नया मोड़
किसी देश में एक राजा राज करता था| वह बहुत ही अभिमानी था| वह अपने बराबर किसी को नहीं समझता था| कारण, उसका राज्य बड़ा विशाल था|
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उसका राजकोष धन से भरा था| उसके पास बहुत बड़ी सेना थी और उसके आस-पास नौकर-चाकरों की पलटन थी, जो हर घड़ी उसका हुक्म बजाती रहती थी| चापलूस उसके अहंकार को बढ़ावा देते रहते थे|
संयोग से एक दिन एक फकीर उस राजा के यहां आया| उसके चेहरे पर तेज चमक रहा था और आंखों में प्रेम भरा था| उसने राजा की ओर देखा और उसकी भाव-भंगिमा से क्षण-भर में ताड़ गया कि राजा धन-दौलत और सत्ता के मद में चूर है, उसकी भीतर की आंखें बंद हैं| अपने स्वभाव के अनुसार राजा ने कड़ककर पूछा – “फकीर तुझे क्या चाहिए?”
मुस्कराकर फकीर ने कहा – “राजन, मैं आपसे कुछ लेने नहीं, बल्कि आपको कुछ देने आया हूं|”
सुनकर राजा के अभिमान को गहरी चोट लगी| उसने सोचा कि इस भिखमंगे फकीर की इतनी जुर्रत कि मुझ जैसे वैभवशाली और सर्वसत्ताधारी के साथ ऐसा व्यवहार करे!
राजा ने चीखकर कहा – “ऐ फकीर! छोटे मुंह बड़ी बात करते तुझे शर्म नहीं आती? जिसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं, वह किसी को क्या देगा? जो स्वयं दर-दर की भीख मांगता है, वह राजा की बराबरी क्या करेगा?”
फकीर राजा की गर्वोक्ति सुनकर हंसते हुए बोला – “आप ठीक कहते हैं महाराज, आपके पास बहुत कुछ है जो मेरे पास नहीं है, पर राजन अकिंचन के पास भी कुछ होता है जो दुनिया की माया से अधिक महत्त्व रखता है|”
राजा की आंखों में खून उतर आया – “अपनी बकवास बंद करो|”
जैसे किसी रोगी से बात कर रहा हो, फकीर ने कहा – “राजन, बिना त्याग के भोग बेस्वाद है| वैभव में जब त्याग जुड़ जाता है तो वह महक उठता है| जानते हो, त्याग के आते ही अहंकार मिट जाता है, आसक्ति दूर हो जाती है और अंदर की आंखें खुल जाती हैं| फकीर के शब्दों में मानो कोई जादू था| राजा को बोध हुआ, उसका सोया हुआ इंसान जाग उठा, उसने अनुभव किया कि त्यागी के आगे भोगी कितना छोटा है| उसकी आंखों से अज्ञान का परदा हटते ही उसके जीवन में एक नया मोड़ आ गया|