातें कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है कि रात में तुम काहिरा में हो और सुबह दमशिक पहुँच जाओ?”

बदरूदीन ने कहा, “मैं सच कहता हूँ| पिछली रात मैं काहिरा में था और उससे पिछली रात मैं बसरा में!”

यह सुनकर आस-पास के लोग ठहाका मारकर हँसने और शोरगुल करने लगे| वे कहने लगे, “तुम बिल्कुल मूर्ख हो फिर किसी गुप्त कारण से ऐसी बेसिर-पैर की बातें कर रहे हो! बड़े खेद की बात है कि तुम जैसे भले-चंगे दिखने वाले आदमी की मानसिक दशा विक्षिप्त की सी हो जाए|”

एक आदमी ने कहा, “तुम खुद ही बताओ, यह कैसे संभव है कि कोई रात को काहिरा में सोए और सुबह दमशिक में जागे? मालूम होता है, तुमने सपना देखा है और अभी तक ठीक तरह से जागे नही हो, उसी सपने की दुनिया में खोए हो!”

बदरूदीन हसन ने कहा, “मैं बिल्कुल ठीक कहता हूँ| कल रात को काहिरा में मेरा विवाह हुआ था!”

लोग हँसे और कहने लगे कि यह वाकई अभी तक सपना देख रहा है| बदरूदीन बोला, “नही, सच्ची बात है, सपना नही है| रात को मेरी दुल्हन ने सात रागों पर सात जोड़े बदले| उसका विवाह एक कुरूप कुबड़े गुलाम से किया जा रहा था, किंतु मेरे साथ कर दिया गया| मैं अच्छे वस्त्र और भारी पगड़ी पहने था और मुद्राओं से भरी एक थैली भी मेरे पास थी| मालूम नही वे चीजें कौन ले गया और मुझे यहाँ छोड़ गया|”

बदरूदीन जितना अपनी बात पर जोर देता था, उतना ही लोग हँसते और उसे पागल बताते थे| वह तंग आकर एक ओर को चल पड़ा तो भीड़ उसके पीछे हो ली|

सभी लोग चिल्ला रहे थे, “पागल है!” उसके ऊपर पत्थर भी फेंके जाने लगे| बदरूदीन घबराकर एक हलवाई की दुकान में घुस गया|

यह हलवाई पहले पश्चिमी क्षेत्रों में लुटेरों का सरदार था और लूटमार से जीवन निर्वाह करता था| कुछ काल से वह इस कर्म को छोड़कर ईमानदारी से रोजी कमाने लगा था| वह बहुत परोपकारी और मिलनसार हो गया था और आम लोग उसके प्रशंसक थे, फिर भी उसे क्रुद्ध करना कोई भी नही चाहता था- क्योंकि उसका अतीत लोगों को मालूम था| उससे लोग भय भी खाते थे|

हलवाई ने सबको डाँटकर भगा दिया और बदरूदीन से पूछा, “क्या बात है?”

उसने अपना पूरा हाल बताया तो हलवाई ने कहा, “तुम बड़े समझदार लगते हो, लेकिन यह कहानी अब और किसी से न कहना, वरना लोग तुम्हें पागल ही कर छोड़ेंगे| मेरे कोई संतान नही है| मैं तुम्हें गोद ले लूँगा और जब तुम मेरे दत्तक पुत्र बन जाओगे तो तुम्हें छेड़ने का किसी को साहस नही रहेगा|”

बदरूदीन को अपने वर्ग से नीचे के आदमी का दत्तक पुत्र बनने के विचार से दुख तो हुआ, लेकिन और कोई चारा भी नही था, इसलिए उसने हलवाई की बात मान ली| हलवाई ने उसे अच्छे कपड़े पहनाए और मित्रों और संबंधियों को बुलाकर गोद लेने की रस्म पूरी कर दी| काज़ी के सामने भी कार्यवाही हो गई| बदरूदीन का नाम तीखा हसन हलवाई के नाम से मशहूर हो गया|

उधर मंत्री शमसुदीन की पुत्री जब सवेरे सोकर उठी तो उसने अपने पति को अपने पास ना पाया| वह समझी कि वह शौच आदि के लिए गया होगा और वह उसकी प्रतीक्षा करने लगी| इतने में मंत्री शमसुदीन शोकाकुल दशा मे वहाँ आया, क्योंकि वह समझता था कि कुबड़ा गुलाम ही उसका दामाद हो गया है| उसने दुखी स्वर में अपनी पुत्री को पुकारा|

मंत्री की पुत्री ने जब दरवाजा खोला तो बड़ी प्रसन्न बदन थी| मंत्री को आश्चर्य हुआ, क्योंकि गुलाम की पत्नी होने पर उसे दुखी होना चाहिए था|

मंत्री ने पूछा, “तुम इतनी खुश कैसे हो? मैं सोचता था, तुम रो रही होगी!”

लड़की बोली, “पिताजी! मेरा विवाह कुरूप कुबड़े के साथ नही हुआ, बल्कि एक अति रुपवान नवयुवक के साथ हुआ है|”

मंत्री ने कहा, “तू क्या कहती है! वह कुबड़ा ही तेरा पति है और वही यहाँ सोया होगा|”

पुत्री बोली, “नही पिताजी, कुबड़ा जाए जहन्नुम में| मेरा पति तो काली भवों वाला और बड़ी आँखों वाला सजीला जवान है| अभि वह शौच आदि के लिए गया है| वही इस कमरे में सोया था| अभी वापस आता होगा| आप स्वंय उसे देख लीजिएगा|”

मंत्री चक्कर मे पड़ा कि यह सजीला जवान कहाँ से आ गया| वह उसे महल मे ढूँढ़ने लगा, लेकिन वह कही न मिला| हाँ, उसने एक कोने में यह जरुर देखा कि कुबड़ा गुलाम सिर के बल दीवार के सहारे खड़ा है|

मंत्री ने उससे पूछा, “तुम्हें इस प्रकार किसने खड़ा किया?”

कुबड़ा उसकी आवाज़ पहचानकर भी वैसे ही उल्टा खड़ा रहा और बोला, “आपको मेरे साथ ऐसा क्रूर परिहास नही करना चाहिए था| आप जानते थे कि भैंसा बना हुआ जिन आपकी पुत्री का प्रेमी है तो मुझे दमाद बनाने के लिए क्यों कहा?”

मंत्री ने कहा, “तू पागल तो नही हो गया है कि ऐसी ऊँटपटाँग बातें कर रहा है?”

