मोक्ष ज्ञान से संस्कार से नहीं
एक समय की बात है जब बालक शुकदेव बचपन में ही वन के लिए चलने लगे, तब उनके पिता व्यास बोले- “अभी तो तुम्हारे सब संस्कार पूरे नहीं हुए, यहाँ तुम घर-परिवार को छोड़ते हो?” बालक शुकदेव ने कहा- “मैं इन्हीं संस्कारों से तो संसार में अटका हुआ हूँ|
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इनकी मुझे कोई आवश्यकता नहीं|” व्यास जी बोले- “ऐसा भी कहीं होता है बेटा| विधिपूर्वक तुम्हें ब्रह्मचार्य, ग्रहस्थ और सन्यास आश्रम का पालन करना चाहिए| उसके ही बाद तुम्हें मोक्ष मिल सकता है|”
बालक शुकदेव ने पिता व्यास को जवाब दिया- “ब्रह्मचार्य से मोक्ष मिलता है तो हिजड़ों को कभी का मोक्ष मिल जाता| गृहस्थ से मुक्ति मिलती तो सभी गृहस्थ मुक्त हो जाते| वानप्रस्थ से मुक्ति मिल सकती तो सभी वनवासी मृग एवं सभी प्राणी हो जाते| सन्यास से यदि मोक्ष मिल सकता तो सभी दरिद्रों और संपत्ति हीनों को मुक्ति मिल जाती|” इस प्रकार व्यास जी बोले- “पुम नामक नरक से पिता को पुत्र ही बचाता है, पुत्र से ही स्वर्ग मिलता है|” बालक शुकदेव ने उत्तर दिया- “यदि पुत्र होने मात्र से स्वर्ग मिलता तो कुत्ते, सुअर और टिड्डी सभी स्वर्ग पहुँच जाते|” व्यास जी बोले- “मनुष्य- बेटे के दर्शन से पिता के ऋण से, पोते के दर्शन से देवऋण से और प्रपौत्र के दर्शन से स्वर्ग पा लेते हैं|” शुकदेव ने कहा- “गिद्ध चिरंजीवी होते हैं, कई पीढ़ियाँ जीते हैं, उनमें से किसी को मुक्त होते नहीं देखा| आदमी संस्कारों और कुल से अच्छा फल नहीं पाता; जो कुछ उसे मिलता है उसे अपने अच्छे ज्ञान या अच्छे बुरे कर्मों से मिलता है|”
इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक मनुष्य अपने कर्मों से ही स्वर्ग या नरक का भागीदार बनता है|