मूर्ख वृक्ष
प्राचीनकाल में एक जंगल में दो वृक्ष मिलजुल कर रहते थे|
उसी जंगल में शेर और बाघ भी मित्रवत रहते थे और जानवरों का शिकार करते थे| अपनी भूख मिटाकर बचा हुआ मांस तथा हड्डियाँ वही छोड़ जाते थे, जिससे सारे वातावरण में दुर्गंध फैल जाती थी| एक दिन पहला वृक्ष दूसरे वृक्ष से बोला, ‘दोस्त! ये जानवर भी कैसी मुसीबत है| इनके जूठन से उठने वाली दुर्गंध के कारण मेरा तो साँस लेना भी दूभर हो गया है|’
‘हाँ, अब तो यहाँ रहना भी मुश्किल होता जा रहा है|’ दूसरे वृक्ष ने कहा|
‘मैं अब और बर्दाश्त नही कर सकता| इन जानवरों को यहाँ से निकालकर ही रहूँगा|’ पहले वृक्ष ने क्रोधित होते हुए कहा|
‘नही मित्र, ऐसी बेवकूफी कभी न करना| ये जंगली पशु ही तो हमारी रक्षा करते हैं|’ दूसरे वृक्ष ने उसे समझाते हुए कहा|
‘किंतु यह तो सोचो, इन जानवरों के यहाँ न रहने पर हवा कितनी शुद्ध और सुहावनी होगी| मैंने तो निश्चय कर लिया है कि पशुओं को यहाँ से भगाकर ही रहूँगा|’ पहले वृक्ष ने दृढ़ स्वर में कहा|
‘अरे मित्र! तुम नही जानते क्या करने जा रहे हो?’ दूसरे वृक्ष ने उसे फिर समझाया|
इस प्रकार दोनों काफ़ी देर तक तर्क-वितर्क करते रहे|
फिर एक रात…
‘अहा! कितनी तेज़ हवा चल रही है| यही मौका है जब जानवरों को यहाँ से भगाया जा सकता है|’ यह सोचकर पहला वृक्ष ज़ोर-ज़ोर से हिलकर भयंकर आवाज़ करने लगा|
पेड़ के नीचे सोए जानवर हड़बड़ाकर जाग गए|
‘यह कैसी आवाज़ है?’ शेर ने चीते से पूछा|
‘उस पेड़ को तो देखो, कितनी ज़ोर से हिल रहा है?’ चीते ने कहा|
‘लगता है इस पर कोई भूत आ गया है| चलो, यहाँ से भाग चले|’ शेर ने सुझाव दिया|
‘हाँ, यहाँ से भागने में भलाई है, जल्दी करो|’ चीते ने कहा|
और फिर सभी जानवर वहाँ से भाग खड़े हुए|
अगले दिन सुबह…
आखिरकार मैंने जानवरों से पीछे छुड़ा ही लिया| अब हवा में ताज़गी आ गई है|’ पहले वृक्ष ने कहा|
जानवरों के न होने से जंगल में निरवता छा गई थी| अचानक एक दिन अपने बछड़े को ढूँढ़ता हुआ एक ग्वाला वहाँ आ पहुँचा| उसके पीछे वह काफ़ी देर से जंगल में भटक रहा था| वह सोचने लगा, ‘लगता है यहाँ कोई शेर-वेर नही है| अन्य जानवरों के पैरों के निशान भी कहीं नजर नही आ रहे|’
आखिर बछड़े को लेकर वह वापस घर आ गया और अपने साथियों को सारा वृतांत कह सुनाया|
दूसरे दिन वे सब फिर उन्हीं पेड़ों के नज़दीक जा पहुँचे|
‘ऐसा लगता है कि बरसों से यहाँ कोई जानवर नही रहा है|’ एक ग्वाले ने कहा|
‘शायद ऐसा ही है|’ दूसरे ग्वाले ने उसकी बात का समर्थन किया|
‘तब तो यह ज़मीन हमारे मतलब की है|’ तीसरे ग्वाले के कहा|
उधर वे दोनों वृक्ष यह सब देख-सुनकर स्तब्ध रह गए|
‘देखा तुमने, ये मनुष्य क्या योजना बना रहे है? मैंने तुमसे कहा था कि जंगल जानवरों को मत भगाओ|’ दूसरे वृक्ष ने कहा|
‘चिंता मत करो| जैसे मैंने उन जानवरों को भगा दिया था, वैसे ही इन मनुष्यों को भी भगा दूँगा|’
पहले वृक्ष ने फिर स्वयं को खूब हिलाया, और डरावनी आवाज़ निकली|
‘यह कैसी डरावनी आवाज़ है, बाबा?’ एक ग्वाले ने बुजुर्ग ग्वाले से पूछा|
‘डरने की कोई बात नही| जब तेज़ हवा पत्तियों को छूकर बहती है तो ऐसी ही आवाज़ निकलती है|’ बुजुर्ग ग्वाले ने समझाते हुए कहा|
वृक्ष ने फिर वैसी ही हरकत की, जिससे एक-दो टहनियाँ भी टूटकर नीचे आ गिरी|
यह सब देखकर सभी ग्वाले घबरा गए|
‘अरे! घबराते क्यों हो| एक-दो टहनियाँ ही तो गिरी है| हम तो इन पेड़ों को काटकर इनकी लकड़ियाँ जलाने के काम में लेंगे|’ बुजुर्ग ने ढाँढस बँधाते हुए कहा|
फिर कुछ दिनों बाद ही गाँववालों ने जंगल के पेड़ों को काट डाला| अब केवल वही दो वृक्ष शेष रह गए थे| तभी एक ग्रामीण ने मूर्ख वृक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि कल उसे काटेंगे|
‘मुझे बचाओ मित्र! कुछ मदद करो| तुमने सुना नही, वे कल मुझे काटने आ रहे है?’ पहले वृक्ष ने कहा|
‘अब क्या हो सकता है| तुम्हें अपने किए का परिणाम तो भोगना ही होगा|’
इस तरह उस मूर्ख वृक्ष का अंत हो गया और उसका साथी भी बच न पाया|
शिक्षा: प्रकृति ने इस धरती पर जन-जीवन की जो व्यवस्था की है, उससे छेड़छाड़ करना घातक है| प्राकृतिक संतुलन हर हाल में कायम रहना चाहिए| मूर्ख वृक्ष ने अपने साथी की बात न मानी और सारे जंगल के सफाए का कारण बन गया|