कुबड़े ने कहा, “नही, मैं सच कह रहा हूँ| सुबह होने तक मैं हिल भी नही सकता था, वरना जिन मुझे मार डालता| आप जानना ही चाहते है तो सुनिए- रात को एक काली बिल्ली मुझे आकर डराने लगी| मैंने उसे भगाया तो वह बड़ी होने लगी और कुछ देर में भैंसा बन गई| उसने बताया कि वह आपकी पुत्री का प्रेमी है| उसने मुझे खुद इसी प्रकार खड़ा कर दिया और कहा कि सुबह से पहले अपनी जगह से हिला तो वह मुझे मार डालेगा|”

मंत्री यह बेसिर-पैर की कहानी सुनकर ऊब गया| उसने गुलाम को सीधा खड़ा कर दिया| गुलाम सिर पर पैर रखकर भागा और पीछे निगाह भी नही की| वह सीधा राजमहल में गया और बादशाह के पाँवों पर गिर पड़ा|

बादशाह के पूछने पर उसने रात का सारा अनुभव बताया| बादशाह यह सब सुनकर बहुत हँसा|

इशर मंत्री अपनी पुत्री के पास फिर गया और बोला, “तुम जिसे अपना पति कहती हो, वह तो राजमहल में कही नही मिला| तुम झूठ बोल रही हो|”

पुत्री ने कहा, “मैं सच कहती हूँ| आपको मेरी बात पर विश्वास न होता हो तो यह चौकी पर रखे हुए कपड़े और यह पगड़ी देखिए| ये चीजें मेरे पति की है| सोने से पहले उसने कपड़े उतारकर यहाँ रख दिए थे|”

मंत्री ने पगड़ी को देखा और जान गया कि ऐसी पगड़ी मोसिल के मंत्रीगण पहना करते है| उसने पगड़ी को उलटकर देखा तो उसमें से कपड़े में लिपटी हुई कोई चीज़ गिरी| उसे खोलकर देखा तो उसमें एक लंबा पत्र था| यह वह अंतिम पत्र था, जो नुरुदीन अली ने अपने पुत्र को लिखा था और बदरूदीन उसे हमेशा अपनी पगड़ी में सुरक्षापूर्वक रखता था| मंत्री को सिक्कों से भरी एक थैली भी वहाँ मिली, जिसके अंदर इसहाक यहूदी का लिखा हुआ एक कागज़ था कि छः हज़ार मुद्राओं से मैंने बदरूदीन के जहाज़ का माल खरीद लिया है|

शमसुदीन यह सब चीज़ें पाकर गश खा गया| थोड़ी देर में सचेत होने पर वह बोला, “बेटी! तुम ठीक ही कहती हो और तुम्हारी प्रसन्नता भी उचित है| तुम्हारा पति तुम्हारा चचेरा भाई है|” यह कहकर वह अपने भाई के हाथ के लिखे पत्र को बार-बार चूमने और भाई को याद करके रोने लगा|

उक्त पत्र में नुरुदीन ने सविस्तार लिखा था कि वह कब बसरा पहुँचा, कब उसका विवाह हुआ और कब उसका पुत्र बदरूदीन पैदा हुआ| शमसुदीन को यह पढ़कर आश्चर्य हुआ कि नुरुदीन का और उसका विवाह एक ही दिन हुआ था और उसकी पुत्री और बदरूदीन का जन्म भी एक ही दिन हुआ था| पहले मजाक में कही हुई बातों को ठीक निकलने पर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ| वह तुरंत ही पगड़ी और पत्र लेकर बादशाह के सम्मुख गया और सारा हाल विस्तारपूर्वक बताया| बादशाह को भी आश्चर्य हुआ और उसने आदेश दिया कि यह सारी बातें इतिहास में लिखी जाएँ|

मंत्री ने बदरूदीन के आने की एक सप्ताह तक प्रतीक्षा की| फिर उसने काहिरा नगर में उसकी खोज की, पर बदरूदीन कही न मिला| इससे मंत्री को अत्यंत दुख हुआ| उसने बदरूदीन की सारी चीज़ें सुरक्षापूर्वक संदूक में रखी, बल्कि विवाह के समय प्रयुक्त सारे कमरों को, वहाँ की हर चीज़ को जैसी-की तैसी रखकर ताला डलवा दिया| मंत्री की पुत्री को कुछ दिन बाद मालूम हुआ उसे गर्भ रह गया है| नौ महीने बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया| वह पुत्र अत्यंत सुंदर था| उसका नाम रखा गया अजब| जब अजब सात वर्ष का हुआ तो शमसुदीन ने उसे एक अच्छे मकतब में भेजा, जहाँ उसने अत्यंत विद्वान गुरुजनों से शिक्षा लेनी आरंभ की| उसके मकतब में जाने के समय भी दो सेवक उसके साथ रहा करते थे|

अजब को अपने ऐश्वर्य का बड़ा घमंड हो गया, क्योंकि उसके सभी सहपाठी उससे सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से निम्न स्तर के थे| वह उन्हें मारा-पीटा कर्ता था और गालियाँ देता रहता था| वे इस बात से दुखी हुए और उन्होंने गुरु से शिकायत की| गुरु ने पहले तो उनसे कहा, “बड़े घर का लड़का है, उसकी बातें श लिया करो|” लेकिन जब अजब की ज्यादतियाँ सीमा से बाहर हो गई और उसने गुरु के समझाने-बुझाने पर भी ध्यान नही दिया, तो गुरु ने लड़को से कहा, “मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ| तुम सब लोग एक नया खेल शुरु करो, जिसमें हर लड़का अपने माता-पिता का नाम बताए| अजब अपने पिता का नाम न बता सकेगा और तुम्हारे साथ खेलना बंद कर देगा|”

लड़को ने ऐसा ही किया| दूसरे दिन मैदान में इकट्ठा होकर कहा कि हम नया खेल आरंभ करते है, जिसमें हर लड़का अपने माँ-बाप का नाम बताएगा| जो न बता सकेगा, वह खेल से अलग कर दिया जाएगा| अतः सभी लड़को ने एक-एक करके अपने माता-पिता का नाम बताना शुरु किया|

जब अजब की बारी आई तो उसने कहा, “मेरा नाम अजब है| मेरी माँ का नाम हसना है और मेरे पिता का नाम शमसुदीन मुहम्मद है| मेरे पिता मिस्त्र के बादशाह का मंत्री है|”

यह सुनकर सब लड़के कह उठे, “यह तू क्या कहता है? तेरे पिता शमसुदीन नही है!”

अजब ने उन्हें डपटकर पूछा, “क्यों? मेरे पिता शमसुदीन मुहम्मद क्यों नही है?”

