मुर्गा बांग क्यों देता है
एक बहुत ही सुंदर जंगल था| उसमें कई प्रकार के जानवर रहते थे| वे सभी बहुत प्रेमपूर्वक रहते थे और मिल-जुलकर काम करते थे|
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एक बार ऐसा हुआ कि वर्षा नहीं हुई| जंगल के सभी नाले, तालाब और झीले सूख गयीं| कहीं भी पानी न रहा| जंगल के सभी जानवर तड़पने लगे| पानी के बिना सभी की जान को खतरा पैदा हो गया| जानवरों और पक्षियों को पानी की खोज में भेजा गया| परंतु कहीं भी पानी नहीं मिला| सभी चिंता में डूब गये कि अब क्या होगा?
एक सभा बुलायी गयी जिसमें जंगल के सभी जानवर पहुँचे| काफी देर सोच-विचार के बाद तय किया गया कि एक कुआँ खोदा जाये| कुआँ खोदने में जंगल के सभी जानवरों को सहयोग देने के लिए कहा गया| जंगल के जानवरों की सलाह से जगह का चयन किया गया| कुआँ खोदने का काम शुरु हुआ| जंगल के सभी जानवर और पक्षी अपनी सामर्थ्य के अनुसार काम में जुट गये|
सभी प्राणियों में केवल मुर्गा ही ऐसा था जो बेहद और आलसी था| वह कोई काम करना अपनी शान के खिलाफ समझता था| उसने जानवरों को कुआँ खोदते देखा तो निराश सुर में कहने लगा, ‘तुम सभी बेकार में मेहनत कर रहे हो| कहीं मिट्टी खोदने से भी पानी निकलता है| छोड़ो इस बेकार काम को|’
मुर्गे की निराशा भरी बातें सुनकर सबको बहुत गुस्सा आया| परंतु सभी शांतिपूर्वक अपना काम करते रहे| कुआँ खोदने का काम धीरे-धीरे पूरा होता गया| ज्यों-ज्यों काम पूरा होता गया सबका उत्साह बढ़ता गया| आखिर सबकी मेहनत रंग लायी| कुआँ जब और गहरा खोदा गया तो पानी दिखायी देने लगा| सबकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था| पानी क्या मिला जैसे अमृत मिल गया हो| सबने जी भरकर अपनी प्यास बुझायी| उनके दुःख का अंत हो गया| उधर जब उस आलसी मुर्गे ने यह चमत्कार देखा तो दंग रह गया| पानी के बिना उसकी हालत खराब हो गयी थी| अब वह अपने आपको न रोक सका और कुएँ की तरफ चल दिया|
ज्यों ही उसने कुएँ की हद में पैर रखा, बाकी जानवरों ने उसे रोक दिया और कहा, ‘तुम्हें पानी पीने का कोई अधिकार नहीं क्योंकि तुमने मेहनत नहीं की| हम तुम्हें कुएँ से पानी नहीं पीने देंगे|’ मुर्गा हैरान रह गया| प्यास के साथ उसका गला सूख गया था| उसने गिड़ गिड़ाकर कहा, ‘मुझे पानी पी लेने दो| मैं प्यास से मरा जा रहा हूँ| बाद में मुझे जो चाहे सजा दे देना|’
जानवरों और पक्षियों ने मुर्गे की हालत पर दया करके परस्पर विचार-विमर्श कर उससे कहा, ‘हम तुम्हें इस कुएँ से पानी पीने देंगे लेकिन हमारी एक शर्त है|’
‘बोलो| क्या शर्त है?’ मुर्गे ने पूछा| ‘शर्त यह है अगर तुमने इस कुएँ का पानी पीना है तो हर रोज हमें सुबह आवाज़ देकर जगाना पड़ेगा’ मुर्गे ने कहा| ‘ठीक है| जैसा आप कहेंगे, मैं करूँगा| पहले मुझे पानी पी लेने दो|’ कहते हैं तब से मुर्गा हर रोज जब जानवरों को बांग देकर जगाता चला आ रहा है| अपने किये की सजा को वह अब तक भुगत रहा है|
शिक्षा- व्यक्ति को कभी आलस्य नहीं करना चाहिये| आलस्य करने पर उसे उसकी सजा भुगतनी पड़ती है|