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नन्हे-मुन्हे चूहे-चुहिया और भारी-भरकम हाथी

बहुत दिन पहले एक झील के किनारे एक बहुत बड़ा नगर था| नगर जितना बड़ा था उतना ही सुन्दर भी था| वहां अनेक मंदिर और शानदार इमारते थी|

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नगर में रहने वाले अमीर और सुखी थे| जमाना बीता और एक दिन वह नगर उजड़ गया| लोग नगर छोड़कर चले गये और अपने साथ गाय-बैल, हाथी-घोड़े सभी कुछ ले गये| मगर उस नगर में जो चूहे रहते थे वे कहीं नहीं गये| नगर के पुराने मन्दिरों और इमारतों में चूहे ही रहने लगे| झील के किनारे का वह उजाड़ नगर चूहों का नगर बन गया|

कुछ ही समय में वहां इतने चूहे हो गये जितने पहले कभी नहीं थे| चूहों के परिवार में परदादा-परदादी, दादा-दादी, माँ-बाप, पति-पत्नी, चाचा-चची, भाई-बहन के आलावा अनगिनत छोटे-छोटे बच्चे थे| वे सब मिल-जुलकर सुख से रहते थे| उनके नगर में हमेशा कोई न कोई मेला-त्यौहार होता ही रहता था|

कभी वसन्त का मेला होता, कभी शादी-ब्याह का उत्सव और कभी नाच-गाने की धूम-धाम| इसके आलावा जन्मदिन और कई दूसरे समारोह तो होते ही रहते थे| चूहों के नगर से दूर एक जंगल में हाथियों का एक झुण्ड रहता था| झुण्ड का राजा बड़े-बड़े दांतों वाला एक भरी-भरकम हाथी था| वह बहुत ही भला और दयावान था और अपने झुण्ड की भलीभांति देखभाल करता था| सभी हाथी उसे प्यार करते थे और उसके लिए सब कुछ करने को तैयार रहते थे|

उस जंगल में वे सुख से रहते थे| लेकिन एक समय ऐसा आया कि उन्हें भी मुसीबत का सामना करना पड़ा| कई साल तक वर्षा न होने से सब नदी-नाले और ताल-तलैया  सूख गये| पानी की कमी पड़ गई| हाथी-राजा ने पानी की तलाश में कई हाथियों को इधर-उधर दूर-दूर तक भेजा| पता लगा की पुराने, उजड़े हुए नगर के दूसरी तरफ एक बड़ी झील में पानी है| इस खबर से हाथियों का राजा बड़ा प्रसन्न हुआ| आगे-आगे राजा और पीछे-पीछे हाथियों का पूरा झुण्ड झील की ओर चल रहे हैं| उनके रास्ते में वही उजड़ा हुआ नगर था जो अब चूहों का नगर बन गया था| हाथियों के झुण्ड को उसी नगर होकर गुजरना था| जब वे नगर से होकर गुजरे तो जल्दी में उन्होंने यह नहीं देखा कि उनके पैरों से हजारों चूहे कुचलकर मर रहे हैं| जैसे-जैसे हाथी आगे चलते जाते वैसे-वैसे और भी चूहे मरते जाते या बुरी तरह घायल हो जाते|

चूहों पर भारी मुसीबत आ पड़ी| हजारों, लाखो चूहे मर गये| वैद्द चूहों ने घायलों की देखभाल की और परिचारिका चुहियों ने उनकी सेवा की|

चूहों के नगर में ऐसी भयानक आफत पहले कभी नहीं आई थी| इस आफत से बचने के लिए क्या उपाय किया जाये? इसके लिए चूहों ने एक सभा बुलायी|

सभी में घंटो बातचीत होती रही| अंत में एक समझदार बूढ़े चूहे ने कहा, “हमें हाथियों के राजा के पास जाकर इस घटना के बारे में बताना चाहिए| वही नगर के रास्ते से अपने झुण्ड का आना-जाना बंद करवा सकता है|”

बूढ़े चूहे की बात ली गयी| हाथी-राजा के पास जाने के लिए तीन चूहे चुने गये|

तीनों चूहे हाथी-राजा के पास गये और प्रणाम करके बोले, “महाराज, आप ताकतवर भी हैं और बड़े भी| जब आप और आपके साथी हाथी इस नगर से गुजरते हैं तो हमारा बहुत नुकसान हो जाता है| हम लोग बहुत ही असहाय और छोटे हैं| आपके पैरों तले आ जाने से हजारों चूहे कुचले गये हैं|