लड़के ठहाका मारकर हँसे और बोले, “शमसुदीन तेरे पिता नही, तेरी माँ के पिता है, यानी तेरे नाना है| तू अपने बाप का नाम नही बता सका, इसलिए हम तेरे साथ नही खेलेंगे|” और वे सब उसे अकेला छोड़कर चले गए|

अजब अपने गुरु के पास गया और बोला, “लड़के यह झूठ कहते है कि शमसुदीन मेरा पिता नही है|”

गुरु ने कहा, “बेते! वह ठीक कहते है| तेरे पिता का नाम तो मुझे भी नही मालूम| शमसुदीन वास्तव में तेरे नाना है| बादशाह ने क्रुद्ध होकर तेरी माँ का विवाह एक गुलाम साईस से करवाया था, लेकिन विवाह की रात किसी जिन ने साईस को भगा दिया और स्वयं तेरी माँ के पास रहा| अब तुम सहपाठियों के साथ न खेलो, न उन्हें दुख दो|”

अजब यह बातें सुनकर रोता हुआ अपनी माँ के पास आया और कहा, “भगवान के लिए मुझे बताओ कि मेरे पिता कौन है?”

माँ ने कहा, “तुम्हारा बाप शमसुदीन है| वह तुम्हें हमेशा प्यार किया करता है|”

अजब ने कहा, “तुम झूठ बोलती हो| शमसुदीन मेरा नही, तुम्हारा बाप है| तुम मुझे मेरे असली पिता का नाम क्यों नही बताती?”

उसकी माँ यह सुनकर रोने लगी, क्योंकि उसे अपने पति की याद आ गई, जो केवल एक रात उसके साथ रहकर न जाने कहाँ लोप हो गया था| इसी बीच शमसुदीन भी वहाँ आ गया और बेटी को रोते देखकर उसने पूछा, “तुम क्यों रो रही हो?”

बेटी ने रोने का कारण बताया तो वह भी दुखी हुआ| वह रात भर दुख में निमग्न रहा और सोचता रहा कि कैसे दुर्भाग्य की बात है कि लड़की की बदनामी इस तरह हो रही है| दूसरे दिन वह दरबार में गया तो रोते हुए बादशाह के पैरों में गिर गया| उसने सारा हाल बताकर कहा, “अब मुझसे यह बर्दाश्त नही होता कि लोग कहे कि मेरी बेटी ने जिन से लड़का पैदा किया है| आप मुझे कुछ दिनों की छुट्टी दे तो मैं अपने दामाद बदरूदीन को सारे बड़े नगरों, विशेषतः बसरा में जाकर तलाश करूँ|”

बादशाह को भी यह सारी बातें जानकर बड़ा दुख हुआ| उसने न केवल मंत्री को छुट्टी मंजूर कर ली, बल्कि हर जगह के बादशाहों के नाम पत्र और अपने हाकिमों के नाम आदेश लिखवाकर शमसुदीन को दे दिए| इनमें कहा गया था, ‘आप मेरे मंत्री शमसुदीन के भतीजे और दामाद बदरूदीन की खोज में उसकी सहायता करे| जो उस नवयुवक को ढूँढ़ देगा, मैं उससे बड़ा प्रसन्न होऊँगा और उसका एहसान मानूँगा|’ शमसुदीन में अपने स्वामी की इस कृपा पर उसका बड़ा एहसान माना और विदा हुआ|

शमसुदीन अपनी पुत्री और नाती को लेकर काहिरा से रवाना हुआ| बीस दिनों की यात्रा के बाद वह दमशिक पहुँचा| वहाँ जाकर उसने नदी के किनारे अपने डेरे खड़े किए सेवकों को आज्ञा दी कि नगर में जाकर आवश्यक क्रय-विक्रय करो| वह खुद बदरूदीन को ढूँढ़ने नगर में निकल पड़ा|

अजब भी अपने कुछ सेवकों के साथ नगर की सैर को निकला| नगर में आने पर अजब के चारों ओर उसके अनुपम रूप को देखकर लोग जमा हो गए| इससे परेशान होकर अजब बदरूदीन की दुकान में घुस गया|

बदरूदीन को जिस हलवाई ने गोद लिया था, उसका देहांत हो चुका था और इस समय उसकी दुकान का मालिक बदरूदीन ही था| बदरूदीन ने अजब को देखा तो उसके ह्रदय में प्रेम का जवर उठने लगा| वैसे अन्य लोग भी प्रशंसा की दृष्टि से उसे देख रहे थे, किंतु बदरूदीन का तो खून का रिश्ता था, इसलिए वह प्यार में विहल-सा हो गया| अजब के साथ के सेवकों के हब्शी प्रमुख ने कहा, “आप मंत्री-पुत्र है| आपके लिए इस मामूली दुकान पर बैठकर खाना-पीना उचित नही है|”

बदरूदीन ने चुपके से कहा, “इस बेहुदा गुलाम की बात न मानिए|” साथ ही उसने प्रमुख सेवक की भी खुशामद की और उसकी प्रशंसा में एक गीत गाया, जिसका तात्पर्य यह था कि ‘तुम ऊपर से काले लगते हो, लेकिन तुम्हारा मन अत्यंत स्वच्छ है|’ उसने हब्शी जाति की प्रशंसा में भी गीत गाए और सेवक से कहा, “मैं कवि हूँ और तुम्हारी तारीफ़ में कसीदा (प्रशस्ति काव्य) लिखूँगा|”

हब्शी सेवक यह सुनकर प्रसन्न हुआ और उसने अजब को अंदर ले जाकर बिठा दिया|

बदरूदीन ने कहा, “मेरी दुकान की मलाई सब जगह प्रसिद्ध है| मैंने मलाई जमाने का गुर अपनी माता से सीखा है और उसके और मेरे सिवाय ऐसी मलाई कोई नही जमा सकता| मेरी मलाई दूर-दूर जाती है और आप भी इसे खाकर बहुत प्रसन्न होंगे|”

यह कहकर बदरूदीन ने कढ़ाई से मलाई निकाली और उसमें अनार का रस और मिश्री डालकर अजब को दी| वह उसे खाकर बहुत प्रसन्न हुआ| शमसुदीन ने प्रधान सेवक को भी मलाई खिलाई| वह भी खाकर बहुत खुश हुआ| बदरूदीन अजब को देखता जाता था और सोचता जाता था कि अगर उस सुंदरी से, जिसके पास उसने एक रात ही गुजारी थी, कोई पुत्र होता तो शायद ऐसा ही होता| उस सुंदरी की याद करके वह रोने लगा| फिर अजब से पूछा, “आप दमशिक में कैसे आए?”

अजब जवाब देने ही वाला था कि गुलाम ने कहा, “अब यहाँ नही ठहरिए, बहुत देर हो गई है| आपकी माँ आपकी प्रतीक्षा कर रही होगी|” यह सुनकर अजब दुकान से उठकर चल दिया| बदरूदीन को उसका अचानक जाना बर्दाश्त नही हुआ| वह अपनी दुकान बंद करके उसके पीछे चलने लगा| जब नगर के द्वार पर पहुँचा तो अजब के सरदार ने बदरुदीन से डपटकर पूछा, “तुम हमारे पीछे क्यों लगे आते हो?”

