मुक्ति
एक गांव में एक जार रहता था | उसके तीन बेटे थे | वह चाहता था कि उसके बेटों का विवाह बहुत सुंदर और सुशील लड़कियों से हो | परंतु अपनी इच्छानुसार लड़कियां मिलना आसान नहीं था |
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एक दिन जार ने अपने बेटों को बुलाकर पूछा – “तुम लोग कैसी लड़की से विवाह करना चाहते हो ?”
“जी आप जिससे चाहें उससे हमारा विवाह कर सकते हैं |” तीनों बेटों ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया |
उत्तर सुनकर जार बहुत खुश हुआ | उसने मन ही मन एक योजना बनाई और अपने बेटों से कहा – “मैं तुम तीनों को एक-एक तीर देता हूं | सामने वाले मैदान में जाकर तुम इन तीरों को अलग-अलग दिशा में छोड़ो | जिसका तीर जहां गिरेगा | उसी घर की लड़की से उसे शादी करनी होगी |”
तीनों राजी हो गए | तीनों ने अपना-अपना तीर अलग दिशाओं में छोड़ा | बड़े बेटे का तीर एक व्यापारी के आंगन में गिरा | जार और उसके पुत्र ने वहां पहुंच कर देखा तो व्यापारी की लड़की हाथ में तीर लिए खड़ी थी | जार ने अपने बड़े पुत्र का विवाह उस लड़की से कर दिया |
मंझले पुत्र का तीर एक मछुआरे के घर में गिरा | अत: उसकी बेटी से मंझले पुत्र का विवाह कर दिया गया |
तीसरे पुत्र एन्द्रेई का तीर हवा में तेजी से उड़ता हुआ जंगल की ओर चला गया था | पिता-पुत्र तीर खोजने के लिए जंगल की ओर चल पड़े | वहां एक तालाब के किनारे एक मेंढकी तीर मुंह में लेकर बैठी थी | अब प्रश्न उठा कि एन्द्रेई का विवाह किससे किया जाए ?
एन्द्रेई मेंढकी के मुंह से तीर निकाल कर अपने पिता के साथ वापस जाने लगा | तब मेंढकी लड़की की आवाज में बोली – “क्या तुम मुझसे विवाह करोगे ?”
लड़की की आवाज सुनकर जार आश्चर्यचकित रह गया | उसने निश्चय किया कि एन्द्रेई का विवाह मेंढकी से ही किया जाएगा और शीघ्र ही उसका विवाह कर दिया गया |
दोनों बड़े भाई अपनी पत्नी के साथ बहुत खुश थे जबकि एन्द्रेई मेंढकी के साथ अपने कमरे में उदास बैठा रहता था | मेंढकी बोली – “तुम उदास क्यों होते हो ? तुम्हारी किस्मत में मेरे साथ ही विवाह करना लिखा था, सो हो गया |”
एन्द्रेई रोज चुपचाप दुखी मन से सो जाता | कुछ दिन इसी तरह बीत गए | एक दिन जार ने बेटों से कहा – “मैं तीनों बहुओं की परीक्षा लेना चाहता हूं | तीनों बहुओं को मेरे लिए एक कमीज सिलनी होगी | शर्त यह है कि वह कल तक तैयार हो जानी चाहिए |”
दोनों बेटे छोटे भाई का मजाक उड़ाने लगे | फिर तीनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ अपने कमरे में चले गए | बड़े दोनों बेटे अपनी पत्नी की सहायता करने में जुट गए | परंतु एन्द्रेई कमरे में जाकर एक कोने में बैठ गया | उसे उदास देखकर मेंढकी बोली –
“आप उदास क्यों होते हैं ? आप सो जाइए |”
एन्द्रेई दूसरी तरफ मुंह करके सो गया | मेंढकी ने रात को अपनी मेंढकी की खाल उतार दी और तान्या के रूप में सुंदर राजकुमारी खड़ी हो गई | रात भर में उसने अपनी दासियों को बुलाकर सुंदर कमीज तैयार कर दी | फिर मेंढकी बन कर सो गई |
सुबह एन्द्रेई उठा तो पलंग के किनारे कमीज देखकर बहुत खुश हुआ | कमीज में सुंदर कशीदाकारी की गई थी और रेशमी कमीज बहुत सुंदर लग रही थी | वह कमीज को तह करके अपने पिता के पास पहुंचा तो देखा कि दोनों भाई वहां पहले ही पहुंच चुके थे |
जार ने तीनों कमीजें देख कर कहा – “बड़े बेटे की लाई हुई कमीज तो किसी नौकर के लायक लगती है, दूसरे बेटे की कमीज भी रात को पहन कर सोने लायक है | एन्द्रेई की कमीज वाकई बहुत सुंदर है | परंतु तुम यह बताओ कि यह कमीज किसने सिली है |”
एन्द्रेई ने पूरी बात बता दी परंतु पिता व दोनों बेटों को यकीन नहीं हुआ | वे सोचने लगे कि शायद एन्द्रेई झूठ बोल रहा है | वह अपनी पत्नी की कमी छिपाने के लिए कमीज बाजार से खरीद कर लाया है या फिर मेंढकी कोई जादूगरनी है |
