निर्भयता
प्रत्येक प्राणी को मन-वचन-कर्म से निर्भय होना चाहिए| पता खड़का और बंदा सरका का जीवन-दर्शन रखने वाला प्राणी और जातियाँ जीवन-संघर्ष में यशस्वी नहीं हो सकती|
“निर्भयता” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
टकटकी भरी एक तेज निगाह से सिंह को चुप किया जा सकता है, एक ही नजर में शत्रु पराजित किया जा सकता था, इसी तरह निर्भयता से परिपूर्ण एक ही वार से युद्ध जीता जा सकता है| सच्चे तपस्वी और साधु हिमालय के घने जंगलों और पर्वतों पर निर्भय घूमते हैं| पर चीते, भालू, भेड़िए और भयानक जहरीले प्राणी उन्हें हानि नहीं पहुँचाते| वे उनकी दिव्य निर्भय दृष्टि से आतंकित होकर मार्ग छोड़ जाते हैं|
भय से आतंकित होकर कबूतर बिल्ली के सम्मुख आँखें मूंद लेता है| वह जान लेता है कि बिल्ली उसे देख नहीं रही, वस्तुतः वह खुद ही बिल्ली को नहीं देख पाता| निर्भयता का स्पर्श पाकर रोगी और निर्बल भी शक्तिशाली बन जाते हैं|
एक बार एक समुद्री जहाज एक पंजाबी सिपाही भीषण सांघातिक बीमारी से पीड़ित था| डॉक्टर ने उसका लाइलाज मर्द देखकर निर्णय किया था रोगी को जहाज से समुद्र में फेंक दिया जाए| उस सिपाही को अपने इस इलाज की खबर मिल गई| संकट की घड़ी में सामान्य व्यक्ति भी निर्भय हो जाते हैं| उस सिपाही में अदम्य उत्साह का संचार हो गया और वह निर्भय भी हो गया|
वह सीधा डॉक्टर के समीप जा पहुँचा और अपनी पिस्तौल तानकर बोला- “क्या मैं बीमार हूँ? क्या तुम ऐसा ही कहते हो? मैं तुम्हें गोली से भून दूँगा|” डॉक्टर ने उस सिपाही को तुरंत नया सर्टिफिकेट लिखा कि वह पूर्णतया स्वस्थ है|
हताशा या निराशा कमजोरी है, उससे बचो| निर्भयता विजय की पहली सीढ़ी है|
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि भय इंसान को कायर बन देता है|