उसने अजब से भी कहा, “मैंने आपसे इसलिए इसकी दुकान में न जाने को कहा था कि यह लोग मुहँ लगाने योग्य नही होते|”

बदरूदीन ने कहा, “मैं तुम्हारे पीछे नही हूँ| मुझे उधर कुछ काम है|”

अजब ने भी अपने सेवक से कहा, “वह अपने काम से जा रहा है, इसे जाने दो| तुम किसी को कही आने-जाने से कैसे रोक सकते हो?”

लेकिन जब अजब अपने खेमे के पास पहुँचा और उसने मुड़कर देखा तो बदरूदीन को कुछ पीछे चलते पाया| अब वह डरा कि नाना को मालूम होगा कि मैंने इस हलवाई की मलाई खाई है तो वे नाराज़ होंगे| उसने घबराहट में एक पत्थर उठाया और खींचकर बदरूदीन की ओर फेंका और जल्दी से अपने खेमे में घुस गया|

अजब का फेंका हुआ पत्थर बदरूदीन के माथे पर लगा और उसका माथा लहूलुहान हो गया| उसे बड़ा पश्चाताप हुआ कि मैं तो अपना काम-काज छोड़कर इस लड़के के प्रेम में यहाँ तक आया और उसे मेरा कोई खयाल न हुआ, बल्कि पत्थर मारकर उसने मुझे घायल कर दिया| उसने अपनी दुकान पर आकर घाव की मरहम-पट्टी की और अपने मामूली काम-काज में लग गया|

इधर शमसुदीन तीन दिन दमशिक में दामाद को खोजने के बाद कई प्रमुख नगरों में गया| इनमें हलब, नारदीन, मोसल, सरवर आदि शामिल थे| अंत में वह बसरा पहुँचा और वहाँ के बादशाह से भेंट की| बादशाह ने उसका बड़ा आदर-सत्कार किया और पूछा, “तुम यहाँ कैसे आए?”

शमसुदीन ने कहा, “मैं अपने भाई नुरुदीन अली के पुत्र बदरूदीन हसन को ढ़ूँढ़ने निकला हूँ| आप कुछ उसके बारे में जानते हो तो कृपा करके मुझे बताइए|”

बादशाह ने कहा, “नुरुदीन मेरा मंत्री था| बहुत दिन हुए उसका देहांत हो गया और उसका पुत्र बदरूदीन भी उसके मरने के दो महीने बाद गायब हो गया| मैंने उसकी बहुत खोज कराई, किंतु उसका कही पता न चला| किंतु उसकी माँ यानी हमारे मंत्री की पत्नी अभी तक जीवित है|”

शमसुदीन बादशाह से विदा लेकर अपने भाई के निवास स्थान की ओर चला| दूसरे दिन उसने अपनी पुत्री और दोहित्र के साथ उसके महल में प्रवेश किया| एक नाम पट्टिका पर अपने भाई का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा देखकर उसने चुंबन दिया और सेवकों से नुरुदीन की विधवा के बारे में पूछा|

उन्होंने बताया, “उसका निवास स्थान यही है, किंतु वह अक्सर अपने पति की कब्र पर पड़ी रहती है| वहाँ अपने पुत्र की तस्वीर देख-देखकर रोती रहती है, क्योंकि पुत्र भी बहुत दिनों से लापता है| वैसे इस समय वह अपने महल में ही है|”

सेवकों ने ख़बर की तो नुरुदीन की विधवा आई| उसको शमसुदीन ने अपना परिचय दिया और बताया, “तुम्हारे पुत्र और मेरी बेटी का विवाह हुआ है|” उसने अपनी पुत्र और दोहित्र को भी अपनी छोटी भाभी से मिलवाया| बेचारी विधवा अपने पुत्र से मिलने की आशा ही छोड़ बैठी थी| वह बहू और पोते को देखकर अति प्रसन्न हुई और उसे आशा बंधी कि मेरा पुत्र भी जीवित होगा| वह बहू-पोते को गले लगाकर रोने लगी|

शमसुदीन ने उसे कहा कि यह समय रोने-पीटने का नही| तुम बादशाह से अनुमति लेकर मेरे साथ मिस्त्र चलो| उसने यह भी कहा कि तुम्हारे बेटे और मेरी बेटी का विवाह हुआ है, यह इतिहास की पुस्तकों में लिखे जाने योग्य है| नुरुदीन की पत्नी इस वृतांत को सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई|

फिर शमसुदीन बादशाह के पास गया और उससे निवेदन किया, “मैं अपनी भावज को अपने साथ ले जाना चाहता हूँ|”

बादशाह ने खुशी से यह बात मंजूर कर ली और मिस्त्र के बादशाह के लिए उत्तमोत्तम भेंट की वस्तुएँ देकर मिस्त्र के मंत्री को विदा किया| शमसुदीन सारे लोगों को लेकर फिर दमशिक की ओर चला| इस बार उसने फिर नगर के बाहर डेरे डाले और अपने सेवकों और गुमाश्तों को व्यापार करने की आज्ञा देकर स्वयं वहाँ के बादशाह के पास पहुँचा और उसे मिस्त्र के बादशाह का पत्र और उसके द्वारा भेजे गए तोहफ़े दिए|

इधर अजब ने जब देखा नाना बहुत देर के लिए गए है तो उसने अपने सेवकों से कहा, “मैं फिर नगर की सैर करना चाहता हूँ|”

सेवक अजब की माँ से अनुमति लेकर उसे ले चले| नगर में चारों ओर घूमते-फिरते वे लोग दोपहर को बदरुदीन की दुकान पर पहुँचे| अजब को वास्तव में दुख था कि उसने पिछली बार बेकार ही हलवाई पर पत्थर चलाया था| उसने बदरुदीन से पूछा, “तुम मुझे पहचानते हो या नही?”