जार ने पुन: तीनों बहुओं की परीक्षा लेने का निश्चय किया | उसने तीनों बेटों से कहा कि वह अगले दिन तीनों बहुओं के हाथ का बना खाना खाएगा | पहली बहू का खाना सुबह, दूसरी का दोपहर व तीसरी का बना भोजन शाम को खाएगा |
जार की बात सुनकर दोनों बड़े बेटे हंसते हुए अपने कमरे में चले गए परंतु छोटा एन्द्रेई उदास होकर अपने कमरे में चला गया | दोनों की पत्नियां भोजन की तैयारी में लग गईं परंतु वे साथ ही साथ यह भी जासूसी करती रहीं कि तीसरी वाली भोजन कैसे तैयार करती है |
मेंढकी यह बात अच्छी तरह जानती थी | उसने पहले की भांति अपने पति को सुला दिया | स्वयं आटा गूंध कर सारा आटा धीमी आंच पर रख दिया और सोने चली गई | बड़ी बहुओं ने उसकी नकल करके उसी प्रकार आटा रख दिया और सोने चली गईं |
उसके बाद उसने तान्या के रूप में अगले दिन के भोजन की सारी तैयारी अपनी दासियों के साथ मिलकर की और मेंढकी बन कर सो गई |
जार ने सुबह का भोजन बड़ी बहू के हाथ का बना खाया तो उसे यूं लगा कि आज उसके दांत ही टूट जाएंगे | उसने भोजन उसी प्रकार छोड़ दिया |
दोपहर के भोजन में भी इसी प्रकार हुआ | फिर जब शाम हो गई तो जार मेज पर भोजन करने बैठा | एन्द्रेई ने देखा कि मेज पर अनेक प्रकार के व्यंजन पहले ही से रखे हैं | उसने पिता के लिए भोजन परोसा और स्वयं भी खाने लगा | भोजन बहुत ही स्वादिष्ट था | दोनों लोग उंगलियां चाटते रह गए | परंतु उन्हें स्वादिष्ट भोजन तैयार होने का रहस्य समझ में नहीं आया | वे बस भोजन की प्रशंसा ही करते रहे |
अगले सप्ताह जार का जन्मदिन था | उस दिन पुरे शहर को निमंत्रित किया गया ताकि सबको तीनों बहुओं से भी मिलवाया जा सके | खूब बड़ी दावत का आयोजन किया गया |
दावत के वक्त सभी लोग सही वक्त पर पहुंचने लगे | दोनों बड़े बेटे अपनी पत्नियों के साथ दावत के लिए पहुंच गए |
एन्द्रेई उदास बैठा था | उसने मेंढकी से कहा – “मैं लोगों को तुमसे किस तरह मिलवाऊंगा ? मुझे कुछ समय में नहीं आ रहा है |”
मेंढकी बोली – “आप चलिए, मैं तैयार होकर आती हूं | आप देखिएगा कि आप ही मुझे नहीं पहचान पाएंगे |”
एन्द्रेई ने आश्चर्यचकित होकर कहा – “फिर मैं तुम्हें कैसे पहचानूंगा ?”
“मैं आकर आपका हाथ थाम लूंगी |” मेंढकी बोली |
एन्द्रेई विस्मित-सा होता हुआ दावत वाले कमरे में पहुंच गया | कुछ ही मिनटों में जार ने कहा – “मित्रो ! मैं आज आपको तीनों बहुओं से मिलवाना चाहता हूं |”
फिर उसने बड़े बेटे-बहू को बुलाकर सबसे मिलवाया | एन्द्रेई का दिल घबरा रहा था कि अब मंझले के बाद उसकी बारी है | तभी दरवाजे पर एक घोड़ागाड़ी आकर रुकी | उस घोड़गाड़ी में रुपहले पंख लगे थे | वह मोतियों से जड़ी थी, छह घोड़े उसे खींच रहे थे | उसमें से अत्यंत सुंदर अप्सरा जैसी तान्या उतरी तो सबकी निगाहें उसकी ओर मुड़ गईं |
तभी तान्या ने आकर एन्द्रेई का हाथ पकड़ लिया | सारा हॅाल तालियों से गूंज उठा | अब जार ने अपने मंझले व छोटे बेटे और दोनों छोटी बहुओं का परिचय मेहमानों से करवाया |
एन्द्रेई खुशी से फूला नहीं समा रहा था | वह मौका पाकर अपने कमरे में गया और वहां जाकर मेंढकी की खाल जला डाली | फिर वह दावत में आ गया |
दावत के बाद सब अपने-अपने घर खुश होते हुए चले गए | बेटे अपनी पत्नियों के साथ अपने कमरों में जाने लगे तो जार आश्चर्य से तान्या की ओर देखने लगा |
तान्या बोली – “पिताजी मैं किसी श्राप के कारण मेंढकी बन गई थी, आज एन्द्रेई ने मुझे उससे मुक्ति दिला दी है | वह आपका गुणी और होनहार बेटा है | उसे पति के रूप में पाकर मैं बहुत खुश हूं |”
सब लोग सुखपूर्वक साथ-साथ रहने लगे |