“अगर आप फिर से हमारे नगर से होकर जाएंगे तो हम में से कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा| इसलिये हम आपके पास यह कहने आयें हैं कि महाराज, जब आप फिर से जंगल में वापस जायें तो कृपाकर किसी दूसरे रास्ते से जायें| आपकी इस कृपा को हम कभी नहीं भूलेंगे और सदा आपके दोस्त बने रहेंगे| देखने में तो हम लोग बहुत छोटे हैं, फिर भी कभी न कभी आपके काम आ सकते हैं|”

हाथी-राजा ने चूहों की बात पर विचार किया और कहा , “तुम ठीक कहते हो| जाओ चिंता न करो| अब हम तुम्हारे नगर से होकर नहीं जायेंगे|”

कई सालों बाद एक राजा को अपनी सेना के लिए हाथियों की जरुरत पड़ी|

उसने ज्यादा से ज्यादा हाथी पकड़ने के लिए कई आदमी जंगल में भेजे| राजा के आदमी उसी जंगल में आये जहां हाथी-राजा रहता था| वहां हाथियों का इतना बड़ा झुण्ड देखकर वे बड़े खुश हुए| उन्होंने जंगल में कई बड़े-बड़े गहरे गढ़े खोदे और उन्हें पेड़ो को टहनियों और पतों से ढक दिया|

हाथी-राजा और उसके बहुत से हाथी उन गढ़ो में गिर पड़े और फंस गये| उन्होंने बाहर निकलने की बड़ी कोशिश की मगर नही निकल सके|

थोड़ी देर बाद राजा के आदमी कई पालतू हाथियों को लेकर आये| पालतू हाथियों ने बड़े-बड़े मजबूत रस्सों की मदद से जंगली हाथियों को गढ़ों में से निकाला| फिर राजा के आदमियों ने उन्हें रस्सियों से मजबूती से बांध दिया|

इसके बाद वे सारा हाल राजा को बताने राजमहल वापस चले गये| वे अपने संग पालतू हाथियों को भी ले गये|

पेड़ो से बंधे जंगली परेशान और घबराये हुये थे| अपने झुण्ड के इतने सारे हाथियों को फंसा देखकर उनका राजा दुखी हुआ| इस मुसीबत से छुटकारा कैसे हो? उसने सोचा, बहुत सोचा, पर कोई उपाय नहीं सूझा|

तभी उसे उजड़े हुए नगर के चूहों की याद आ गई| उन चूहों  ने एक बार कहा था कि कभी हम भी तुम्हारे काम आ सकते हैं|

झुण्ड के कुछ हाथी गढ़ों में फंसने से बच गये थे| उनके हाथी-राजा की रानी भी थी| हाथी-राजा ने अपनी रानी को आवाज लगाई| वह आयी तो राजा ने उसे फौरन चूहों के नगर में जाने और उन्हें सारा हाल सुनाने को कहा|

रानी तुरन्त चूहों के नगर की ओर चल पड़ी| नगर में पहुंचकर उसने चूहों को पुकारा और उन्हें हाथियों के पकडे जाने की खबर सुनाई| हाथियों की मुसीबत का हाल जानकर चूहे दुखी हुये| उन्होंने विश्वास दिलाया, “अपने दोस्तों की सहायता के लिए हमसे जो भी बन पड़ेगा, हम तुरन्त करेंगे|”

और हजारों चूहे पंक्तियां बंधे हुए हाथियों की ओर चल पड़े| जंगल में पहंचते की हर हाथी रस्सी पर सैकड़ो चूहों एक साथ टूट पड़े| उन्होंने अपने पैने दांतों से थोड़ी ही देर में उनके बंधन काट डाले| सारे हाथी आजाद हो गये|

इस सफलता से हाथी और चूहे दोनों ही खुश थे| हाथी-राजा और रानी ने चूहों का धन्यवाद दिया| चूहे खुश थे कि वे अपने दोस्तों के काम आये|

इसके बाद एक बड़ी दावत हुई| दावत में सारे चूहे और हाथी एक साथ खाने बैठे|

चूहों ने कहा, “आज तक हमने जितने उत्सव मनाये, सबसे ज्यादा आनन्द इसी उत्सव में आया, क्योंकि यह चूहों और हाथियों की दोस्ती का उत्सव है|”

उस दिन से चूहों और हाथियों की दोस्ती और गहरी हो गयी| वे हिल-मिलकर आनन्द से रहने लगे|

रावण के
रावण के