बदरूदीन ने उसे देखा तो पहली बार की ही तरह फिर उसके ह्दय में प्रेम का जवर उठने लगा| वह उससे बोला, “मालिक आप दुकान के अंदर आ जाएँ और थोड़ी सी मलाई खाएँ| मुझे खेद है कि इतने दिनों तक आपके दर्शन नही हुए, नही तो मैं आपकी बराबर सेवा करता|”

अजब ने कहा, “पहले तुम वादा करो कि उस बार की तरह मेरा पीछा नही करोगे| तुमने यह वादा किया तो मैं तुम्हारी दुकान पर आऊँगा, बल्कि रोजाना एक बार आऊँगा|”

बदरूदीन ने कहा, “जैसी आपकी आज्ञा होगी, मैं वैसा ही करूँगा|”

अजब उसकी दुकान के अंदर बैठ गया| बदरूदीन ने उसके तथा उसके सेवक के आगे मलाई के प्याले रखे| अजब ने बदरूदीन को भी अपने पास बिठाया| सब लोग मलाई खाने लगे| अजब बराबर उसे ताकीद करता रहा कि किसी से बात नही कहूँगा| वह अजब से उसके सेवकों की अभ्यर्थना करता रहा और उन्हें मलाई खिलाता रहा| खुद उसने कुछ नही खाया| अजब जब खा चुका तो बदरूदीन ने उसके हाथ धुलाए और हाथ को पोंछने के लिए एक साफ़ कपड़ा उसे दिया| फिर उसने चीनी के प्याले में शर्बत बनाया और उसमें बर्फ डालकर ले आया और अजब से बोला, “यह गुलाब का शर्बत अत्यंत स्वादिष्ट है| ऐसा शर्बत आपको मेरी दुकान के अतिरिक्त और कही नही मिलेगा|”

अजब उसे पीकर बहुत खुश हुआ| बदरूदीन के प्रधान सेवक को भी शर्बत दिया, जिसे वह एक ही बार में गटागट पी गया| अब अजब और उसका सेवक बदरूदीन को धन्यवाद देकर अपने डेरों की ओर चले| अजब अपनी दादी के डेरे में गया| वह उसे गले से लिपटाकर रोने लगी कि भगवान मुझे जल्दी तुम्हारे साथ तुम्हारे पिता को भी देखने का सुख प्रदान करे| उसने दस्तरखान बिछाया और अजब से भी खाने के लिए कहा और पूछने लगी कि तुम शहर में क्या-क्या देख आए|

अजब उससे बातें तो करता रहा, किंतु अपने खाने-पीने की बात उसने बिल्कुल नही बताई| बुढ़िया ने अजब और उसके अंगरक्षक शाबान को अपने हाथ की बनी मलाई दी, किंतु दोनों बदरूदीन की दुकान पर पेट भर मलाई खा चुके थे, इसलिए किसी ने इस मलाई की ओर दृष्टि भी नही की| अजब की दादी ने कहा, “बड़े आश्चर्य की बात है कि मेरे हाथ की बनाई हुई मलाई भी तुम नही खा रहे| तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि इस प्रकार की स्वादिष्ट मलाई केवल मैं और मेरा पुत्र बदरुदीन ही बना सकता है ओर उसे भी मलाई बनाना मैंने ही सिखाया है|”

अजब ने कहा, “दादीजी! मेरा अपराध क्षमा करे तो बताऊँ कि इस नगर में एक हलवाई है जो इतनी अच्छी मलाई बनाता है कि क्या कहूँ| आपकी मलाई उतनी अच्छी नही होगी|”

दादी ह सुनकर अजब के अंगरक्षक शाबान पर क्रुद्ध हुई और बोली, “निकम्मे! तू मेरे बच्चे की कैसी सुरक्षा करता है कि वह भिखमंगों की तरह हलवाइयों की दुकान पर बैठकर खाया-पिया करता है|”

शाबान ने कहा, “हम लोग थक गए थे, इसलिए हलवाई की दुकान पर सुस्ताने को बैठे थे, किंतु हमने मलाई वगैरह नही खाई|”

अजब ने कहा, “ये झूठ कहता है| हलवाई की दुकान पर हम दोनों ने मलाई खाई थी|”

अजब की दादी यह सुनकर क्रोध में भर गई और उसी समय उठकर अजब के नाना के डेरे में पहुँची और उसे सारा हाल बताया| शमसुदीन अपनी भावज की बातें सुनकर उसके साथ डेरे में पहुँचा और शाबान को डाँटकर पूछा, “क्या यह सच है कि तुम दोनों ने हलवाई के यहाँ मलाई खाई थी?”

शाबान ने फिर इनकार किया, किंतु अजब ने कहा, “यह बात सच है| हम दोनों ने हलवाई की दुकान पर मलाई भी खाई थी और बाद में शर्बत भी पिया था|”

मंत्री ने कहा, “देख अजब क्या कहता है? क्या तुम दोनों ने हलवाई के यहाँ कुछ खाया-पिया नही?”

शाबान ने फिर इनकार किया और झूठी कसम भी खा ली कि हम लोगों ने कुछ नही खाया-पिया| अब मंत्री ने शाबान को पीटना शुरु किया| काफ़ी ठुकाई होने के बाद उसने स्वीकार किया कि अजब की बात सच्ची है और हलवाई की मलाई इस मलाई से अधिक स्वादिष्ट थी|

अजब की दादी यह सुनकर भी बिगड़ी| उसने शाबान से कहा, “तेरा दिमाग फिर गया है क्या? कोई हलवाई मुझसे अच्छी मलाई बना सकता है! और अगर अब भी तू कहता है तो हलवाई की दुकान पर जाकर थोड़ी सी मलाई ले आ| मैं भी तो देखूँ कि वह मलाई कैसी है?”

शाबान बदरूदीन की दुकान पर गया और उसे कुछ पैसे देकर बोला, “प्याले में मलाई दे दो| मेरी मालकिन तुम्हारी मलाई खाना चाहती है|”

बदरूदीन ने मलाई देकर कहा, “ऐसी मलाई तुम्हें दुनिया भर में कही और न मिलेगी| केवल मैं और मेरी माँ ही इस तरह की मलाई बना सकती है|”

शाबान ने मलाई अजब की दादी को दी| उसने खाया तो भावातिरेक से मूर्च्छित हो गई| शमसुदीन मुहम्मद को उसकी दशा देखकर चिंता हुई| उसने अपनी भावज के मुँह पर गुलाब जल छिड़कवाया तथा अन्य उपचार किए, जिससे वह होश में आ गई| फिर उसने कहा, “यह मलाई बदरूदीन ने ही बनाई है|”

शमसुदीन मुहम्मद को भी विश्वास हो गया था कि यह बात ठीक है, किंतु प्रकटतः उसने कहा, “ऐसी क्या बात है कि तुम्हारे बेटे के अलावा दुनिया में और कोई आदमी ऐसी मलाई नही बना सकता?”

