नंदीश्वर
एक बार पंडित परमसुख को दानस्वरूप एक बछड़ा मिला| उसने बछड़े का नाम ‘नंदीश्वर’ रखा और प्यार से लालन-पोषण करके उसे तंदुरुस्त बैल बना दिया| बैल भी परमसुख का काफ़ी ख्याल रखता था क्योंकि उसने उसे पिता समान प्यार दिया था|
एक दिन बैल ने परमसुख से कहा कि वह नगर के व्यापारी के पास जाकर कहे कि उसका बैल माल से लदी पचास गाड़ियाँ एकसाथ खींच सकता है| यदि व्यापारी विश्वास न करे तो दो हज़ार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगा लेना|’
परमसुख ने अपने बैल को अविश्वसनीय नजरों से देखा, उसे बैल की बातों पर विश्वास नही हुआ क्योंकि पचास गाड़ियाँ एकसाथ खींचना असंभव काम था|
बैल ने फिर कहा, ‘मालिक आप मेरी बात पर यकीन करे| आप इस तरीके से धनवान बन सकते है|’
परमसुख हैरत में पड़ गया, उसे विश्वास नही हो पा रहा था की बैल भी बोल सकता है फिर भी उसने बैल से पूछा, तुम्हें विश्वास है की मैं शर्त जीत जाऊँगा?’
‘बेशक! अगर मैं पचास गाड़ियाँ न खींच सकता होता तो ऐसी सलाह आपको कभी न देता|’ बैल ने पूर्ण विश्वास के साथ कहा|
परमसुख एक व्यापारी के पास पहुँचा और उससे बोला, ‘महाशय, बताइए इस नगर में किसका बैल सबसे ज्यादा गाड़ियाँ खींच सकता है?’
‘वैसे तो कई बैल बहुत बलवान है, किंतु मेरे बैल जैसा बलवान पूरे नगर में शायद किसी के पास नही है|’ व्यापारी गर्व से बोला|
‘अच्छा! मेरा बैल तो माल से लदी पचास गाड़ियाँ एकसाथ खींच सकता है| क्या आपका बैल उसका मुकाबला कर सकता है?’
व्यापारी ने अट्टहास किया और बोला, ‘क्यों मज़ाक करते हो भाई?’
‘मैं मज़ाक नही कर रहा हूँ|’ परमसुख ने दृढ़ स्वर में कहा|
‘असंभव! यह कदापि नही हो सकता| कोई भी बैल पचास गाड़ियाँ एकसाथ नही खींच सकता|’ व्यापारी ने आश्चर्यपूर्ण स्वर में कहा|
‘एक हज़ार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाकर देख लो| अगर मेरे बैल ने पचास गाड़ियाँ एकसाथ खींच दी तो मैं शर्त जीत जाऊँगा| अगर न खींच पाया तो हार जाऊँगा|’
व्यापारी ने सोचा- ‘परमसुख पागल हो गया है|’ फिर भी उसने शर्त लगा ली|
निश्चित समय पर कंकड़, पत्थर और बालू से लदी पचास गाड़ियों के साथ परमसुख तैयार था|
‘कुछ ही देर में एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ मिल जाएँगी| इनके अलावा मेरे जीवनभर की बचत की एक हज़ार मुद्राएँ मिलाकर मेरे पास दो हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ हो जाएगी| उन मुद्राओं से मैं और बहुत से बैल खरीदूँगा और शर्तें लगाया करूँगा| फिर तो सारे नगर में मैं सबसे धनी आदमी बन जाऊँगा|’ मन-ही-मन खुश होते हुए उसने नंदीश्वर के गले में माला पहनकर उसे सबसे आगे वाली गाड़ी में जोत दिया|
‘चल, दुष्ट जल्दी खींच इन गाड़ियों को|’ बैल की कमर पर चाबुक मारते हुए परमसुख बोला|
अपने मालिक के ऐसे कड़वे बोल सुनकर बैल के दिल को ठेस पहुँची, ‘यह मुझे अपशब्द कह रहा है, ऐसा है तो मैं यहाँ से हिलूँगा भी नही|’
कुछ ही देर में परमसुख परेशान हो गया, ‘इस नंदीश्वर को क्या हो गया है? यह मेरी आज्ञा क्यों नही मान रहा?’ उसने लाख प्रयत्न किए मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात|
उधर व्यापारी फूला नही समाया| क्योंकि वह शर्त जित चुका था, ‘हा…हा…हा! मैं शर्त जीत गया, निकालो एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ|’
परमसुख को एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ उस व्यापारी को देनी पड़ी| नंदीश्वर को लेकर वह थके कदमों से घर पहुँचा और निराश होकर बिस्तर पर पसर गया|
‘सो गए मालिक?’ नंदीश्वर ने परमसुख से पूछा|
‘मैं बर्बाद हो गया…सो कैसे सकता हूँ| काश! मैंने तुम्हारी बात न मानी होती|’ परमसुख परेशान होकर बोला|
‘आपने मुझे गाली क्यों दी थी? मैंने कभी कोई बर्तन फोड़ा या किसी को सींग मारा या…|’
‘नही बेटा, तुमने कभी ऐसा कुछ नही किया| अब तुम यहाँ से चले जाओ|’ परमसुख ने अनमने स्वर में कहा|
नंदीश्वर को परमसुख पर दया गई, बोला, ‘कोई बात नही, जाओ फिर से शर्त लगा लो| इस बार दो हज़ार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाना| बस, एक बात का ध्यान रखना, मुझे अपशब्द न कहना|’
परमसुख एक बार फिर शर्त लगाने की इच्छा से व्यापारी कर पास पहुँचा और उसने दो हज़ार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाई|
‘लगता है पंडितजी एक बार शर्त हारने के बाद भी आपकी इच्छा पूरी नही हुई|’ व्यापारी ने उपहास करते हुए कहा|
‘इस बार मुझे जीत का पूरा विश्वास है, इसलिए मैं दो हज़ार स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाता हूँ|’
‘दो हज़ार!’ व्यापारी कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘ठीक है, मुझे शर्त मंजूर है|’
फिर पचास गाड़ियों में माल लादकर नंदीश्वर को जोता गया|
परमसुख गाड़ी में बैठ गया और नंदीश्वर से बोला, ‘मित्र! चलो, गाड़ियाँ खींचों|’
नंदीश्वर ने गाड़ियों को खींचना शुरू किया तो गाड़ियाँ खींचती ही चली गई|
यह देखकर व्यापारी के होश उड़ गए, बोला, ‘चमत्कार! सचमुच ही परमसुख का बैल सबसे ज्यादा ताकतवर है|’
उसके बाद व्यापारी ने शर्त के अनुसार परमसुख को दो हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ दे दी| स्वर्ण मुद्राएँ लेकर परमसुख प्रसन्न मुद्रा में घर पहुँचा| अब वह और अधिक धनी हो गया था| वह अपना जीवन सुखपूर्वक बिताने लगा|
शिक्षा: यह जुबान ही है जो किसी को मित्र तो किसी को शत्रु बना देती है| परमसुख ने जब कटु लहजे में बैल को आदेश दिया तो वह टस-से-मस न हुआ| और वही बैल प्रेम से पुचकारने पर असंभव कार्य भी कर गया| मधुरभाषी बनकर कट्टर शत्रु पर भी विजय पाई जा सकती है|