नया जन्म

नया जन्म

एक चोर ने राजा के माल में चोरी की| राजा के सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने देखा उसके पदचिन्हों का पीछा किया| चोर के पदचिन्हों को देखते-देखते वे नगर से बाहर आ गये| पास में एक गांव था| उन्होंने चोर के पदचिन्ह गाँव की ओर जाते देखे| सिपाहियों ने गाँव के बाहर चक्कर लगाकर देखा कि चोर गाँव से बाहर नहीं गया, गाँव में ही है|

गाँव जाकर उन्होंने देखा एक जगह सत्संग हो रहा है और बहुत-से लोग बैठकर  सत्संग सुन रहे हैं| सिपाहियों को संदेह हुआ कि चोर भी सत्संग में लोगों के बीच बैठा होगा| वे वहीं खड़े रहकर उसका इन्तजार करने लगे|

सत्संग में संत कह रहे थे कि  जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान् की शरण में चला जाता है, भगवान् उसके सब पापों को माफ कर देते हैं| भगवान् ने कहा है-

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज|
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि  मा शुचः||

‘सम्पूर्ण धर्मो का आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरण में आ जा| मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा, चिंता मत कर|’

सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते|

अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येत्द व्रतं मा||

‘जो एक बार भी शरण में आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’ ऐसा कहकर मुझसे रक्षा की याचना करता है, उसे मै सपूर्ण प्राणियों से अभी कर देता हूँ- यह मेरा व्रत है|’

इसकी व्याख्या करते हुए संत ने कहा कि जो भगवान् का हो गया, उसका मानो दूसरा जन्म! अब पापी नहीं रहा, साधु हो गया!

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक|
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः||

‘अगर कोई दुराचारी से दुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिये| कारण कि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है|’

चोर वहीं बैठा सुन रहा था| उस पर सत्संग की बातों का असर पड़ा| उसने वहीं बैठे-बैठे यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब मैं भगवान् की शरण लेता हूँ! अब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा| मैं भगवान् का हो गया! सत्संग समाप्त हुआ| लोग उठाकर बाहर जाने लगे| बाहर राजा के सिपाही सबके पदचिन्हों को देख रहे थे| चोर बाहर निकला तो सिपाहियों ने उसके पदचिन्हों को पहचान लिया और उसको पकड़ लिया|

सिपाहियों ने चोर को राजा के सामने पेश किया और कहा कि महाराज! हमने चोर को पकड़ लिया है| इसी आदमी ने चोरी की? सच-सच बताओ, तुमने चोरी किया धन कहाँ रखा है?’ चोर ने दृढ़तापूर्वक कहा-‘महाराज! चोरी मैंने नहीं की| मैंने तो इस जन्म में ही कभी चोरी नहीं की!’ सिपाही बोले-‘महाराज! यह झूठ बोलता है| हम इसके पदचिन्हों को पहचानते हैं| इसके पदचिन्हों से साफ सिद्ध होता है कि चोरी इसने की है|’ राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी जिससे पता चले कि वह झूठ है या सच्चा|

चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया| फिर उसके ऊपर गरम करके लाल किया हुआ लोहा रखा| उसका हाथ जलना तो दूर रहा, पत्ते और सूत भी नहीं जला| उसने लोहा नीचे फेंका तो जहाँ वह गिरा, वह वह जगह काली हो गयी| राजा ने देखा कि इसने वास्तव में चोरी नहीं कि, यह निर्दोष है| अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि तुमलोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया| तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा| यह सुनकर चोर बोला-‘नहीं महाराज! इनको आप दण्ड न दें| इनका कोई दोष नहीं है| चोरी मैंने ही की थी!’ राजा ने सोचा कि यह साधु पुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिये चोरी का दोष अपने पर ले रहा है| राजा बोला-‘तुम इन पर दया करके, इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो| पर मै इनको अवश्य दंड दूंगा|’ चोर बोला-‘महाराज! मै झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी| अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे साथ भेजो| मैंने चोरी का धन जंगल में छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूंगा|’ राजा ने अपने आदमियों की चोर के साथ भेजा| चोर उनको वहाँ ले गया, जहाँ उसने धन जमीन में गाड़ रखा था| चोर ने वहाँ से धन निकाल लिया और लाकर राजा के सामने रख दिया| यह देखकर  राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ! राजा बोला-‘अगर तुमने चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला? परन्तु तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया- यह हमारी समझ में नहीं आ रहा है! ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है?’

चोर बोला-‘महाराज! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में गाड़ दिया और गांव में चला गया| वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था| मैं वहाँ जाकर लोगों के बीच बैठ गया| सत्संग में मैंने सुना कि जो भगवान् की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान् सब पापों से मुक्त कर देते है| उसका नया जन्म हो जाता है| इस बात का असर मेरे पर पड़ा और मैंने दृढ़ निध्च्य कर लिया कि अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा| अब मैं भगवान् का हो गया| इस लिए तबसे मेरा नया जन्म हो गया| इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसलिए मेरा हाथ नही जला| आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले जन्म में की थी!’