उसकी भावज ने कहा, “मैं पूरे विश्वास और जानकारी से कहती हूँ कि बदरूदीन के अतिरिक्त कोई और व्यक्ति ऐसी मलाई बना ही नही सकता|”

शमसुदीन मुहम्मद ने कहा, “अच्छा ठहरो! मैं बहाने से उस हलवाई को यहाँ बुलवाता हूँ| तुम और तुम्हारी बहू उसे छुपकर देखो| अगर तुम लोग उसे पहचान लो कि बदरूदीन वही है तो हम लोग उसे अपने साथ काहिरा ले चलेंगे| मैंने तो उसे कभी देखा ही नही, इसलिए मैं उसे पहचान नही सकता| तुम लोग ही उसे पहचानो|”

यह कहकर उसने अपने डेरे में जाकर सिपाहियों को आज्ञा दी, “बदरूदीन की दुकान पर जाकर उसका सामान तोड़-फोड़ देना और उसे बाँधकर ले आना| लेकिन खबरदार उसे मारना-पीटना बिल्कुल नही और न ही किसी तरह का दुख देना|”

सेवकों को यह आदेश देकर शमसुदीन स्वयं बादशाह की सेवा में पहुँचा और उससे कहा, “मेरा दामाद मिल गया है और उसे काहिरा ले जाने की मुझे अनुमति दे|”

बादशाह ने प्रसन्नतापूर्वक यह अनुमति दे दी| शमसुदीन ने यह भी कहा कि किसी कारणवश मैं अभि असलियत बता नही सकता और जोर-जबरदस्ती का नाटक करके ले जाना चाहता हूँ| आप अपने कोतवाल और सिपाहियों को आदेश करे कि वे मेरे सिपाहियों को इस मामले में रोक-टोक न करे|

बादशाह ने यह भी स्वीकार कर लिया|

शमसुदीन के सिपाही बदरूदीन की दुकान पर गए और उन्होंने उसके सारे बर्तन-भांडे तोड़-फोड़ डाले और रस्सी के बजाय पगड़ी से उसे बाँध दिया| उसने दुखी होकर पूछा, “मेरा अपराध क्या है?” तो सिपाहियों ने पूछा, “मंत्री के डेरे में भेजी गई मलाई तुम्हीं ने बनाई थी? उसकी स्वीकारोक्ति पर उन्होंने बगैर कुछ कहे-सुने उसको दुकान से बाहर घसीट लिया| नगर निवासियों को इससे दुख हुआ| उन्होंने मंत्री के सिपाहियों को रोकना चाहा और शहर के सिपाहियों से सहायता चाही, किंतु कोई लाभ न हुआ| दोनों ओर के सिपाहियों को अपने-अपने हाकिमों के आदेश थे|

शमसुदीन के सामने बदरूदीन को लाया गया तो उसने रोकर पूछा, “मालिक मैंने आपका क्या अपराध किया है?”

शमसुदीन ने कहा, “क्या तुम्हीं ने मेरे सेवक के हाथ मलाई बेची थी?”

बदरूदीन ने कहा, “हाँ!”

मंत्री बोला, “तुम्हारा यही कसूर है| तुमने ऐसी वाहियात मलाई मेरे लिए भेजी? मैं तुम्हें प्राणदंड दूँगा|”

बदरूदीन ने हैरान होकर कहा, “खराब मलाई बेचने पर फाँसी दी जाती है?”

मंत्री बोला, “हमारे यहाँ यही नियम है|”

उधर पर्दे के पीछे से बदरूदीन की माँ और पत्नी ने उसे देखा तो वे मूर्च्छित हो गई| उन्होंने चाहा कि जाकर उससे लिपट जाएँ, किंतु उनसे शमसुदीन ने पहले ही कह रखा था कि जब तक मैं न कहूँ उसके पास न जाना|

दूसरे दिन शमसुदीन सब लोगों को लेकर मिस्त्र की ओर चल दिया| बदरूदीन को उसने एक संदूक में बंद करके एक ऊँट पर लाद दिया| दिनभर उसे संदूक में रखकर चलता रात को पड़ाव डालने पर संदूक से बाहर निकाल देता था| इसी तरह जब चलते-चलते काहिरा के पास पहुँचा तो पड़ाव डालकर मंत्री ने एक बढ़ई से कहा, “एक आदमी को फाँसी पर चढ़ाने के लिए एक लकड़ी की टिकटी बनाओ|”

बदरूदीन ने यह देखकर पूछा, “किसे फाँसी पर चढ़ाया जाएगा?”

मंत्री ने कहा, “कल मैं नगर में प्रवेश करूँगा और तुझे इसी टिकटी पर बाँधकर परे नगर में फिराऊँगा और तेरे आगे एक आदमी यह मुनादी करता जाएगा कि इस आदमी को इसलिए फाँसी दी जाएगी, क्योंकि इसने मलाई में काली मिर्च नही डाली|”

बदरूदीन यह सुनकर विलाप करने लगा, “हे भगवान! मैं सिर्फ़ इस कसूर पर मारा जाऊँगा कि मैंने मलाई में काली मिर्च नही डाली|”

खलीफ़ा हारुन रशीद यधपि गंभीर प्रकृति का था, तथापि अपने मंत्री से इतनी कहानी सुनकर ठहाका मारकर हँसने लगा|

बदरूदीन ने कहा, हे परमात्मा! यह कैसा न्याय है? कही ऐसा भी होता है कि केवल इतने अपराध पर कि मलाई में काली मिर्च नही पड़ी, किसी हलवाई की दुकान लूट ली जाए| उसे बाँधकर लाया जाए और फिर उसे फाँसी दे दी जाए| यह बात तो सरासर इस्लामी व्यवस्था के विरुद्ध है| धिक्कार है मुझ पर कि मैंने मलाई बनाने का धंधा किया और इस परेशानी में पड़ा| सारे शहर में बदनाम होकर फाँसी चढ़ने से बड़ी बदनामी की बात और क्या हो सकती है? हे भगवान! मै अभागा पैदा होते ही क्यों न मर गया| अब भी अच्छा है की मुझे यूँ ही मौत आ जाए, बदनामी से तो बचूँगा|”

बदरूदीन यही कहकर रोता-चिल्लाता रहा, किंतु मंत्री ने कुछ ध्यान नही दिया| कुछ ही देर में मंत्री के सामने फाँसी की टिकटी पेश की गई, जिसके ऊपर लोहे की सलाख लगी हुई थी| बदरूदीन ने उसे देखा तो बहुत घबराया और चिल्लाने लगा, “मैंने न किसी की चोरी की, न किसी धार्मिक आदेश का उल्लंघन किया, न किसी की हत्या की- फिर भी मुझे सिर्फ़ इतनी-सी बात पर प्राणदंड मिल रहा है कि मैंने मलाई में काली मिर्च नही डाली|”

मंत्री शमसुदीन ने उससे कहा, “रोने-चिल्लाने से कुछ नही होगा| कल तो मैं तुझे नगर में ले जाकर फाँसी पर चढ़ाऊँगा ही|” यह कहकर उसने बदरूदीन को दुबारा संदूक में बंद करवा दिया| सुबह उसने उसे ऊँट पर लदवाया और स्वयं अपनी सवारी पर बैठकर समारोहपूर्वक अपनी राजधानी में प्रवेश किया| उसने महल में पहुँचकर आज्ञा दी, “इस संदूक को उतारकर रखो, किंतु खोलना नही|”

