निर्भिमानता
एक बार की घटना है| फ्रांस में पहले राजतंत्र शासन था| एक समय वहाँ पर हेनरी चतुर्थ का शासन था| एक बार वह अपने राज्य के अधिकारियों के साथ किसी कार्यक्रम में जा रहे थे| रास्ते में एक भिक्षुक खड़ा था|
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भिक्षुक ने बड़ी विनम्रता से अपन टोप उतारा और सिर झुकाकर फ्रेंच सम्राट का अभिवादन किया| महाराज ने भी उसी प्रकार सिर को झुकाकर उसके नमस्कार का उत्तर दिया| यह देखकर एक अधिकारी बोला- “राजन्, क्या एक गरीब भिखारी को इस प्रकार का अभिवादन ठीक है?”
फ्रांस के सम्राट हेनरी चतुर्थ ने जवाब दिया- “सभ्यता या तहजीब झूठे बड़प्पन या अहंकार में नहीं है, विनम्रता में है|”
घटना सामान्य सी है, पर सीख यह देती है कि किसी को छोटा नहीं समझन चाहिए| यजुर्वेद (1875) में कहा गया है कि यदि विश्व में उन्नति एवं मान-सम्मान की इच्छा है तो पहले विनम्र बनो|
उतानहस्ता नमसोपसंघ|
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को अभिमान को त्यागकर विनम्रता को अपनन चाहिए|