सारा असबाब घर में रख दिया गया तो शमसुदीन ने अपनी बेटी को एकांत में ले जाकर कहा, “भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि तुम्हारा पति तुम्हें मिल गया है| अब तुम अपने कमरे को ठीक वैसे ही सजाओ, जैसा तुम्हारे विवाह की रात को सजाया गया था| हर चीज़ ठीक उसी जगह पर होनी चाहिए, जैसे उस समय पर थी|”

मंत्री की पुत्री ने अपने पिता के आदेशानुसार काम किया और कमरे को बिल्कुल उसी तरह सजा दिया, जैसे विवाह की रात को वह सजाया गया था| जहाँ उसे कोई भूल लगी, उसने अपने पिता से पूछ ली| ठीक उसी तरह तख्त बिछाया गया और सारी मोमबत्तियाँ भी ठीक उसी प्रकार रखी गई| पूरा कमरा, बल्कि आसपास के कमरे भी ठीक वैसे ही दिखने लगे, जैसे शादी की रात को दिखते थे| शमसुदीन मुहम्मद ने स्वयं आकर बदरूदीन के कपड़े और रुपयों की थैली ठीक वही रखी, जहाँ से उसने उठाई थी| फिर उसने अपनी पुत्री से कहा, “तुम उसी रात की तरह सोने के कपड़े पहनों और पति के आने पर इस तरह के भाव प्रकट न करना जैसे उससे बहुत दिनों बाद मिल रही हो| ऐसा बर्ताव करना, जैसे वह कभी तुमसे अलग ही नही हुआ था|”

कहानी यहाँ तक पहुँची सवेरा हो गया और मलिका शहरजाद चुप हो गई| बादशाह को यह कहानी का अंत सुनने में इतनी उत्कंठा थी कि अगली रात को उसे ठीक तरह नींद भी नही आई| अगली रात के अंतिम पहर में मलिका शहरजाद ने नियमानुसार कहानी प्रारंभ की|

मंत्री शमसुदीन ने आज्ञा दी कि उस भवन में दो या तीन दासियाँ ही रहे| जब एक पहर रात बीती तो मंत्री ने बदरूदीन को संदूक में बंद-ही-बंद उस भवन के समीप भिजवाया| सेवकों ने वहाँ उसे संदूक से निकाला तो वह लगभग अचेत था| उन्होंने जल्दी से उसे रात्रिकालीन वस्त्र मिर्जई आदि पहना दिए| फिर उसे मकान के अंदर छोड़कर उन्होंने बाहर से दरवाजे में कुंडी लगा दी|

कुछ ही देर में बदरूदीन को हाथ-पाँव फैलने का चेत हुआ तो उसने अपने को विवाह के लिए सजे हुए कमरे में पाया| उसे याद आया कि यह उसकी सुहागरात वाला कक्ष है| पास वाले कमरे को देखकर उसने पहचाना की यहाँ वह कुबड़े गुलाम साईस के पास बैठा था| उसका ताज्जुब और बढ़ा| दो क्षणों के बाद उसने देखा कि विवाह के वस्त्र और थैली उसी तरह वहाँ रखी है, जैसे सुहागरात को रखी थी| इससे आश्चर्य के मारे उसका सिर चकरा गया| वह सोचने लगा कि समझ में नही आता मैं जाग रहा हूँ या स्वपन देख रहा हूँ|

इतने ही में उसकी पत्नी ने मसहरी से सिर उठाकर कहा, “प्रियतम! तुम द्वार पर क्यों खड़े हो| यहाँ पलंग पर आकर आराम करो| तुम दिन भर कहाँ रहे? आज सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने तुम्हें पलंग पर नही देखा| बहुत देर तक प्रतीक्षा करने पर भी तुम न आए तो मैं दिनभर दुखी रही| खैर, अब तुम मेरे पास आओ|”

बदरूदीन को यह सुनकर बड़े हर्ष हुआ| वह आश्चर्य और उसके बाद पैदा हुए उल्लास के कारण यह भी भूल गया कि मंत्री ने उसे कैद किया था और मृत्युदंड दिया था| उसका चेहरा चमकने लगा और निराशा की काली छाया उसके चेहरे से हट गई| उसने देखा कि उसकी पत्नी भी वैसी ही सुंदर और मनोहारिणी है, जैसी विवाह की रात को थी| कमरे के अंदर जाकर उसने प्रत्येक वस्तु को फिर अच्छी तरह देखा और उसे मालूम हुआ कि सारी चीज़ें बिल्कुल वैसी ही है, जैसी दस बरस पहले विवाह की रात को थी| चौकी पर उसने वस्त्र और द्रव्य की थैली भी जैसी-की तैसी रखी देखी थी| वह उच्च स्वर में कहने लगा, “हे खुदा! यह क्या लीला है| मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा कि मैं कहाँ हूँ?”

उसकी पत्नी बोली, “यह क्या कह रहे हो? तुम अपनी पत्नी के कमरे में हो! क्या खड़े-खड़े अजीब बातें कर रहे हो?”

बदरूदीन ने कहा, “सच बताओ, तुम कब से मुझसे अलग हो?”

उसने कहा, “आज सुबह ही तो तुम उठकर गए थे|”

बदरूदीन बोला, “ये तुम्हारी बात मेरी समझ में नही आती| मैंने तुम्हारे साथ सुहागरात बिताई जरुर थी, किंतु इस बात को हुए दस बरस हो गए| इस सारे समय मैं दमशिक में रहा| मेरी अक्ल चोकर खा रही है कि अपने विवाह का समय कौन-सा मानूँ, वर्तमान समय या दस वर्ष पहले का? तुमसे अलग किस प्रकार रहा, मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा है| तुम्हीं बताओ कि मैं दस बरस तुमसे अलग रहने को सही समझूँ या इस समय तुमसे होनेवाली बातचीत को?”

उसकी पत्नी ने कहा, “तुम कैसी पागलों की सी बातें करते हो| स्पष्ट बताओ कि यह दमशिक बीच में कहाँ से आ गया!”

बदरूदीन ने हँसकर कहा, “मालूम नही, मैं पागल था या अब हूँ| दस बरस पहले मैं यही शयनकालीन वस्त्र पहने दमशिक की मस्जिद के द्वार पर खड़ा था| वहाँ के निवासी मुझे देखकर हँस रहे थे और मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे| मैं वहाँ से उठकर भागा और एक हलवाई की दुकान में जा छुपा| उसने मुझे गोद लिया और अपना धँधा सिखाया| जब वह मरा तो सारी सम्पति मुझे दे गया| मैं दस बरस तक उसी दुकान पर हलवाई का व्यवसाय करता रहा| एक दिन कही का मंत्री दमशिक में आया| उसका लड़का बड़ा भोला-भाला और सुंदर था| उसे देखकर मेरे ह्रदय में बहुत प्यार उमड़ा| एक दिन वह अपने नौकर के साथ मेरी दुकान पर आया और वहाँ बैठकर मलाई खाई| जब वह वापस डेरे में गया तो उसके पिता ने मेरी दुकान से मलाई मँगवाई| उसके बाद मुझे पकड़वाकर बुलाया और यह कहकर कि तूने बगैर काली मिर्च की मलाई क्यों बनाई? उसने मेरी दुकान लुटवा दी और मुझे संदूक में बंद करवा ऊँट पर रखवाकर अपने देश को लाया| फिर कल रात उसने फाँसी की टिकटी बनवाई और आज के लिए कहा कि तुझे नगर में घुमाने के बाद फाँसी दी जाएगी| मैं यह सुनकर भय से अचेत हो गया| जब होश आया तो देखा कि तुम्हारे पास मौजूद हूँ|”

उसकी पत्नी यह सुनकर हँसने लगी और मज़ाक में बोली, “यह तो नही हो सकता कि इतनी-सी बात पर किसी को फाँसी दे दी जाए| तुमने कोई बड़ा अपराध किया होगा|”

बदरूदीन ने कहा, “मैं सच कहता हूँ, इसके अलावा मेरा कोई अपराध नही था कि मलाई में काली मिर्च नही पड़ी थी|” अब यह अजीब-सी बहस चल पड़ी|

उसकी पत्नी हँसकर कहती जाती थी कि तुमने जरूर कोई बड़ा अपराध किया होगा| बेचारा बदरूदीन बराबर सफ़ाई दिए जाता था कि मेरा अपराध बगैर काली मिर्च डाले मलाई बेचने के अलावा कुछ नही था और इतनी ही बात पर मंत्री ने मुझे फाँसी पर चढ़ाने के लिए एक टिकटी बनवा ली, जिसके उपर मुझे लटकाने के लिए लोहे की मज़बूत सलाख लगाई गई थी|

बादशाह शहरयार यहाँ तक की कहानी सुनकर हँसने लगा और बहुत देर तक हँसता रहा| उसने कहा, “मंत्री शमसुदीन ने अपने दामाद के साथ अच्छा मज़ाक किया और आश्चर्य यह है कि उसकी भावज ने भी बेटे के इस तरह तंग किए जाने पर कुछ न कहा| खैर, यह कहानी कल पूरी होगी तो आशा है कि इसका अंत अच्छा होगा|”

दूसरी रात के अंतिम पहर मलिका शहरजाद ने कहानी फिर शुरु की|

बदरूदीन इसी चक्कर में रहा कि मैं अपनी पत्नी के पास वास्तव में हूँ या सपना देख रहा हूँ| वह बार-बार पलंग से उठकर और घूम-घूमकर भवन को देखता| उसको हर चीज वैसी ही दिखाई देती, जैसी विवाह की रात को थी| उधर पिछले दस बरसों की घटनाओं की अनदेखी भी वह नही कर पाया था| सारी रात उसने उसी उधेड़बुन में काटी|

सुबह हुई तो शमसुदीन ने बेटी के शयनकक्ष के द्वार पर आकर ताली बजाई| उसकी बेटी ने द्वार खोला तो शमसुदीन ने अंदर आकर स्वयं अपनी ओर से बदरूदीन को प्रणाम किया| बदरूदीन ने कहा, “आपने तो मुझे फाँसी देने का प्रबंध किया था, उसके विचार से मैं अब तक काँप रहा हूँ और मेरा अपराध भी क्या था- सिर्फ़ यह कि मैंने मलाई में काली मिर्च नही डाली थी!”

मंत्री ने मुस्कराकर कहा, “तुम मेरे भतीजे हो और मैंने अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ किया था| बादशाह के हुक्म से उसका विवाह कुबड़े साईस से होने वाला था|” यह कहकर उसने नुरुदीन का लिखा हुआ वृतांत उसे दिखाया और कहा, “तुम्हारी खोज ही में मैं बसरा, दमशिक और न जाने कौन-कौन सी जगह-जगह मारा-मारा फिरता रहा| मैंने तुम पर प्रकट में जो अन्याय किया है, उसे भूल जाओ| मैं सिर्फ़ यह चाहता था कि बगैर झंझट के दमशिक से तुम्हें यहाँ लाऊँ| साथ ही यह ख्याल था कि अगर तुम्हारी भेंट अचानक तुम्हारी माँ और पत्नी से हो जाए तो कही तुम आनंद अतिरेक में मर न जाओ|”

यह कहकर उसने अपने दामाद को सीने से लगा लिया| बदरूदीन यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ| उसने रात के कपड़े उतारकर दिन के कपड़े पहने| फिर उसने अपनी माँ से भेंट की| इस अवसर पर सारे परिवार में आनंद की कैसी लहर आई, उसका वर्णन नही हो सकता| उसकी माँ उसे सीने से लगाकर बहुत देर तक रोती रही और बताती रही कि तेरे लापता होने पर यह दस बरस कितने कष्ट से कटे|

इतने ही में अजब, जिसे नाना ने असलियत बता दी थी अपने बाप से आकर लिपट गया| बदरूदीन ने कहा, “अरे तूने ही तो मेरे यहाँ मलाई खाई थी|” यह कहकर उसने अजब को छाती से लगा लिया|

शमसुदीन ने अपने दामाद को बादशाह के सामने पेश किया और सारी कहानी सुनाई| बादशाह ने इस वृतांत को लिखने का आदेश दिया और बदरूदीन को भी सम्मानित किया|

हारुन रशीद से उसके मंत्री जाफ़र ने यह कहानी सुनाकर कहा, “आप भी उदारता दिखाइए और मेरे गुलाम का अपराध क्षमा कर दे|”

हारुन रशीद ने ऐसा ही किया और उस आदमी को, जिसने भ्रमवश अपनी पत्नी को मार डाला था, अपनी एक दासी दे दी कि वह उससे विवाह कर ले और सुखपूर्वक रहे|

यह कहानी पूरी करके मलिका शहरजाद ने कहा, “स्वामी! अब सवेरा हो गया| अगर आज मुझे प्राणदान मिले तो मैं और अच्छी कहानी सुनाऊँ|”

बादशाह चुपचाप दरबार को चला गया| किंतु कहानी के लालच में उसने शहरजाद के वध का आदेश मुल्तवी रखा|

दूसरी रात को मलिका शहरजाद ने पिछली पहर अपनी बहन दुनियाजाद के कहने से कहानी सुनानी आरंभ की|

नारद जी
दुख का क